पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१४४

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ईसाई १४३ पीठ देखायो। पोपने लूथरके विरुद्ध वृषभान्ति ! असम्मत हुये। उनके परामर्शसे वारमस नगर में दण्डनियोग-पत्र भेजा था। किन्तु लूथरने पोपको एक महासभा लगी। इस सभामें जर्मनीके सकल न मान १५२० ई०को १६वौं दिसम्बरको विटेम्बर्गके राजा और अध्यापक आ पहुंचे। संस्कारके विरुद्ध तोरणद्वार पर सबके समक्ष दण्डनियोगका पत्र कितनी ही बातें निकली थौं। लूथर भी इस सभामें जला दिया। आये। सभाने लथरसे कहा,–'तुमने रोमक- इसी समय पर स्विजरलेण्डमें कई अनुचर समाजके विरुद्ध जो आपत्ति उठायो, वह बहुत "पोपका मुक्तिपत्र ( Indulgences ) बांटते थे। हिन्द ठीक है। इस सुयोगमें परिवर्तन करो। तुम्हारा ऑमें जैसे पापका प्रायश्चित्त करनेको अर्थ देकर मङ्गल होगा।' लूथरने निर्भीक चित्तसे उत्तर दिया,- ब्राह्मण-पण्डितसे व्यवस्थाको लेना पड़ता, वैसे ही रोमक 'सच बात कहंगा। प्राण जाने में कोई क्षति नहीं। समाजमें उक्त मुक्तिपत्रका व्यवहार चलता है। उस मैं ईश्वरके आदेशसे बंधा हं। मेरे हृदयका बलवान् कालमें अनेक ईसाइयोंको विश्वास था,-इस मुक्तिः । विश्वास जबतक भ्रान्त प्रमाणित न होगा, तबतक . पत्रको खरीदने से हमारे पापका प्रायश्चित्त होगा| रोमक समाजका गौरव कैसे समझ पड़ेमा!' उनको.. और पापका दुःख उठाना न पड़ेगा। उस समय यह बात जर्मनीमें सर्वत्र चल पड़ी। विपक्षने लघरक स्विजरलेण्डमें जुइङ्गली नामक एक महापण्डित थे। प्राण लेने का बीड़ा उठाया था। किन्तु साक्सनो- वे मुक्तिपत्रके घोरतर विरोधी बने । लथरकी तरह राज फेडरिकके सत्परामर्श से लूथर कुछ दिन छिपे वे भी पोपके समाजका बन्धन एककाल हो तोड़ने की रहे। उसी समयपर साक्सनीमें सर्वत्र उनका मत चेष्टामें लगे थे। जूरिच, बरन, वेसिल प्रभृति स्थानके सादर माना गया। इङ्गलेण्ड* और देनमार्कक लोगोंने उनका मत मान लिया। अधिपति तथा प्रजावर्ग भी समाज-संस्कारकै पक्षपाती ___ इधर लथरने जर्मनीके उच्चपदस्थ व्यक्तिको सम्बोधन हुये थे। देनमार्क के राजा लथरका एक शिष्य बला कर कहा,-"वाटगण ! रोमके विपक्षमें खड़े हो | निज राज्यमें यह नया मत चलाने लगे। जायो। यही प्रकृत समय है। घर घर क्रश- १५२२ ई०को लथरने मेलयन (Melanction)के युद्धकी बात का ध्यान रहना चाहिये। भयङ्कर रोमक | साथ बाइबिलके शेषभाग इनोल (New Testament)- तुर्कमे सभीको खा डाला है। जगतके धनसे रोमक को अनुवाद कर छपाया था। अनुवाद देखकर लोग भाण्डार भर गया है।" लघरने रोमक-समाजके सात चकराये। उन्होंने समझ लिया-'पोपके नियमसे अङ्ग माने न थे। उनके मतसे धर्मको दीक्षा, ईसाका ईसा मसोहका मत सम्पूर्ण विभिन्न है। लूथर जो मशिष्य भोजपर्व और निग्रह स्वीकार, तीन ही ईसाई | मत चलाते, उसीको यथार्थ ईसाका मत मानते हैं।' 'धर्मके प्रधान अङ्ग हैं। फिर जर्मनीके सत्व्यक्तिने प्रकाश्यरूपसे रोमका १५२१ ई० को ५म चालेस जर्मनी में रहे। पोप- धर्मानुशासन छोड़ा था। जर्मनोके वषकने धर्मके पर वे कुछ भक्तिवद्धा रखते थे। रोमक-समाजके | लिये अस्त्र उठाये। जर्मेन राज्य में सर्वत्र घोरतर कर्ट पक्षगणने लूथरका दोष देखा सम्राट्को भड़- | काया। सम्राट् समाजसंस्कारके विरोधी बन गये। १५२३ ई में फ्रान्स-राज फ्रान्सिस की भमिनो उन्होंने लूथरके पुस्तकादि ध्वंस करनेको आदेश दिया | | मार्गारेटने नतन मतका पक्ष लिया और फ्रान्स- था। किन्तु राज्यके प्रधान प्रधान सचिव उससे राजाके नाना स्थानोमें बहुतसे लोगोंने इस मतको ग्रहण किया। फान्सराज प्रथम संस्कारके पक्षपाती - इस देशमै जेसे पल्प एवं अधिक पापकै अनुसार अर्थ लगाकर प्रायवित्त करना, वैसेही पोपका मुक्तिपत्र खरीदने में विभिन्न मूल्य देना • कितने हो लोगोंके मतानुसार १२६१ ई०को धर्मप्रचारक विक्लिक ..पड़ता था। (Wicliffe )से धमें समाजसंसारका सूत्रपात पा ।