पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१५३

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१५२ उत्तवाक्य-उक्षा उक्तवाक्य (सं० वि०) १ सम्मति दे चुकनेवाला, जो राय । उक्थामद (३० लो०) प्रशंसा एवं प्रसन्नता। बता चुका हो। (क्लो०) २ पादेश, हुका, कानन्। । उक्था (वै० ली.) उहार एवं भजन। उक्तानुक्त (सं० त्रि०) कथित एवं प्रकथित, कहा | उक्थावी (वै० त्रि.) श्लोकका प्रेमी। और न कहा। उक्थाशास्त्र (वै० लो०) पठन एवं प्रशंसा। उक्ति (सं० स्त्री०) वाक्य, निर्देश, जुमला, इजहार, | उथिन् (वै. त्रि०) १ श्लोक पढ़नेवाला। २ जिसके बयान्। साथ प्रशंसा आ जाये वा (क्रियासंस्कारमें) उक्थ रहे। उत्तोपसंहार (सं० पु०) संक्षिप्त वर्णन, मुखफ फ़फ उक्थ्य (वै० त्रि०) १ श्लोक वा प्रशंसा सुनानेवाला, बयान्, थोड़ेमें कही हुई बात। जो प्रशंसा करने में निपुण हो। (पु.) २ प्रातःकाल उकत्वा (सं० अव्य.) कथन करके, कहकर। और मध्याह्नके यज्ञका तर्पणोदक। ३ एक सोमयज्ञ। उक्थ (स. क्लो०) १ वाक्य, जुमला, कहावत। ४ प्रार्थना मार्गका एक संस्कार। यह ज्योतिष्टोमका २ क्रियासंस्कारमें एक प्रकारका पठन वा उच्चारित | एक भाग है। पाठ। उकथ शास्त्रका एक अवयव है। यह प्रायः | उक्लद (स.पु.) वमि, के। परिपाटी निर्माण करता और साम तथा यजुःके | उक्ष-वादि० पर० सक० सेट। यह निभलिखित प्रतिकूल चलता है। महद वा वृहद-उक्थ तीन अर्थों में आता है-१ श्रा, करना, २ विन्टु डालना, श्रेणियों में पठनकी परिपाटी ढालता है। उक्त तीनो ३ बिखेरना, ४ परिष्कार करना, ५ अङ्करित होना, श्रेणियों में अस्मी ऋक रहता, जो अग्निचयनके अपना बल बढ़ाना और ७ बलवान् बनना। पीछे मन्त्रपाठमें कही जाती हैं। ४ सामवेदका एक उक्ष (२० त्रि०) १वृहत, बड़ा। २ शुद्ध, साफ। नाम। (पु०) ५ अग्निका एक रूप। इस अर्थमें यह शब्द किसी-कोसो यौगिक पदके पोछे उक्थपत्र (वै. वि.) श्लोकोंको पत्रको भांति लगता है। रखनेवाला। उक्षण (सलो०) उक्ष भावे ल्य ट । सेचन, प्रोक्षण, उक्थपात्र (सं० लो०) उक्थ पढ़ते समय चढ़ाया छिड़काव । “वशिष्ठमन्त्रोचपजान् प्रभावात्।” (रघु ५।२७) जानेवाला पात्र वा तर्पणोदक । उक्षण्यायन (वै० पु०) उक्षण्य का गोत्रापत्य। उक्थभृत् (वै० त्रि.) उक्थको समर्पण करने वा| उक्षण्य (वै० त्रि.) उक्षन्की भांति व्यवहार वा कार्य चढ़ानेवाला। करनेवाला, धनकी वर्षा करनेवालेका अभिलाषी। उक्थवत् (दै०वि०) उक्थसे मिला हुआ। उक्षतर (सं० पु०) उक्ष इति टरच । वस्सोक्षानुवर्ष भेभ्यश्च उक्थवर्धन (वै त्रि०) प्रशंसासे प्रसन्न हो अपना | तनुत्वे । पा ५॥३॥९१ । १ छोटा वृष, नन्हां बैल । २ महावृष, बल बढ़ानेवाला। बड़ा बैल। उक्थवाहस् (वै त्रि.) १ श्लोक समर्पण करनेवाला। | उक्षतरी (सं० स्त्री०) उक्षतर-डीप। १ छोटी गाय, २ श्लोकका समर्पण पानेवाला। बछिया। २ वृद्ध गवी, बड़ी गाय। उक्थशंसिन् (वै० वि०) १ प्रशंसा करनेवाला । | उक्षन्, उचा देखी। २ उक्थ पढ़नेवाला। | उक्षवश (वै० पु०) वत्स, बछड़ा, बच्छा । उक्थशस् (पु.) उक्थशस देखो। उक्षवेहत् (वै. पु.) नपुंसक षण्ड, बधिया बैल । उक्थशस (वै० वि०) श्लोक कहनेवाला, जो प्रशंसा | उक्षा (स० पु०) उक्ष खन्-कनिन् । शन् उच्चनित्यादि । करता हो। उग १।१५। १ वृष, बैल, सांड़। २ ऋषभ नामक उक्थशास् (स्त्री०) उक्थशस देखो।' . . .:. ओषधि। (वि.) ३ सेचक, सौंचनेवाला। "उचा उकधशष्क (वै० त्रि.) उच्च स्वरसे श्लोक पढ़नेवाला। समुद्रो अरुषः सुपर्शः।". .( ऋक् ५।४७५३) .......