पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१३७

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वे बहुत समय तक काव्य करना जानते ही नही, पर कुछ दिनों के अनतर जब उनको किसी प्रकार व्युत्पत्ति और अभ्यास हो जाता है, तब उनके प्रतिभा उत्पन्न हो जाती है—वे काव्य बनाने लगते है। यदि वहाँ भी अदृष्ट को कारण मानने लगो तो व्युत्पत्ति और अभ्यास के पहले ही उनमें प्रतिभा क्यों न उत्पन्न हो गई? आप कहेंगे—थोड़े दिन के लिये उनका कोई बुरा अदृष्ट मान लीजिए, जिसने प्रतिभा की उत्पत्ति को रोक दिया; तो हम कहेंगे कि प्रायः व्युत्पत्ति और अभ्यास होने पर ही कविता बनानेवाले अधिक देखने में आते हैं, इस कारण अनेक स्थानों पर दो दो (अच्छे और बुरे) अदृष्ट मानने की अपेक्षा, कविता के रोक देनेवाले अदृष्ट के नाश करने के लिये, आपको, जिन व्युत्पत्ति और अभ्यास की कल्पना करनी पड़ती है—जिनके उत्पन्न होने से प्रतिबंधक अदृष्ट नष्ट हो जाता है, उन्हीं को कारण मान लेना उचित है। इस कारण हम जो पहले बता पाए है कि इन तीनो को (अर्थात् अदृष्ट को पृथक् और व्युत्पत्ति-अभ्यास को पृथक्) कारण मानना ही सीधा रास्ता है।

अब एक और शंका होती है—यदि अदृष्ट से भी प्रतिभा उत्पन्न होती है और व्युत्पत्ति तथा अभ्यास से भी, और काव्य दोनों से बन सकता है, तो दो भिन्न भिन्न कारणों से एक ही प्रकार का काम (प्रतिभा) उत्पन्न होने के कारण दोनों के कामो में गोटाला हो जायगा। और यह उचित नही,