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मनोहर होते हैं । पं० रामनरेश त्रिपाठी ने हाल में जो ग्राम्य गीतों का संग्रह प्रकाशित किया है. उसमें भोजपुरी गीतों का भी पर्याप्त संग्रह हो गया है।
बिहारी के दक्षिण पूर्व में बोली जानेवाली भाषा उड़िया कहलाती है। मागधी अपभ्रंश से ही इसकी उत्पत्ति भी मानी जाती है, जहां पर यह मराठी भाषा के समीप पहुंचती है, वहां इसमें उसका मिश्रण भी देखा जाता है। बंगाल के समीप पहुंच कर यह बंगाली भाषा से भी प्रभावित है । उड़िया को उत्कली और उड़ी भी कहते हैं । इसमें साहित्य भी पाया जाता है. और इस भाषा के भी अच्छे अच्छे कवि हुये हैं।अधिकांश रचनायें इसकी कृष्णलीलामयी हैं, और उनमें यथेष्ट सरसता है।
यह भाषा उड़ीसा में, बिहार, मद्रास' एवं मध्यप्रान्त के कुछ भागों में बोली जाती है, महाराज नरसिंह देव द्वितीय के एक शिला लेख में इसके प्राचीन स्वरूप का कुछ पता चलता है, यह शिला लेख विक्रमी चौदहवें शतक का है। इसका आदि कवि उपेन्द्र भन्ज समझा जाता है । कृष्ण दास का रसकल्लोल नामक ग्रन्थ भी प्रसिद्ध है। इस भापा का आधुनिक साहित्य भी विशेष उन्नत नहीं है।
बंगाल की भाषा बँगला है। ईस्वी चौदहवें शतक के उपरान्त, इसका साहित्य बढ़ने लगा, और इस समय बहुत ही समुन्नत है। इसकी बोल चाल को भाषा के प्रधान रूप तीन हैं. पूर्वी, पश्चिमीय और उत्तरीय । प्रत्येक में अलग २ कई बोलियां हैं । हुगली के चारों ओर पश्चिमीय है, और गंगा के उत्तर प्रदेश में उत्तरोय. जो कि उड़िया भापा से मिलती जुलती है। ढाका के आस पास पूर्वीय भाषा है. जो स्थान स्थान पर परस्पर बड़ी भिन्नता रखती है। रंगपुरी भाषा आसाम के पश्चिमी छोर पर है. और उत्तरी बंगाल से लगे हुये हिस्सों में बोली जाती है । चटगाँव के आस पास उच्चारण की । विशेषताओंके कारण बिल्कुल एक नये ढंगकी बोली बन गई है, जो कठिनता से बँगला कही जा सकती है। बँगला में 'सका उन्धारण 'श' होता है इस विषय में वह मागधी में मिलती है। प्राचीन बंगाली कविता में मागधी प्राकृत के कर्ता का चिन्ह 'ए. भी सुरक्षित पाया जाता है । जैसे 'इष्टदेव'