ईसाई दाक्षिणात्यमें सर्वप्रथम ईसाई धर्म चलाया था।, हो गयी थी। ६६० ई०को धर्माचार्य जेसजावुसने दाक्षिणात्यवासी देशो ईसाई उन्हींको अपना धर्मपिता (Jesajabus) पारस्य के प्रधान ईसाई याजकको और ई के १४वें शताब्दसे पूर्वावधि स्वयं ईसा मसीह । एक पत्र लिखा। उसके पढ़नेसे समझ पड़ता है- जैसा समझते थे। वे पारस्यसे आये नेष्टोरियान बिशप- ऐसा कोई आदमी न था, जो मलबार उपकुलके को आज्ञाके अधीन थे। ई के ७वें शताब्द में पारस्यके देशी ईसायियोंको भलीभांति उपदेश देता। ई०के ईसाई समाजने अपनेको टोमस ईसाईके नामसे 4वें शताब्दमें अर्मनी टोमसने लिखा था,-मलबारके अभिहित किया, जिसके अनुसार मलबारस्थ अज ईसाई वन्य पशुको तरह वन और गिरि-गह्वरमें ईसाइयों ने भी अपना नाम 'टोमस ईसाई' रख रहते हैं। ई० के १४वें शताब्दमें जोदनास ने ( Friar लिया। मलबारस्थ ईसाइयों की संख्या अधिक रहते। Jordanus) देखा था-वे नाममात्रके ईसाई हैं, उनमें भी देशी लोगोंके उत्पीड़नसे अवस्था अत्यन्त शोचनीय दीचा (Baptism) नहीं। आज भी कनाडाप्रदेशके अनेक असभ्य दिन्टु ओंमें ईसाई धर्मके चिह्न मिलते .. पापसे उक्त खर्गीय पदार्थ बचानेके लिये ईसा मसीह एवं दिव्यात्माको हैं। इससे बोध होता है-वे सकल असभ्य अनेक बनाया था। पविवात्मा ( Intelligences ) के मध्य ईसा मसीह भी दिन ईसाई रहे होंगे। उन्होंने हिन्दुओं का भय अथवा एक जन है। वे सूर्यलोकमें रहते थे। फिर मानव का पाप छोड़ाने पीर आत्माकी मुक्ति बनानेको यहदियोमें मनुष्यकै शरीरपर ईसा अवतीर्ण अपनी शोचनीय अवस्था देख और हिन्दु प्रोंके समाजमें हुये। यहदियोंने तमोसे अन्धे बन उन्हें क्र शपर चढ़ाया था। किन्तु | समानेका कोई उपाय न पा क्रम-क्रमसे हिन्दूधर्म उनका मरण न हुआ, उन्होंने मानवका पाप निज रक्तसे धो डाला।। पकड़ा होगा।' वास्को-डि-गामाके भानेसे पहले पृथिवीके सकल कार्य शेष कर पुनरुत्थानपूर्वक ईसा निज राज्य सूर्य- मलबारी ईसाई स्थानीय नृपतिके अधीन सैनिक लोकको चले गये। उन्होंने जाते समय निज धर्म चलाने और निज विभागमें घुस सके। उस समय धर्मकर्म चलानेको शिष्यको सात्वना पहुचाने के लिये दूतखरूपसे पाराक्लिट भेजने को वात | नेष्टोरियान बिशप, याजक, पुरोहित प्रभृति लगे थे। . कही थी। मनि ही ईसाके प्रेरित वे सान्त्वनाकारी दूतरूप पाराक्लिट रहे। पोतुगीज नौसेनापति भारतमें जहां प्रथम उतरे, बहों मनिकै मतानुसार पात्मा चन्द्रलोक और सूर्यलोकसे पाप छोड़ाने पर “परमपुरुषमैं समाता है। मनिकीय ईसाकै देहका पुनरुत्थान नहीं ईसाई उनसे जा मिले। पोर्तगीजों के साथ जो सकल मानते। उनके मतसे पापी आत्मा स्वर्गलोकको जा नहीं सकता, किसौ | याजक रहे, वह उक्त ईसाइयोको काथोलिक समाज में - पादहमें पहुंच जौवरूपसे जन्म लेता है। वाइविलका मूसा कृत धर्मशास्त्र | मिलानेको चेष्टा करने लगे। उनको उत्तेजनासे ईश्वर-प्रत्योदित नहीं, एकमाव प्रेत हो उसका प्रणयनकर्ता है। इसीसे | १५६०ई०को भारतमें पोतुगीजोंके अधिक्कत स्थानपर कोई बाइबिलकै पादिशास्त्रको नही मानता। धर्मपरायण मनिकीयोंको विधमियोका विचारालय खुला था। अनेक तर्कवितर्क मांस खाना मना है। उन्हें वानप्रस्थ ले चिरदिन ब्रह्मचारी को तरह पर इतना विसम्बाद बढ़ा, कि बहुतोंको स्वमत रक्षार्थ रहना पड़ता है। भनिकीयोंमें धर्मनिष्ठ और अल्पधी दो प्रकारके ईसाई होते हैं। रता बहाना पड़ा। 'धर्मनिष्ठ ईसाई मांस, डिम्य, दुग्ध, मत्स्य, मद्य एव' अपरापर मादक १५६८ ई०को कोचीनके निकटवर्ती उदयम्मूर · द्रव्य नहीं खाते और रोटी, दाल, तरकारी तथा फलमूलादिसे पति कष्टके | नगरमें गोयाके प्रधान धर्माचायने ( Arch-bishop ) साथ अपना काम चलाते हैं। कामक्रोधादि षड़रिपुको मारना हो एक महासभा लगायी थी। वहां विस्तर मालोचनाके .. उनका मुख्य उद्देश्य है। अस्पधो दुर्वल ईसाई स्त्रो पुवकै साथ सकल- बाद सिरोयक ईसाई रोमक-समाजमें मिल गये।* अकार सुख उठा सकते है। उनके धर्मसमाजका कार्य देखनेको एक इसी प्रकार भारतसे नेष्टोरियान् समाज उखड़ा था। सभापति (ईसा मसौइके प्रतिनिधिस्वरूप), बारह प्रधान (ईसाके दूत- सिरीयक ईसायियोंने रोमक-समाजको अधीनता खरूप ) और वारह विशप रहते हैं। उनके नौचे अन्यान्य याजक है। 'वै ईसाई सम्प्रदायको दोचा पौर शेषभोजपर्व ( Eucharist) को • उसी समय पोर्तुगीज राजप्रतिनिधियों ने भारतक सब बन्दरों में मानते हैं। मनीकीय रविवार, ईसाके पुनरुत्थान ( Easter) और | इसलिये प्रहरी वे ठाये, जिसमें पारस्य किसौप्रकार नेटोरियान् विशए , यहूदियोंके पेरिसकट ( Pentecost) पर्वादिमें उपवास करते है। पान न पाये।
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