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किया है। सो तू बता कि संसार में बार बार घूमते हुए तूने, 'कृष्ण' इन दो अक्षरों में जो मधुरता का उभार है, उसे भी कहीं देखा है? ओह! यह अपूर्व माधुरी और कहीं कैसे प्राप्त हो सकती है! देखा भावोद्रेक!
वास्तव में सरसहृदयों के लिये, भक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई, भगवत्प्राप्ति का सर्वोत्तम और सुंदर साधन है भी नहीं।
अंतिम वय में पंडितराज काशी अथवा मथुरा में जा बसे थे और भगवत्सेवा करते रहते थे।[१]
निर्मित ग्रंथ
१—अमृतलहरी—इसमें यमुनाजी की स्तुति है। यह काव्यमाला में मुद्रित हो चुकी है।
२—आसफविलास—इसमें नवाब आसफखाँ का वर्णन है। काव्यमाला-संपादक ने लिखा है कि यह ग्रंथ हमें नहीं मिल सका, कुछ पंक्तियाँ ही मिली हैं।
३—करुणालहरी—इसमें विष्णु की स्तुति है। यह काव्यमाला में मुद्रित हो चुकी है।
४—चित्रमीमांसाखंडन—इसमें रसगंगाधर में स्थान स्थान पर जो चित्रमीमांसा के अंशो का खंडन किया गया है, उसका संग्रह है और काव्यमाला में छप चुका है।
- ↑ 'भामिनीविलास' के अंत मे 'सम्प्रत्यन्धकशासनस्य नगरे तत्त्वं परं चिन्त्यते' और कुछ पुस्तकों में 'संप्रत्युज्झितवासनं मधुपुरीमध्ये हरि सेव्यते' लिखा हुआ है।