पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२०२

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उत्कल (उड़ीसा)-उत्कार मुशिंदकुलोके दीवान् मौर-हबीबने चुपके मराठोंको | -रेज-कर्माध्यक्षोंका सर्वदा देखते रहेना कि, वे परस्पर उड़ीसे बुलाया था। अलोवदों उन्हें भगानिके लिये विवाद बढ़ा रक्त न बहायें। द्वितीय-करदराजगणपर अनेक बार लड़े, किन्तु सफलमनोरथ न हो सके। सन्धिके अनुसार कर लगाना, किन्तु उनपर भी गवरन- १७४५ ई में रघुजी भोंसले बङ्गालपर चढे थे। उन्होंने मेण्टका कर न बढाना। तीय-कटक, पुरी और उडीसको हस्तगत किया। मौर हबीबको प्रतिनिधि बालेश्वर तीन खास सरकारी स्थान रहना और उनका बना रघुनी स्वराज्य को चल दिये। १७४७ ई में उपस्वत्व गवरनमेण्ट को ही मिलना। मीरजाफर मराठोंको कटकसे निकालने के लिये उत्कल (स० पु०) १उड़ीसा प्रान्तके अधिवासी। भेजे गये थे। किन्तु उनसे भी कुछ न बन सका। २ ब्राह्मणणिविशेष । ३ सुद्यन्नके एक पुत्र, तबामसे मराठे अफगानोंसे मिल गये थे। उत्कल प्रान्तका नाम चला है। ४ शाकुनिक, १०५१ ई.में अलोवर्दो मराठोंको उड़ीसेसे बहेलिया, चिड़ामार। (वि) ५ मारवाइक, बोझ भगाने के लिये ससैन्य कटक पहुचे। मराठे हार तो ढोनेवाला। गये, किन्तु किसीप्रकार उन्होंने देश न छोड़ा। इसलिये उत्कलाप (सं०वि०) उव्रत एवं विस्तारित पुच्छ- अलोवर्दीने प्रति वर्ष १२ लाख रुपया कर ठहराकर युक्त, खड़ी और फैलो पूछवाला। “तौरखली बहिभिरुन- उन्हें उड़ीसा फिर सौंप दिया। कलामः।" ( रघु १६६४) । मराठोंमें शिवभट शास्त्री प्रथम शासनकर्ता हुये थे। उत्कलि (सं• पु०) देवविशेष । १७५६ मे १८०३ ई. तक उन्होंने उड़ोसे पर शासन उत्कलिका ( सं० स्त्रो०) उत्-कन्न-वुन टाप् । १ उत्- चलाया। इसी समय मराठोंके पोड़नसे घबरा अनेक कण्डा, गहरी चाह। २ जर्मि, लहर। ३ पुष्य- प्रजान जन्मभूमि छोड़ी। उसमें किसी किसोने | कलिका, फूलको कली। ४ कोड़ा, नखराबाजी। अंगरे साहाय्य भी मामा। उत्कलिकाप्राय (सं० लो• ) समासयुक्त गद्यभेद, ५८.३ ई० को १४ वों अनोबरको अंगरेजोंने जिस इबारतमें मिले हुये अलफाज, ज्यादा रहें। कटकका दुभद्य दुर्ग जीता था। एक ही दिन के यत् । "भवेदुत्कलिकाप्रार्य समासादर दृढ़ाचरम् ।" (छन्दोमचरी) सामान्य युद्ध में उन्होंने मराठोंके हस्तमे उड़ीसका उत्कर्षण (स' लौ०) उत्कर्ष-त्य ट। कर्षण, शासन भार निकाल लिया। उनका प्रबन्न प्रताप जोताई। उसी दिन उड़ीसे राज्यसे अन्तर्धान हुआ। किन्तु उत्कलित (सं० वि०) उत्-कल छ । १ उत्कण्डित, अधिकार मिलते भी राज्यको सामग्रीका अभाव था। खाडां, गहरी चाह रखनेवाला।२ बुद्धिमान्, अलमन्द। आमदनी देनवाले जमीन्दार और फसल तैयार करने- उत्का (सं० सी०) उत्कन्-टा। उत्कण्ठिता वाले किसान न रहे। अंगरेजोंने देखा-'सकड़ों | नायिका। आम म वशून्य हैं। उनमें शृगाल वास करते हैं। उत्झाका (सं• स्त्री. ) उत्क पक-अच्-टाप् । प्रति- कुक्कर प्रडरी हैं।' उन्होंने घोषणा निकाली-'अच वर्षपसूता गवी, हरसाल व्यानवाली गाय । प्रजाद। काई भय नहीं। जो जहां रहे, पाकर निज | उत्काकूत् (सं० वि०) उव्रतं काकुदमस्य। सहिया निज मि लें ले। पहले लोग अधिक मन सके काकुदस्य । पा ५.४१४८। उक्त तालुयुक्त, चे तालवासा, थे। किन्तु क्रम क्रमसे प्रजा आयो। पूर्व में जसो | जिसके ताल उठा रहै। समृद्धि रहो, फिर भी वैसी ही बढ गयी। उत्कार (स• पु०) उत्कृ-धन । कृ धान्थे । पा ३३।३० । अंगरे नाके हाथ उड़ीसा मानेपर प्रधान तोन | १ धान्योत्क्षेपण, गले की झड़ाई, अनाजको झाड़ नियम चले थे। प्रथम-खन्द नामक असभ्य जाति पकोड़। २ धान्य का राशीकरण, गकारकडा किया पर किसी प्रकारका कर वा नियमन बंधना और अंगः । Vol III. 51