पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१०१

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ईलिन-ईशितव्य ईलित (स• त्रि०) ईड्-त, डस्य च लः। स्तुत, । ईशाध्याय (सं० पु०) ईशोपनिषत् । जो तारीफ या चुका हो। ईशान (सं. क्लो०) ईश-चानश् । ताच्छील्यवयौवचन- ईलिन (स० पु०) तसके पुत्र और दुष्यन्तकै शक्तिषु चानश् । पा ।।१२९ । १ ज्योतिः, रौशनी। (पु.) पिताका नाम। २ महादेव। ३ एकादशके मध्य रुद्रविशेष । ४ शिवको ईली, ईलि देखो। अष्टमूर्तिमें सूर्य मूर्ति। ५ रुद्रस ख्या, ११ । ६ श्राः वत् (वैत्रि.) इसप्रकार सप्रताप, ऐसा शान्दार। नक्षत्र । ७ साध्य विशेष। ८ विष्णु। ८ व्यक्तिविशेष. ईश्-१ अदा० आत्म० अक० सेट। यह धातु अधि- किसी शख्न सका नाम। १० प्रभु, मालिक । ११ जैन कार, आज्ञा और शासन अर्थ में आता है। मतमें माने गये १६ वर्गों में दूसरा स्वर्ग। (वै० पु०) २ प्रभु, मालिक। ईशानकृत् (वै० त्रि०) अपने अधिकारको काममें ईश (स. त्रि०) ईश-क। १ अधिकारयुक्त, काबिज, लानेवाला, जो अपनी लियाकत इस्तमाल करता हो। हिस्स दार। २ योग्य, काबिल। ३ एकाधिकारी, | ईशानकोण (स० पु०) ईशानाधिष्ठितः कोणः, पूरी मिलकियत रखनेवाला। ४ प्रधान, बड़ा। शाक तत्। पूर्व तथा उत्तरके मध्यका दिक्कोण । (पु०) ५ स्वामी, मालिक। शिव, महादेव ।। इस कोणके अधिपति शिव हैं। ७ विष्णु। ८ रुद्र। ८ नेता, राह देखानेवाला। ईशानज (सं० पु.) ईशाने इन्द्रस्य कल्पे जातः, १० एकादश संख्या, ग्यारह हिन्दसा। ११ आर्द्रा ईशान-जन-ड। ईशान कल्पभव एक प्रकारके देवता। नक्षत्र। १२ ईशावास्य उपनिषद्। १३ पारद, ईशानवमा-एक प्राचीन मौखरिराज। इनकी पारा। १४ अञ्जनरस। १५ पञ्चवक्त्ररस। महिषीका नाम लक्ष्मीवती था। मगधराज कुमार- ईशता (सं० स्त्री०) ईशत्व देखो। गुप्तने इन्हें पराजित किया था। भीखरि राजग देखी। ईशत्व (सं० ली.) ईशस्य भावः, ल । प्राधान्य, बड़ाई। ईशानवायु ( स० पु०) पूर्व और उत्तर मध्यवर्ती दिक् ईशन (स.ली.) ईश-ल्य ८। शासन, हुकूमत। कोणसे चलनेवाला वायु । यह कट होता है। (वेदाकनिक) ईशसखि (सं० पु.) ईशस्य सखा, ततष्टच् समासान्तः। ईशाना, ईशानौ देखो। शिवके मित्र कुवेर। ईशानादिपञ्चमूति (स० स्त्री०) ईशान पादियस्यां ईशलिङ्गिनी, ईशलिङ्गी देखो। तादृशः पञ्चमूर्तयः। महादेवको पांच मूर्ति अर्थात् ईशलिङ्गी (सं० स्त्री० ) विष्णुकान्ता लता, एक बेल। ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात । ईशा (सं० स्त्री.) ईश-अ-टाप। १ लाङ्गलदण्ड, ईशानाध्युषित (स० पु०) ईशानेन अध्यषितः । हलका डण्डा। ईशस्य भार्या, आप। २ शिवपत्नी, तीर्थविशेष। (भारत शाय) दुर्गा। ३ स्वामीकी स्त्री, मालकन। ४ शक्ति, ताकत । ईशानी ( स० स्त्री० ) ईशानस्य पत्नी, डोप । १ दुर्गा। ईशादण्ड (स.पु.) शकट प्रभृतिके चक्रमें लगने वाला दण्ड, पहियेका डण्डा। ईशावस (स० पु०) कर्पूर विशेष, किसी किम्मका “योजनानां सहस्राणि भास्करस्व रथो नव । काफ र। यह भेदी, वृष्य, मदापह तथा अति शुभ्र ईशादणस्तथे वास्य दिगुणो मुनिसत्तम ॥” (विष्णुपुराण रा२) होता है और उन्माद, टषा, श्रम, कास, कमि, क्षय, अर्थात् नव योजन पर्यन्त सूर्यरथ और उससे खेद एवं अङ्गदाहको नाश करनेवाला है। (वैद्यकनिघण्ट) हिगुण ईशादण्ड विस्त त है। ईशावास्य (स लो०) ईशा वास्यं पदं वर्तते, अश ईशादन्त ( स० पु०) ईशेव दी? दन्तोऽस्य, बहुव्री०। आद्यच । ईशा उपनिषत्। उपनिषद, देखो। १ उदग्रदन्ती, बड़े दांतका हांथी। २ हस्तिदन्त, ईशितव्य (सं० त्रि०) ईश-तव्य । १ अधीन, मातहत, हाथीदांत। जो हुका मान सकता हो।