पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२१९

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है अथवा उसे आँखो देखा है, कृष्ण, भीम और अर्जुन के साथ साथ-उन सभी लोगो के रुधिर, मज्जा तथा मांस से अकेला ही मैं दिग्देवताओ की बलि करता हूँ।

इस पद्य की रचना रौद्र-रस को व्यक्त नहीं कर सकती-इस रचना मे वह शक्ति नहीं कि जिसके सुनते ही यह पता लग जाय कि यह रौद्र-रस के वर्णन का पद्य है; सो यह उस पद्य के निर्माता की अशक्ति ही है।

वीर-रस

वीर-रस चार प्रकार का है; क्योंकि वीर-रस का स्थायी भाव जो 'उत्साह' है, वह दान, दया, युद्ध और धर्म इन चार कारणों से चार प्रकार का है। उनमे से पहला-अर्थात् दानवीर; जैसे-

कियदिदमधिकं मे यद् द्विजायार्थयित्रे
कवचमरमणीयं कुंडले चार्पयामि।
अकरुणमवकृत्य द्राक् कृपाणेन निर्य-
ह्वहलरुधिरधारं मौलिमावेदयामि॥

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अरपे याचत दुजहिं कवच कुंडल साधारण।
कहहु कहा यह अधिक भयो मम हे सदस्य-गण॥
निर्दयता से काटि कठ झट पट्ट खड्ग सन।
भूरि रक्त की धार भरत शिर करो निवेदन॥