पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३४८

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का निश्चेष्ट हो जाना-आदि इसके अनुभाव हैं। उदाहरण लीजिए-

सा मदागमनबृहिततोषा जागरेण गमिताखिलदोषा।
बोधितापि बुबुधे मधुपैन पातराननजसौरभलुब्धैः॥

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मम पावन ते मुदित वह जागि गमाई रात।
मुख-सौरभ-लामी मधुप बोधेहु जगी न प्रात॥

नायक अपने मित्र से कहता है कि मेरे आ जाने से उसकी प्रसन्नता मे बाढ़ आ गई और उसने सब रात जागरण करके बिताई। प्रातःकाल के समय मुख की सुगन्ध के लोभी मौरों के जगाने पर भी वह न जग सकी।

यहाँ रात्रि मे जगने का श्रम विभाव है और भैौरे के जगाने पर भी न जगना अनुभाव है।

१४-मति

शास्त्रादि के विचार से जो किसी बात का निर्णय कर लिया जाता है, उसे 'मति' कहते हैं। इसमे निर्भय होकर उस काम को करना और संदेह नष्ट हो जाना-आदि अनुभाव होते हैं। उदाहरण लीजिए-

निखिलं जगदेव नश्वरं पुनरसिनितरां कलेवरम्।
अथ तस्य कृते कियानयं क्रियते हन्त! मया परिश्रमः॥
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