पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१८२

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उच्छन-उठतौ .. १८१ वृत्तिसे निर्वाह करना चाहिये। क्योंकि असत् प्रति-: “मगैवर्तितरीनन्ध मुटजागनभूमिषु ।” (रघु २५२) २ सहमात्र, एक ग्रहसे शिल श्रेष्ठ होता और उसको अपेक्षा भी उच्छ मकान् । वृत्तिका पद अधिक प्रशस्त है। | उटड़पा (हिं. पु.) उटहड़ा, उटड़ा, गाड़ी खड़ी "कुशूलकुम्भीधान्यो वा वैद्यहिकोऽस्तनोऽपि वा । करनेका डण्डा। यह गाड़ीके आगे लगता और जीवदापि शिलोकेन श्रेयानेषां परः परः ॥” (याज्ञवल्क्य १।१२८)। अग्रभागको उठाये रहता है। 'एकैकधान्यादि गुड़कोचयनमुञ्छः ।' (कुल्लू क) उटड़ा, उटड़पा देखो। २ उच्छशील, सौला बीनने वाला। उटारी (हिं. स्त्री०) पहुंटा, चारा काटने की लकड़ो। उन्छन (सं. ली.) उछि-ल्यट। संग्रहकरण, खेतमें उटेव (हिं. पु०) काष्ठखण्ड विशेष, लकड़ीके दो सोले या बाजारमें दानका बीनना। टुकड़े। यह छाजनकी धरनमें लगते हैं। इनपर उन्छवृत्ति (स. स्त्री०) धान्यकणाके संग्रहसे निर्वाह एक गड़ारी रखकर धरन जमाते हैं। . .. सौला बीननेका रोजगार। उट्टा (हिं. पु०) पोटनी। उज छशिल (सं० लो०) उज कञ्च शिलश्चेत्येकव- उठ-भा. पर० सक० सेट। इससे पाघात उपघात द्भावः। उच्छवृत्ति, सिल्ला बीननेका रोजगार। करने या मारने-गिरानका अर्थ निकलती है। "ऋतमुञ्चशिल ज्ञेयममृतं स्वादयाचितम् ।” (मनु ४५) उठंगन (हिं. पु.) १ अवष्टम्भ, पाया, भाड़, उच्छशील (सं० त्रि०) धान्यकणाके संग्रहसे निर्वाह टेकनी, थूनी। करनेवाला, जी सीला बीनकर काम चलाता हो। उठंगना (हिं. क्रि०) १ अवष्टम्भ पकड़ना, टेक उट (सं० पु०) शुष्क तृण, सूखी घास, फस। यह लेना, तकिया लगाना । २ आश्रयमें पड़ जाना, झोपड़े और छप्पर बनाने में लगता है। भरोसे रहना। उटकना (हिं. क्रि०) १ प्लव लगाना, कुदकना, उठगल (हि० वि०) मन्द, कुन्द, ग उठंगल (हिं० वि०) मन्द, कुन्द, गावदी। मूर्ख उछलना, कूदना। २ अनुमान बांधना, अन्दाज. व्यक्तिको 'उठंगल आदमों और कुशासित राज्यको लगाना। 'उठंगल मुल्क' कहते हैं। उटकनाटक (हिं० वि०) अटुभुत, अनोखा। उठंगवाना (हिं. क्रि०) उठंगनेको आज्ञा देना, उटक्करलैस (हिं० वि०) इच्छानुसारी, मनमाना, उठगानका काम दूसरेसे लेना। ऐसा-वैसा। उठगाना (हिं० क्रि०) अवष्टम्भ देना, टेक पहुं- उटङ्ग (हिं० वि०) १ सङ्कुचित, ऊंचा हो रहने चाना। २ आश्रयमें डालना, भरोसे रखना। कपाट वाला, जो नीचे न पहुंचता हो। १ कुनिमित, जो देनेको 'किवाड़ उठगाना' कहते हैं। . अच्छी तरह कटा छटा न हो। उठक (हिं. स्त्री०) उत्थान, उठान। यह शब्द उटङ्गन (हिं पु०) तृणविशेष, एक घास। यह प्राय: यौगिक पदमें लगता है, जैसे-बैठक-उठक।.. शीतल स्थान और नदौके कछारमें उपजती है।। उठगन, उठंगन देखो। .. .. तीनका रूप रहते भी चार पत्तियां लगती हैं। लोग उठतक (हिं. पु.) १ उड़तक, जोन् या काठोके • शाक बनाकर खाते हैं। हिन्दी में प्रायः गुठवा कहते बीचको गद्दी। इसे रखनेपर पिठलगे घोड़ेको सवारी हैं। उटङ्गन शीतल, लघु और कषाय होता है। इससे देते या माल लादते कष्ट नहीं पड़ता। २ अवष्टम्भ, मल सकता और सबिपात, ज्वर, प्रमेह तथा खास- पाया, टेक। . ... विकार घटता है। ............ . उठत-ब ठत, उठते बैठते देखो। ......... उटज (सं०: पु०) .उटाः तृणपर्णादयस्तेभ्यो जायते, उठती (हिं० वि० ) १ उद्गमनयोल, चढ़ती, बढ़ती जन ड। १ पर्णशाला, घासफूससे. बना. झोपड़ा। २ परिषति-थोल, झुकती, उतरती। ..... Vol III. 46