पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२८०

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एक स्त्री दूसरी स्त्री से कह रही है-यह पथिक प्रियतमा के विरह से डरता हुआ जल्दी से जा रहा है।

यही यदि 'प्रियामरणकातरः' अथवा 'प्रिया-मरन ते डरत यह' कर दिया जाय, तो 'मरण' शब्द के शोक-दायक होने से कठोरता आ जायगी। यह कठोरता (नवीन विद्वानो के मत से) 'अश्लीलता' नामक दोष के अंतर्गत है।

अर्थव्यक्ति

जिस वस्तु का वर्णन करना हो, उसके असाधारण कार्य और रूप का वर्णन करना 'अर्थव्यक्ति' गुण कहलाता है। जैसे

गुरुमध्ये कमलाक्षी कमलाक्षेण प्रहर्त्तुकामं माम्।
रदयन्त्रितरसनाग्रं तरलितनयनं निवारयाञ्चक्रे॥
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कमल-बीज-सन हनत स्वहिँ कमल-नैनि गुरु-माँहि।
दाँतन जीभ दबाइ, करि तरल नैन, किय नाहि॥

नायक अपने मित्र से कहता है कि-सास-ननद आदि गुरुजनों के वीच मे बैठी कमलनयनी (नायिका) ने जब देखा कि मैं कमल के मनका (बीज) से उसके ऊपर प्रहार करना चाहता हूँ, तो उसने दाँतों से जीभ के अग्र-भाग को दबाकर एवं नेत्रों को चंचल बनाकर मना कर दिया-कह दिया कि ऐसा न करिएगा, अन्यथा अनर्थ हो जायगा।