जिन्हें प्राप्त है अर्थात् जो उनके समान मधुर हैं, उन वाणियों के आचार्य-पद का अनुभव करने के लिये मेरे अतिरिक्त और कौन पुरुष धन्य है, यह सौभाग्य और किसे प्राप्त हो सकता है? उसका अधिकारी तो एक मैं ही हूँ।
यहाँ अपनी कविताओं को अन्य कविताओं के समान न समझना-सबसे उत्कृष्ट समझना-विभाव है, और अन्य कवियों का तिरस्कार करने के अभिप्राय से इस तरह के वाक्य का प्रयोग करना अनुभाव है। इस (गर्व) को किसी अंश में प्रसूया भी पुष्ट करती है।
वीर-रस की ध्वनि मे उत्साह प्रधान होता है और गर्व गुप्त रहता है; और इस ध्वनि मे गर्व प्रधान रहता है। यही उससे इसमें विशेषता है। जैसे-वीर-रस के प्रसंग में जो 'यदि वक्ति गिरां पतिः स्वयम्...', यह उदाहरण दिया गया है, उसमे 'बृहस्पति और सरस्वती के साथ भी मैं वाद करूँगा' इस कथन से जो उत्साह ध्वनित होता है, उसको 'सब पण्डितों से मैं अधिक हूँ' इस रूप में ध्वनित होनेवाला गर्व पुष्ट करवा है; न कि उपर्युक्त पद्य की तरह 'पृथिवी पर मेरे अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है। इस प्रकार स्पष्ट वर्णन किए हुए चिढ़ा देनेवाले वचनरूपी अनुभाव से प्रधानतया प्रतीत होता है।
१३-निद्रा
श्रम-श्रादि के कारण जो चित्त का मुंद जाना है, उसे 'निद्रा' कहते हैं। नेत्रों का मिच जाना, अंगों