पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१४३

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१४२ ईसाई भननी समाज । अर्मनी समाज ईसापर एक ही प्रकृतिका आरोप ई.केरे शताब्दको अर्मेनिया राज्यमें ईसाई धर्म | करता है। उसके मतमें केवल ईश्वरसे ही दिव्यात्मा- .पहले घुसा था। उस समय मेरुजनेश नामक एक ( Holy Ghost )ने अवतरण किया। दीक्षाके समय व्यक्ति विशप रहे। किन्तु लोग ईसाई धर्मको अधिक मत्थ पर तीन बार जल छिड़कना पड़ता है। ईसाके मानते न थे। २७६ ई के समय सेण्ट ग्रेगरीने पाकर सशिष्य भोजोद्देशक पर्वपर सबको खालिस शराब और अमनौराज तिरिदतेशको ईसाई धर्मको दोक्षा दो। पावरोटी देनेसे पहले शराबमें पावरोटो डुबोयो जातो उसी समयसे अमनोमें ईसाई धर्म प्रबल पड़ा है। है। याजक, पुरोहित प्रभृति धर्माध्यापक ही मरने- ई०के ७वें शताब्दको अर्मनी भाषामें बाइबिलका पर तेल लगानका अधिकार रखते हैं, दूसरे नहीं। अनुवाद हुआ। ईसा मसीहको दो प्रकति पर गड़बड़ ईसाई महापुरुष भी अमनी ईसाई समाजके उपास्य पड़नेसे अमैनियोंने कालसिडन-महासभाका आदेश हैं। ये लोग अधिक धर्मोत्सव नहीं मनाते, न सुन एक प्रकृतिवादीका पक्ष पकड़ा था। फिर फिर भी ग्रोक समाजको अपेक्षा अधिक उपवास अर्मनी-समाज पृथक हुआ और ग्रेगोरोके कारण प्रथम करते हैं। पुरोहित एकबार विवाह कर सकते हैं। नाम ग्रेगोरीय ( Gregorian) पड़ा। कुछ काल- रूसाधिकृत अमनो एरिबान नगरके निकट एसमिया- तक इस समाजमें ज्ञानतत्वपर घोरतर आन्दोलन दजिम नामक आश्रममें प्रधान धर्माचार्य रहते हैं। रहा। ई०के १२ शताब्दको अमनी ईसायियोंमें यह स्थान अर्मनी समाजका महातीर्थ है। प्रत्येक 'का' (Klah ) नामक एक महाज्ञानीने जन्म लिया। अमनी ईसाईको जीवन में एकबार इस महातीर्थका था। उनके सकल आध्यात्मिक ग्रन्थोंको अर्मनी प्रति दर्शन करना पड़ता है। समादरको दृष्टिसे देखते हैं। इस समाजके लोग प्रोटेष्टाण्ट सम्प्रदाय । हमेशा रोमक-समाजसे घृणा करते हैं। जब इसलाम के १६वें शताब्दमें यह सम्प्रदाय उपजा है। धर्मको रणभेरी अर्मनीमें बजी, तब अर्मनी समाजने इस सम्प्रदायके अभुदयसे पूर्व पोपने अपनेको समस्त युरोपकै राजगणसे सहायता देनेकी कही। उसी समय ईसाई जगत्का अधिपति बताया था। जहां ईसाई पर पोपने कई बार (११४५, १३४१, १४४० ई.) न रहते, वहां पोपके मतसे जन-मानवशून्य वन थे। अमनियोंको रोमके शासनाधीन बनानेकी चेया वह ईसाई समाजके शीर्षस्थानपर बैठ बाइबिल और को थी। अमनोके कितने ही सम्भान्त व्यक्ति सम्मत ईसाई मतके विरुद्ध अनेक अन्याय-कार्य करने लगे। भी हो गये। किन्तु जनसाधारणका मनोभाव किसी इसपर धार्मिक ईसाई मात्र उनसे मन हो मन अत्यन्त प्रकार न बदला। इसपर पोप (१२श) वैनिडिकने विरक्त हो गये। किन्तु प्रबल पराक्रान्त पोपके विरुद्ध अर्मनी-समाजको तीव्र समालोचना कर ११७ दोष बात कहनेका साहस किसौको न था। अनेक लोग देखाये थे। उसी समय कितने ही अमनी रोमक पोपका अत्याचार सह और मुख बन्दकर रह न सके। समाजमें मिल गये। इससे उन्हें संयुक्त अर्मनी १५१७ ई में महात्मा मार्टिन लूथरने समाजके (United Armenians) कहते हैं। इस मिलित संस्कार करने पर कमर कसो। वे जर्मनोक समाजके लोग आजकल पारस्य, रूस, मासयेल, पन्तर्गत विटेम्बर्ग नगर में पुस्तकके प्रधान अध्यापक इटली, पोलेण्ड प्रभृति स्थानोमें रहते हैं। ई०के १७वें। हो गये। उसी समय तेजल नामक एक ईसाई शताब्दमें मुसलमानोंके प्रबल अाक्रमपसे बहुतसे उदासीन विटेम्बर्ग में जा पहुंचे। ये साधारणको लोगोंने वाध्य हो इसलाम धर्म पकड़ा था। फिर भी पोपका मुक्तिपत्र दे कर ठग रहे थे। धर्मवीर लथरको अधिकांश अर्मनी आजतक पूर्वमत और विश्वासको वह अच्छा न लगा। उन्होंने अपने ८५ प्रधान बचाते चले पाते हैं। । शिष्यों को तेजेलको गति रोकने पर रखा। तेजसने