पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७३

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मराठी का पुराना रूप ताम्रपत्रों और शिला-लेखों में पाया जाता है, ईस्वी बारहवें शतक के कुछ ऐसे ताम्रपत्र और शिलालेख पाये गये हैं । ईस्वी चौदहवें शतक में ज्ञानदेव नामक एक प्रसिद्ध महात्मा हो गये हैं. उन्होंने भगवद् गीता पर मराठी में ज्ञानेश्वरी टीका लिखी है। उन्हीं के समय में नामदेवजी भी हुये, जिनकी हिन्दी रचना भी पाई जाती है । मराठी के अभंगों के रचयिताओं में एकनाथ और तुकाराम का नाम अधिक प्रसिद्ध है। स्वामी रामदास का 'दासबोध' भी प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ईस्वी उन्नीसवें शतक में मोरोपन्त एक बड़े प्रसिद्ध कवि हो गये हैं।

पूर्वी हिन्दी के पूर्व में बिहारी भाषा है, आजकल बिहारी भाषा भी हिन्दी ही मानी जाती है। बिहारी कुल बिहार छोटानागपुर और संयुक्तप्रान्त के कुछ पूर्वी भागों में बोली जाती है। अबतक इसमें मागधी प्राकृत की दो विशेषतायें पाई जाती हैं। 'स' का श में बदल जाना और अकारान्त शब्दों का एकारान्त हो जाना। बिहारी की तीन प्रधान भाषायें हैं, मैथिली, मगही और भोजपुरी। ईम्वी पन्द्रहवीं शताब्दी से मैथिली में कुछ साहित्य पाया जाता है। 'मगही' प्राचीन मागधी प्राकृत की प्रतिनिधि है,और उसी के अपभ्रंश से वर्त्तमान रूप में परिणत हुई है । मैथिली और मगही के व्याकरण और शब्दों में बहुत समानता है, पर मगही में साहित्य का अभाव है। भोजपुरी का इन दोनों से अधिक अन्तर है. यह दोनों से सीधी है। मगही को तिरहुतिया भी कहते हैं। हानल महोदय ने बिहारी को पूर्वी हिन्दी कहा है ।

मैथिल कोकिल विद्यापति मैथिली भाषा के बहुत बड़े कवि हुये हैं, इनकी रचनायें बड़ी ही मधुर एवं भावमयी हैं । उनकी पदावली बहुत ही सरस है, उसमें श्रीमती राधिका के मधुर भावों का बड़ा हृदयग्राही चित्रण है । उनकी रचना की जितनी ममता हिन्दी भाषावालों को है, उतनी ही बँगला भाषियों को। ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग उनकी रचनाओं में बड़ी ही रुचिरता के साथ किया गया है । भोजपुरी में भी साहित्य नहीं मिलता, परन्तु इस भाषा में लिखे गये ग्रामीण गीन प्रायः सुन जाते हैं, जो बड़े ही