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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७९

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नसरत देश की एक जाति है, यह देश बशगल और चित्राल नदियों के संगम पर है 'कलाशा' कलाशा-काफिरों की भाषा है. यह भी इन्हीं दोनों नदियों के दोआबमें बोलो जाती है। विडल्फने गवरबटी भाषाका शब्दकोष बनाया है, लेटनर का डार्डिस्तान, कलाशा के विषय में बहुत कुछ बतलाता है। 'पशाई' पैशाची से निकली है, और लगमन के देहकानों की बोली है । पशाई पर जो कि सबस दक्षिण की भाषा है, पश्चिमो पंजाब के एण्डोएरियन भाषाओं का प्रभाव है। दूसरी ओर कलाशा लोअर भाषा सं प्रभावित है। कुल काफ़िर भाषाओं पर पास की पडतो भापा का बहुत बड़ा असर देखा जाता है।

खोआर 'खोयाको' जाति को भाषा है, इसका स्थान वर्तमान पिशाच भाषाओं के काफ़िर और डाड समूह के मध्य में है । यह अपर चित्राल और यासोन के एक भाग की भाषा है। इसे चित्राली या चत्रारी भी कहते हैं। लेटनर के डार्डिस्तान' नामक ग्रन्थ में इसके विषय में बहुत कुछ लिखा हुआ है, इस भाषा पर विडल्फ और जीयेन ने व्याकरण भी बनाया है।

डार्ड भापा समूह में सबसे प्रधान शिना है । यह शिन जाति की भाषा है। ये लोग काश्मीर के उत्तर के रहनेवाले हैं। विडल्फ की ट्राइस आव दि हिन्दुकुश और लेटनर, के 'डार्डिस्तान' के देखने में इस बड़ी जाति और इसकी भाषा के विषय का पूरा ज्ञान होता है। मेगस्थिनीज ने इनको डग्डेई' कहा है, और महाभारत में इन्हें डारडस लिखा गया है । शिना की बहुत सी बोलियां हैं, उनमें सबसे मुख्य 'जिलजित' घाटी की 'जिलनित' भापा है । अस्तोर घाटी में बोली जाने वाली भापा अम्तोरी कहलाती है । चिलासी, गुरेज़ी, ट्रास और डाहहनू की दो दो भापायें हैं, जिनके साथ बालती' का व्यवहार भी किया जाता है । यूरोपियनों ने 'डार्ड' शब्द का प्रयोग हिन्दुकुश के दक्षिण में बोली जानेवालो कुल इण्डोरियन भाषाओं के लिये किया है। डार्डिक शब्द इसी से निकला है, जो वर्त्तमान पिशाची भाषा का भी वोधक है।

काश्मीरी अथवा काशीरू काश्मोर की भाषा है, इसका आधार शिना