पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

[५३]

कार भी स्पष्ट न होगा, तो बताइए, वहाँ चमत्कार किसका होगा? और काव्य में चमत्कार ही असली चीज है, यदि वही न रहा, तो उसे काव्य कहा ही कैसे जायगा? अतः यह मानना चाहिए कि जहाँ, रस हो, वहाँ यदि अलंकार स्पष्ट न हो, तथापि शब्द और अर्थ को काव्य कहा जा सकता है; पर जहाँ रस न हो वहाँ अलंकार का होना आवश्यक है। सो रस और अलंकार—इन दोनों में से किसी एक से भी युक्त शब्द और अर्थ को काव्य कहा जाना चाहिए। इनका यह लक्षण प्रायः केशव मिश्र के लक्षण से मिल जाता है।

पंडितराज (सत्रहवीं शताब्दी)

इनके अनंतर अनुपाद्य ग्रंथ के निर्माता मार्मिक तार्किक श्रीपंडितराज का समय है। उन्होंने इस विषय में जो मार्मिक विवेचन किया है, वह तो आपके सामने है और उस पर जो इस अकिञ्चित्कर की टिप्पणी है, वह भी आपके सम्मुख है। अतः इस विषय में अधिक लिखकर हम आपका समय व्यर्थ नष्ट नही करना चाहते।

उपसंहार

जहाँ तक हमारा ज्ञान है, हम कह सकते हैं कि पंडितराज के अनतर इस विषय का मार्मिक विवेचन किसी ने नहीं किया। अतएव इसी लक्षण को अंतिम समझकर