पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३६९

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अर्थात् वांछित के विरह से उत्पन्न होनेवाला और प्रिय की स्मृति से उद्दोपन किया जानेवाला, तथा जिसके निद्रा, आलस्य, शरीर का भारीपन और चिंता अनुभाव हैं, उस भाव को, भावों के समझनेवालों ने, 'औत्सुक्य' कहा है। उदाहरण लीजिए-

निपतद्वाष्पसंरोधमुक्तचाञ्चल्यतारकम्।
कदा नयननीलाब्जमालोकेय मृगीदृशः॥
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परत आँसुवन रोध हित भइ थिर तारा जासु।
नैन नील-नीरज वहै कबैं निरखिहौं तासु॥

नायक के जी मे आ रहा है कि-(जिस समय मैं चलने लगा, उस समय, इस भय से कि कही अपशकुन न हो जाय) गिरते हुए आँसुओं के रोकने से जिसके तारा ने चंचलता छोड़ दी थी-स्थिर हो रहा था, क्योंकि यदि वह थोड़ा भी हिलता तो संभव था कि आँसू गिर पड़ते, मृगनयनी के, उस नयनरूपी नीलकमल को कब देखूँ।

२७-आवेग

अनर्थ की अधिकता के कारण उत्पन्न होनेवाली चित्त की संभ्रम नामक वृत्ति का 'आवेग' कहते हैं। उदाहरण लीजिए-

लीलया विहितसिंधुबंधनः सेोऽयमेति रघुवंशनन्दनः।
दर्पदुर्विलसितो दशाननः कुत्र यामि निकटे कुलक्षयः॥
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