पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१६६

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उच्छिष्टभोजिन्-उच्छ्य उच्छिष्टका खानेवाला, जो दूसरेका जूठा खाता हो। उच्छेट (सं० त्रि०) उत्-छिद-च। उच्छेदकारक, (लो) ३ अपरके उच्छिष्टका अशन, दूसरेका जठा नाशक, उखाड़ डालनेवाला, जो बरबाद कर देता हो। खाना। उच्छेद (सं० पु०) उत्-छिद् भावे धज । १ उत्पाटन, उच्छिष्टभोजिन् (सं० त्रि.) नोच व्यक्तिका भुक्तावशिष्ट ! उन्म लन, उखाड़, नोचखसोट। २विनाश, ध्वंस. खानेवाला, जो दूसरे का जूठा खाता हो। बरबादी। “सत्य' भवोच्छ दकरः पिता ते।" (रघु) उच्छिष्टमोदन (सं० लो०) उच्छिष्टं मधु तेन मोद्यते। उच्छेदन (सिं.ली.) उच्छेद देखो। सिक्थ, मोम। मोम देखो। उच्छेदनीय (सं. त्रि.) उत्पाटनयोग्य, उखाड़ने उच्छोषक (सं० त्रि.) उत् अर्ध्वस्त शीर्ष येन, कन्, काबिल, जिसे कोई बरबाद कर सके। बहुव्री०। १ उन्नत शिरायुक्त, ऊचा सर रखनेवाला। उच्छेदिन (स० त्रि.) उन्म लनकर, उखाड़ डालने-. (लो०) २ उपाधान, तकिया। इससे शिर उठा वाला, जो बरबाद कर देता हो। रहता है। ३ मस्तक, शिरःस्थान, खोपड़ा। उच्छेद्य, उच्छे दनौय देखो। "उच्छौष के श्रियै कुर्यात् भद्रकाल्य च पादतः । उच्छष (सं० पु. ) उत्-शिष्-घ । अवशेष, बचत। ब्रह्मवास्तो: पतिभ्यान्तु वास्तुभध्ये वलिं हरेत् ॥” (मनु ३।८९) उच्छषण (स० लो०) उत्-शिष्-कर्मणि ल्य ट। (पु.) ४ शय्यादोष विशेष, विस्तरका एक ऐब।! उच्छिष्ट, बची हुई चोज। "उच्छीष के ससुन्नाई वस्तिः कुर्याच्च मेहनम्।” ( मुश्त) उच्छष्य (सं० वि०) उत्-शिष् निपातनात् सिद्धम् । अवशेषणीय, बचा रखने काबिल, जो बच सकता हो। उच्छष्क (सं० वि०) १ उपरिभागमें शुष्क, मुरझाया | हुआ। “उच्छुकमांसरुधिरत्वचस्नायुनद्धः।" (ललितविस्तर) "उच्छषणं भूमिगतमजिझस्थाशठस्य च । २ सन्तप्त, गर्मागर्म। दासवर्गस्व पिवे भागधेयं प्रचक्षते ॥” (मनु १२४६) उच्छुम (सं० लो०) सम्मम, मोह, घबराहट। उच्छोचन (सं० त्रि०) उत्-शुच्-ल्य ट। ज्वलन्त, उच्छ्ष्म न्, उच्छु म देखो। भभकता हुआ, जो जल रहा हो। उच्छ (हिं० स्त्री०) उच्छास विकार, एक खांसी, उच्छोषण (सं० त्रि. ) उत्-शुष्-णिच-ल्य ट । धांस। खाते-पीते समय किसी द्रव्यके मुंहमें उलट १ सन्तापक, हरारत पैदा करनेवाला। २ जन- आन या पेटमें पहुंचनेसे रुक जानेपर इसका वेग शोषक, सुखा डालनेवाला। “न हि प्रपश्यामि मयापनुद्याद बढ़ता है। उच्च लगनेसे आंखों में आंसू भर आते हैं। यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।” (गीता रा८) प्रायः खाने-पीने में त्वरा करने और मनको एकाग्र न ली . ) भाव ल्य ट। ३ सम्य क शोषण, पूरी युबूसत, रखनसे इसकी उत्पत्ति है। खासौ सुखावट। उच्छड़ा (सं० स्त्री०) रचूड़ देखो। "उच्छीषणं समुद्रस्य पतनं चन्द्रसूर्ययोः।” (रामायण ३३३६।२१) उच्छन (सं० त्रि.) उत्-श्वि-त। १ स्फोत, सूजा या फूला हुआ। २ उन्नत, बुलन्द, ऊंचा। ३ उच्छ- उच्छोषुक (सं० त्रि.) उत्-शुष् बाहुलकात उका। सित, मुखके आन्तरिक श्वाससे दबा हुआ। ४ स्थ ल, ऊध्र्वशोषयुक्ता, मुरझाया हुआ । २ अर्व शोषक, जस्साम, मोटा। सुखा डालनेवाला। उच्छृङ्खल (सं० त्रि०) उद्गतं शृङ्खलं यस्य, बहुव्री०। उच्छ य ( स० पु० ) उत्-श्वि-अच् । १ उच्चता, १ अबाध, खुद-इख तियार, जो किसीको कैदमें न उंचाई। २ उन्नति, तरक्को, बढ़ती। ३ उच्च संख्या, ऊंची अदद। “उच्छ्रयेश गुणितं चितेः फलम्।" ( लीलावती) हो। २ नियमरहित, बेकायदा। उच्छतव्य (सं.वि.) उच्छेद-योग्य, उखड़ने लायक, ४ उद्गमन, उठान। ५ वृक्ष पर्वतादिका उमेध. दरख त पहाड वगैरहका उरूज। ग्रहादिका जिसे कोई बरबाद कर सके। Vol III. 42 49 . III.