पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२७६

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दोऊ प्यारिन देखि ढिँग-बैठी, इकके, आइ। पीछे सों, मिस खेल के, मीचे नैन दुराइ॥ मीचे नैन दुराइ नैंक करि ग्रीवा नीची। पुलकित ह्वै, चिताहि प्रेम-रस सौ प्रति सींची॥ हँसत कपोलन महि, आन कहँ, धूत सिसक बिन। चूमत, इहि विध करत मुदित सो दोऊ प्यारिन॥

धूर्त नायक ने देखा कि दोनों प्रियतमाएँ (जिसे चूमना चाहता है वह, और दूसरी ) एक ही आसन पर बैठी हुई हैं। दबे पाँव उसने, पीछे से, उनके समीप मे प्राकर, एक (नायिका) के नेत्रो को, खेल करने के मिस से, बन्द कर दिया; अपनी गरदन को थोड़ी-सी टेढ़ी करके, प्रेम के कारण चित्त मे प्रसन्न होती हुई और (दूसरी नायिका न जान जाय, इस कारण) भीतर ही भीतर हँसने से जिसके कपाल शोभित हो रहे हैंऐसी दूसरी नायिका को, रोमाञ्चित होकर, चूम रहा है।

यहाँ एक नायिका को छोड़कर दूसरी नायिका का चूमना चतुरता से काम करना है, वह प्रकट भी न हुआ; क्योंकि दूसरी नायिका उसे न जान सकी; और उसको सिद्ध कर देने की युक्ति है प्रॉख-मिचौनी का खेल। इन सब बातों का, पीछे से आना, आँख मींचना और खेल करना-आदि क्रियाओं के साथ-साथ, होते रहना वर्णन किया गया है।

प्रसाद

जितना प्रयोजन हो, उतने ही पदों का होना

र॰-११