पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१६ उत्तष्ठधोम-उत्तोरित सन् ई० के १८ वे शताब्दमें अनेक बार अंगरजी और ! अक्षा० १८. १७ उ० और ट्राधि० ७४° ३३० पू० फान्मौसी सेन्ट ने इसपर अधिकार किया। आजकल पर अवस्थित है। मराठा शासनके अन्त समय इस सब मजिष्ट्रेटकी अदालत बैठती है। यहां पांच शिव नगरके चारो ओर राइमें खानदेशके भोल लट मार और दो विष्णु के भग्न मन्दिर विद्यमान हैं। शिव- करते थे। इसीसे धन धान्यको रक्षाके लिये एक उच्च मन्दिरका कारकार्य सुन्दर और प्रशंसाजनक है। दुर्ग बनाया गया। पड़ोसमें दो मन्दिर बने हैं-एक पड़ोस में अनेक तेलगु रोमन-काथलिक रहते हैं। सुप्रसिद्ध साधु तुकारामके गुरु केशवचैतन्य और दसरा उत्तिष्ठहोम (सं० पु०) होम विशेष। यह होम खडे। महादेवका महादेव मन्दिर में प्रति वर्ष मेला लगता है। खड़े करना पड़ता है। उत्तुष (संपु०) उगतः तुषोऽस्मात् । लाजा, लाई। उत्तिष्ठमान (सं० त्रि.) उत्-स्था-शानच। १ उत्थान उत्त (हिं. पु.) १ वेणीकरण, सङ्कोच, चुबट, चीन, शील, उठ खडा होनेवाला। २ वृद्धिशील, बढ़ चौरस । २ वस्त्रका सङ्कोच, कपड़े की चुबट। ३ सङ्को- चलने वाला। चास्त्र, चुन्नट डालने या बेलबूटा काढनका औजार। उत्तौर (सं० अव्य०) तट पर, किनार, भूमिपर। उत्तूकश, उत्तूगर देखो। उत्तीर्ण (सं० त्रि. ) उत्तु कर्तरि क्त। १ पारगत, उत्तूगर (हिं० पु०) वस्त्रपर सङ्कोच डोलनेवाला, उतरा हुआ। २ जलसे उस्थित, पानौसे उठा हुआ। जो कपडेपर चुन्नट चढ़ाता हो। ३ निर्गत, निकला हुआ। ४ अतिक्रान्त, लांघा उत्तेजक (स.त्रि.) प्रोत्साहक, प्रेरक, उकसान, हुआ। ५ उपस्थित, पहुंचा हुआ। ६ कतकार्य, भड़काने, उभारने या उठानेवाला। कामयाब। ७ मुक्त, छटा हुआ। उत्तेजन (सं० लौ०) उत्तेजना देखो। उत्तीर्य (सं० अव्य०) पार होकर. उतरके। उत्तेजना (सं० स्त्री०) उत् तिज-णि च-युच् । १ शा- उत्तीर्घ ( स० त्रि०) पार होनेका अभिलाषी, जो णादि द्वारा तोक्षणीकरण, शान रखनेका काम, उतरना चाहता हो। ' पैनाव। २ प्रेरणा, तरगोब, पहुंचाव । ३ प्रवर्तन, उत्तङ्ग (सं० त्रि.) उत् अतिशयेन तुङ्गः। उच्च, लगाव। ४ भत्सना, धमकी, कहा-सुनी। ५ उद्दी- ऊंचा, जो ख ब चढ़ा हो। पन, भड़काव। ६ उत्साहदान, बढ़ावा । ७ सजीव- उत्तुङ्गता ( स० स्त्री०) उच्चता, बुलन्दी, उचाई, करण, ज़िन्दा करनेका काम। ८ उत्पीड़न, तक- चढ़ाई। लीदिही। उत्तहभन-बम्बई प्रान्तीय कनाड़ा जिलेके एक प्राचीन | उत्तेजित (स.नि.) उत-तिज-णिच-क्त । १ उही नृपति। काकतीय उपाख्यानमें कहा है ये हिन्दुः | पित, उसकाया हुआ, जो भड़का हो । २ प्रेरित, स्थानसे आकर गोदावरीके दक्षिण बसे थे। इनके पुत्र भेजा या पहुंचाया हुआ। ३ शाणित, पैनाया नन्दने चालुक्य गिरिपर नन्दगिरिदुर्ग नामक एक | हुआ। ४ विरक्त, जो अलग हो। ५ प्रवर्तित, लगाया किला बनाया था। हुआ। (क्ली) ६ अखगति विशेष, घोड़ेको कदम उत्तण्डकी (स. स्त्री०) करजक, करोंदा। चाल। ७ उद्दीपन, तरगौब, भड़काव। उत्तुण्डित (स० लो०) १ कण्टकाग्र, कांटेको नोक। उत्तोरण ( स० क्लो०) उन्नतं तोरणमत्र । उच्चपुर- (वि.) २ निर्गत, निकला हुआ। हारयुक्त नगरादि, ऊंचे दरवाजेवाले शहर वगैरह। उत्तुद (वै० पु०) चालना करनेवाला पुरुष, जो (त्रि.) २ उन्नततोरणयुक्त, ऊंची मेहराबवाला। आदमी हविःको चलाता हो। | उत्तोरित (सं० लो०) उत्-तृ भावे इतच्। अखके उत्तुर (ोतूर )-बम्बई प्रान्तके पूना जिलेका एक मध्यम वेगको गति, टुलकी, घोड़े की मामूली दौड़- नगर। यह पूना नगरसे . उत्तर-पश्चिम ५. मौल | वाली चाल ।