पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३६

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इसी तरह अन्यान्य बातें भी इस पुस्तक के पाठ से आपके हृदय में अवतरित हो सकेंगी, हम अधिक उदाहरण देकर इस प्रकरण को विस्तृत नहीं करना चाहते।

धर्म और अंतिम वय

आप वैष्णवधर्म के अनुयायी और भगवान् श्रीकृष्णचंद्र तथा भगवती भागीरथी के परम भक्त थे; यह मंगलाचरण मे लिखित और स्थान स्थान पर उदाहृत श्लोकों से सिद्ध है। पर शिव तथा देवी आदि की स्तुति करने में भी हिचकते नहीं थे। श्रीमद्भागवत[१] और वेदव्यास[२] पर आपको अत्यंत श्रद्धा थी। भगवन्नामोच्चारण में आपको बड़ा आनंद प्राप्त होता था। देखिए, आपने लिखा है—

मृद्वीका रसिता सिता समशिता स्फीतं निपीतं पयः
स्वर्यातेन सुधाऽप्यधायि कतिधा रम्भाधरः खण्डितः।
तत्त्व ब्रूहि मदीय जीव भवता भूयो भवे भ्राम्यता
कृष्णेत्यक्षरयोरयं मधुरिमोद्गारः क्वचिल्लक्षितः॥

हे मेरे जीवात्मन्! तूने अंगूर चाखे हैं, मिश्री अच्छी तरह खाई है और दूध तो खूब ही पिया है। इसके अतिरिक्त (पहले जन्मों मे कभी) स्वर्ग में जाने पर अमृत भी पिया है और स्वर्गीय अप्सरा रंभा के अधर को भी खंडित


  1. देखिए, 'रस नव ही क्यों हैं' आदि प्रकरण।
  2. 'ऋतुराजं भ्रमरहितं यदाहमाकर्णयामि, नियमेन। आरोहति स्मृतिपथं तदैव भगवान् मुनिर्व्यासः' (स्मरणालंकार) आदि।