पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१००

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ईन्ति-ईलिका ६८ ईर्मान्त (व० त्रि०) १ परिपूर्ण नितम्ब-युक्त, पूरा पुट्ठा | नीचे पड़नेवाले कीड़े मकोड़े देख पड़ते हैं और कुचल रखनेवाला। २ अस्थूल नितम्बयुक्त, पतले पुढेवाला। जानेसे बचते हैं। ३ जोडीके दोनो बहुत बड़े घोड़े रखनेवाला। यह ईर (सं० पु०-क्लो०) ई वीजमियति, ईरु-ऋ शब्द सूर्य के अखौका विशेषण है। बाहुलकात् उण् । १ ककटो, ककड़ी। २ स्फ टी, फूट । ईर्य (स. त्रि०) उत्तेजित किया जानेवाला, जो ईर्षणा (हिं.) ईर्षा देखो। भड़काया जाता हो। ईर्षा (सं० स्त्री०) ईयं णम्, ईष्य-वञ्. हसात् यलोपः। ईयंता (स. स्त्री० ) भड़काये जानेवालेको स्थिति, १ क्रोध, गुस्मा। २ अन्य स्त्री सहवासजनित पतिके जिस हालतमें लोग भड़काये जायें। चिङ्गादि देखनेसे उत्पन्न पत्नीका अभिमानविशेष, ईर्या (सं० स्त्री०) ईर्यते गुरोः शास्त्रोपासनया ज्ञायते, रश्क। ३ परथीकातरता, हसद, डाह। जो पुरुष ईरि गतौ याचने च ण्यत्-टाप। १ भिक्षुव्रत, खयं सम्भोग कर नहीं सकता और दूसरोंको करते देख मजहबी फ़कीरजी तरह घूमनेकी हालत। गुरुके | जलता है, वह ईर्षाषण्ड कहलाता है। निकट रहकर इसका अभ्यास बढ़ाना पड़ता है। ईर्षालु (सं० त्रि०) ईर्षास्त्यस्येति, ईर्थ-आलुच् । २ शरीरके चार संस्थान, जिस्म को चार सूरतें। ईय॑स्य हि टहौति । पा ३।२।१५८। परधीकातर, हसदी। ईर्यापथ (सं० पु.) १ ध्यान धारणादि सीखने का ईर्षित (सं० त्रि०) ईर्षास्य संजाता, ईर्षा-इतच । उपाय, मजहबी फकीरका दस्त । १ सञ्जातर्षा, देख न सका गया। (लो०) २ ईर्षा, ईर्यापथ आस्रव-जैनमतमें मन वचन और कायको | इसद । “पत्यु र्वार्ध कमौर्षितं प्रसवनं नाशस्य हेतुः स्त्रिया: । (हितोपदेश) सहायतासे आत्मप्रदेशोंका हलन चलन होना योग है। ईषितव्य (सं० त्रि०) ईर्षा किये जाने योग्य, जो और इसी योग हारा आत्मामें कर्मको पुद्गलवर्गणाओंका हसद किये जाने काबिल हो। मखन्न होता है सो आस्रव है। (वर्गणा देखौ) इस आस्रव | ईर्षी (सं० त्रि.) ईर्षा ईष्य छ-इनि। ईर्ष्याशी के दो भेद हैं। एक सांपरायिक आस्रव, दूसरा ईर्यापथ | देख न सकनेवाला। आस्रव। शरीरधारी आत्माओं से कोई भी ऐसौ ईष, ईर्षालु देखो। आत्मा नहीं है जिसके ज्ञानावरणादि कर्मों का (आयु- ईष्य क (सं० पु० ) दृष्टियोनि नामक लीव, हिस्सी टट्ट । कर्मको छोड़कर) प्रति समय बन्ध न होता हो। (त्रि.) २ ईर्षालु, हसदी। इसलिये जो क्रोध मान माया लोभ आदि कषायवाली | ईमाण, ईर्षालु देखो। श्रआत्मायें हैं उनके तो सांपरायिक आस्रव (शुभ ईर्ष्या, ईर्षा देखो। अशुभ फल देनेको शक्तिवाले कर्मों का पाना) होता ईर्ष्यालु, ईषांलु देखो। है और जो क्रोधादि रहित हैं उनके ईर्यापथ ईर्षी देखो। भास्तव (फल न देनेकी शक्तिवाले कर्मों का आना) ईर्ष देखो। होता है। ईल (सं० पु०) १ वन्यजन्तुविशेष, एक जङ्गली ईर्यापथक्रिया-सांपरायिक प्रास्रवके ३८ भदौमसे एक जानवर। २ मत्स्यविशेष, किसी किस्मकी मछली, भेद। गमनके लिये जो क्रिया को जाय उसे ईर्यापथ- | बांग। क्रिया कहते हैं। (जैनशास्त्र ) ईलि (सं० स्त्रो०) ईयते स्तयते, ई-कि डस्य च ईर्यासमिति (सं० स्त्री०) निरीक्षणके साथ गमन, देख- लः। खड्गाकार छुरिका विशेष, तलवार-जैसा चाक । देखकर चलना। जैनमुनियोंको सूर्योदयके पश्चात् | इसे ईलिका, ईली, करपाली, करपालिका और गुप्तिका लोगोंके आवागमनसे मर्दित मार्ग होनेपर साढ़े तीन | भी कहते हैं। हाथ आगे देखकर चलनेका नियम है। इससे पैरके 'ईलिका, ईलि देखो। ।