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क्योंकि प्रकृति का नियम है कि भिन्न भिन्न कारणों से कार्य भी भिन्न भिन्न ही उत्पन्न हो। इसका उत्तर यह है—यद्यपि प्रतिभा दोनों का नाम है, तथापि अदृष्ट से उत्पन्न होनेवाली प्रतिभा दूसरी है और व्युत्पत्ति तथा अभ्यास से उत्पन्न होनेवाली दूसरी, अतः अदृष्ट और व्युत्पत्ति—अभ्यास के कामों में गोटाला नहीं हो सकता। (इस बात को हम उदाहरण देकर स्पष्ट कर देते हैं—जैसे गन्ने से भी शक्कर बनती है और चुकंदर से भी, और लड्डू दोनों से बन सकते हैं, पर दोनों शक्कर भिन्न भिन्न प्रकार की होती हैं। इसी प्रकार पूर्वोक्त दो भिन्न भिन्न कारणों से उत्पन्न होनेवाली दोनों प्रतिभाएँ भिन्न भिन्न हैं और उन दोनों से काव्य बन सकता है।) बस, काव्य बनने के लिये किसी प्रकार की प्रतिभा होने की आवश्यकता है। तात्पर्य यह कि दोनों प्रकार की प्रतिभाओं से एक ही प्रकार का काव्य बनता है, काव्य में कोई भेद नहीं होता। दूसरा पक्ष यह है—दोनों प्रतिभाओं से काव्य भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं—अर्थात् अदृष्ट से जो प्रतिभा उत्पन्न होती है, उससे बना काव्य दूसरे प्रकार का होता है और व्युत्पत्ति तथा अभ्यास से उत्पन्न हुई प्रतिभा से बना दूसरे प्रकार का। अतः उन दोनों कारणों के कार्यों का कही भी मिलान नहीं होता, वे दोनों ठेठ तक भिन्न ही भिन्न रहती हैं।
इसके अनंतर एक बात और रह जाती है। वह यह कि—जिन मनुष्यों में व्युत्पत्ति और अभ्यास दोनों होते हैं, उनमें भी