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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२१६

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उत्तलित-उत्तिरनमेलर २१५ उत्तलित (सं० वि०) उत्-तल-त । उत्क्षिप्त, उछाला , २ ताप, धूप। ३ दुःख, तकलीफ़ । 8 चिन्ता, फिक्र । हुश्रा। ५ उत्तेजना, जोश । चेष्टा, कोशिश। उत्ता, उतना देखो। उत्तापन (सं.ली.) उष्णताकरण, गर्म करनेका 'उत्तान (सं० त्रि.) उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात्।। काम। . १अवमुखशायित, मुंह ऊपरको उठाये पड़ा हुआ, उत्तापित (सं.वि.) १ तापयुक्त, तपा हुआ, जो चित। २ अगभीर, उथला। ३ उच्छ्रित, खड़ा, सीधा। गर्म किया गया हो। २ दुःखित, तकलीफ उठाये ४ पुटाकार, खोकला। ५ ऊध्र्व तल, सतह पर फैला | हुआ। ६ उद्घाटित, खुला। (लो०) ७ जल, पानी। उत्तार (सं. पु.) उत्-त-णिच्-घज। १ वमन, उत्तानक (सं० पु०) उत्-तन-ख ल। १ उच्चटावृक्ष, के, उलटी। २ उल्लङ्घन, संघाई। ३ पारगमन, उटङ्गनका पेड़। २ सुस्ताभेद, नागरमोथा। उतारा। ४ रक्षा, बचाव। ५ दूरीकरण, अलगाव। उत्तानकूर्मक (सं० लो०) कुर्मासन विशेष । पासन देखो। (त्रि.) ६ अत्यन्त उच्च, निहायत ऊंचा। उत्तानपत्र, उत्तानपवक देखो। उत्तारक (सं० वि०) उत्-तृ-णिच् खल् । १ पार उत्तानपत्रक (सं० पु०) १ रतौरण्ड, लाल रेडौका हो जानेवाला, जो उतर गया हो। (पु.) २.पार पेड़। २खेतैरण्ड, सफ़ेद रेडीका पेड़। लगानेवाले महादेव। उत्तानपद् (वै० स्त्री०) १ वृक्ष, पेड़। २ शक्ति, उत्तारण (सं० लो०) उत्-तृ-णिच्-लुट । १ पारको ताकत। उत्तानपदसे दिक् और पृथिवी उपजतौ गमन, उतारा। (पु.) कर्तरि ल्य । २ विष्णु भग- है। (ऋक् १०७२।३-४) . वान् । (त्रि.)३ पारको गमन करनेवाला, जो उतर उत्तानपर्ण (वै० त्रि०) विस्तृत पत्रयुक्त, बढ़ी हुई रहा हो। पत्ती रखनेवाला। उत्तारलोचन ( स० वि०) पूर्णित नेत्रयुक्त, धूमो उत्तानपाद (सं० पु०) स्वायम्भ व मनुके पुत्र और हुई आंखोवाला। ववके पिता। इन राजाके सुनौति और सुरुचि दो उत्तारिन् (सं० त्रि०) उत्-तृ-णिनि। १ पार लगाने- पनी रहीं। सुनोतिके गर्भसे ध्र व, कीर्तिमान, आयु- वाला, जो उतारता हो। २ चपल, चुलवुला। मान एवं वस और सुरुचिके गर्भसे उत्तमने जन्म | उत्तार्य (सं०नि०) पार किया जानेवाला, जो उता- लिया था। (हरिवंश, विष्णु पुराण, भागवत ) रनेके काबिल हो। उत्तानपादज (सं० पु० ) उत्तानपादके पुत्र ध्रुव । उत्ताल (सं० वि०) उत्-चुरादित्वात् तल-धज ।. अव देखो। १ श्रेष्ठ, बड़ा। २ उत्कट, मारो। ३ कठिन, मुश्किल । उत्तानशय (सं० त्रि०) उत्तान: अव मुखः शेते, शो- ४ तीव्र, तेज । ५ उच्च, ऊंचा। (पु.) ६ मर्कट, अच् । १ अर्व मुख शयन करनेवाला, जो चित बन्दर । (क्लो०) ७ संख्या विशेष, कोई खास अदद। लेटा हो। (पु.) स्तन्यपायिशिशु, शोर ख्वारा उत्तिर (हिं. पु०) खम्भे में गलेके ऊपर और कम्पके बच्चा, जो लड़का बहुत छोटा और माका दूध नीचे रहनेवाली पट्टी। पौता हो। | उत्तिरनमेरूर (उत्रामलोर)-मन्द्राज प्रान्तीय चेङ्गलपट उत्तानशीवन् (व० त्रि०) उत्तानस्थित, इस्तादा, जिलेके मधुरान्तकम् ताल्लुकका एक नगर । यह अक्षा. खड़ा, रुका हुअा। (पथ व २।२१।१०) १२. ३६५५" उ० और ट्राधि० ७८ : ४८ पू० पर अव- "उत्तानहस्त (वै० त्रि.) विस्तारित हस्त युक्त, हाथ स्थित है। चेङ्गलपटसे उत्तरनमेरूर १६ मोल पड़ता फैलाये हुपा। है। प्रायः साढ़े ७ हजार मनुष्य बसते हैं। हिन्दुवों और उत्ताप (सं० पु०) उत्-तप-घञ् । १ उष्णता, गर्मी। मुसलमानोंके शासन-समयमें यह एक प्रधान स्थान था।