पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नाव। उत्प्लवन-उत्सर्जन २२३ उत्प्लवन (स० क्लो०) उत्-प्लु-ल्य ट्। १ उल्लम्फन, ! उत्सङ्गित (सं० त्रि०) उत्सङ्गयुक्त, मिलनेवाला । उछलकूद। २ अभिमन्त्रित कुशादियुक्त वारि द्वारा उत्सङ्गिनी, उत्सङ्गपिड़का देखो। द्रव्य की शुद्धि। उत्सङ्गी (सं० पु.) नाडीव्रणविशेष, फोड़ा, गहरा उत्प्लवा (सं० स्त्रो०) उत्-प्ल-अच-टा। नौका, जखम। . उत्सञ्जन (सं० लो०) उत्-सन्ज-पिच्-ल्युट । अर्ध्व उत्प्लुत (सं० त्रि०) वलिात, उछला हुआ, जो संयोजन, उत्क्षेपण, ऊपरको रहनुमाई । एकाएक फांद पड़ा हो। उत्सत्ति (सं० स्त्री०) उत्-सद-क्तिन् । उच्छेद, उखाड़, उत्पत्य (सं० अव्य०) वलान करके, ऊपर उछलकर। नोचखसोट । उत्फल (सं० लो०) उत्तम फल, उम्दा मेवा। उत्सधि (२० पु०) उत्सो धीयते अत्र, उत्स-धा, उत्फाल ( स० पु० ) उत्-फल-चत्र । लम्फ, कि। जलप्रवाहशील कूप, जिस कुवेंसे पानी बहा उछाल। करे। (ऋक् ।।८८४) उत्फुल्ल (सं० वि०) उत्-फल-त, उत्, फुल्लसफुल्लयो- उत्सन्न (सं० त्रि०) उत्-सद-क्त। १ उच्छिन्न, रुपसंख्यानमिति निष्ठा, तस्य लः । १ प्रफुल्ल, उखड़ा हुआ। २ नष्ट, बरबाद। ३ अनायाससाध्य, खिला, फला। २ स्फोत, सूजा या बढ़ा। ३ उत्तान आसानीसे बन जानवाला। ४पव्यवहृत, नाकाम । शय, चित लेटनेवाला। (लो०) ४ स्त्रीन्द्रिय । ५ वर्धित, बढ़ा हुआ। उत्रौला-उतरौला देखो। उत्सन्नधर्म, उत्सन्नयज्ञ देखो। उत्स (वै० पु०) उनत्ति जलेन, उन्द-म-कित् । । उत सन्नयन (स'. पु०) अवलम्बित यन्न, जो यन्न उन्दिगुधिषिभ्यय । उप ३३८ । १ प्रस्रवण, चश्मा, झरना | रुक गया हो। २ खात, कुवां। (निघण्ट २२३) ३ उत्सरण, सरकाव । उतसर ( स० पु.) छन्दोविशेष। इसमें पन्द्रह पन्द्रह (निरुक्त १०९) अक्षरके चार पाद होते हैं। उत्सर अतिगतरीका उत्सक्थ (वै त्रि०) अर्धसक्थियुक्त । एक भेद है। 'उत् ऊर्ध्वं सक्थिनी ऊरु वस्था सा उत्सक्थी' उत्सर्ग (सं० पु०) उत् सृज-घ । १ त्याग, तक। (वक्रयजुर्भाचे महीधर २३।२१) २ दान, बशिश । ३ सामान्यविधि, मामूली कायदा।

  • उत्सङ्ग (सं० पु०) उत्-सज-धज । १ कोड़, गोद । ४ न्याय, कानन्। ५ साग्निक कर्तव्य क्रियाविशेष ।

२ पर्वतका शिखरदेश, पहाड़की चोटी। (रघु हा३) खान, सन्ध्या एवं आचमनादिके बाद प्रथम नारायण, ३ अट्टालिकाका उपरि भाग, छत। (मेघदूत २९) नवग्रह तथा गुरुको पूजा प्रदान करनी पड़ती है। ४ अभ्यन्तर भाग, बगल। (कुमार १।१०) ५ अर्वतल, ट्रव्यको वाम हस्तमें रखना चाहिये। दक्षिण हस्तसे ऊपरी मञ्जिल । ६ वहिर्भाग, बाहरी हिस्सा।। तीन बार पूज कर तत्तद्रव्याधिपति देवताको सम्प- .( रख ८७५) ७ सङ्गम, मिलाप। ८ आलिङ्गन, हमा दान करे, फिर कर कुश, तिल एवं जलत्यागपूर्वक गोशी। ८ एकशत संख्या= विवाह। (व्युत्पत्ति १८५) दान दे। इसी क्रियाको वैधोत्सर्ग कहते हैं। ६ मल- १० व्रणका भीतरी भाग, जख्मका अन्दरूनी हिस्सा । मूत्रादिके त्यागको क्रिया। (मनु १२।१२१) ( सुचत, सूव० ) ११ गभं, हमल। (भारत अन्न हा१८) उत्सर्गतः (स० अव्य०) साधारणतः, मामूली उत्सङ्गपिड़का (सं० स्त्री०) नेत्रवत्म गत रोगविशेष, / तौरपर। आंखके नीचे पपोटेकी फुन्सी। यह स्थूल और उत्सर्गिन् (सं० त्रि०) त्यागो, तर्क कर देनेवाला। कण्डमत् होती है। मुखवम के अभ्यन्तर पड़ता है। उत्सर्जन (सं० लो०) उत्-सृज-ल्यट। १ दान, वर्ण ताम्र-जैसा होता है। (माधव निदान) | बख शिश। ३ वेदोत्सर्गरूप छ: मास कर्तव्य वैदिक की