पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२३०

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उदगभूम-उदधिकुमार २२ उदग भूम (स.पु.) उदक्. उनता प्रशस्ता वा धूमा हुआ। २ उपरिस्थ, ऊपरवाला। ३ उत्तरको भूमियत, उदक भूमि-पच । "कयोदकपाणु सख्या पूर्वाया ओर घुमा हुआ, शिमालो। ४ पश्चात्, पिछला। भूमरजिष्यते।” (पा ५।४।७५ स्वे सिद्धान्तकौमुदौ) उतकृष्ट भूमि, उदञ्चन ( स० क्लो० ) उत्-पञ्च भावे ल्युट । बदिया जमीन् । ......... ... . १. अवक्षेपण, जपरको फेंकफांक । २ उदगमन, उदग्र (स. त्रि०): उत-अग्र। १ उच्च, ऊंचा। चढ़ाई, उठान। ३ आच्छादन, ढक्कन । ४ घटीयन्त्र, २ वृद्ध, बुट्टा। ३ उद्दत, अक्खड़। ४. दोर्ष, बड़ा । डोल। (नि.) कर्तरि ल्यु । ५ उत्क्षेपक, ऊपर ५ विशाल, पालीशान्। ६ महत्, अजीम। फेंकनेवाला। उदग्रदत, (सं० पु०) उद-अग्र-दट। अग्रान्तनशमहष उदञ्चित (सं• त्रि.) उत्-अश्व-क्त। १ उत्क्षिप्त, वराहभ्य थ। पा ५।४।१४५। १ उच्चदन्तहस्ती, बड़े दांतोंका | फेंका या ऊपर उठाया हुआ। २ पूजित, पूजा हुआ। हाथो। (त्रि.)२ उच्चदन्तयुक्त, ऊंचे दांतोंवाला। ३जवंगत, चढ़ा हुआ। ....... उदग्राभ (वै० पु०) उदक ग्राही मेघ, पानी रखनेवाला उदञ्जलि (सं• त्रि.) हथेलियों को गहराकर हाथ बादल । “मदायोदयाभस्य नमयन्वधः।” ( टक् (६७।१५) उठानेवाला। 'उदकग्राभमुदकग्राहिणं मेघम् ।' (सायण) .. उदण्ड (हिं०). उद्दस देखो। .. (त्रि.) २ जलग्राही, पानी रखनेवाला। उदण्डपाल (स• पु०) १ मत्स्यविशेष, एक मछली। उदघटना (हिं. क्रि०) निकलना, खुलना। यह अण्डे से निकलते ही भागती है। २ सर्पविशेष, उदघाटना (हिं. क्रि०) उदघाटन करना, खोल किसी किस्म का सांप। देना। ........ ... उदण्डपुर (सं० ली.), १ मगध । २ विहारनगर। उदय (संपु०) उत्पन्च-धज । १चर्ममय घतादि यह नाम प्राचीन शिलालिपिमें मिला है। . . पात्र, कुप्पा, घो तेल वगैरह रखनेको चमड़े का बर- उदय (हिं० पु०) सूर्य, आफ़ताब। तन। २ सन्दश, चिमटा या सन्सी। "हदयोदइस स्थान | उददान (सं• त्रि.) जलसंयुक्त, पानीसे भरा हुआ। कृतान्तानामसन्निभम्।” (भडि) ३ एकजन ऋषि । (शतपथब्राह्माण उदद्या (सं०स्त्री०) उत-मद बाहुलकात यत । १४९२).. . . तेलपायिका, तिलचट्टा। उदन ख. ( स० वि०) उदक् उत्तरस्यां मुखमस्य । | उदधि (सं० पु. ) उदकानि धोयन्तेऽस्मिन्, उद-धा- उत्तरमुख, जो मुंहको शिमालकी तरफ झुकाये हो। कि। पेष वासवाहनधिषु च। पाहा।५८। १ समुद्र, बहर। उदनत्तिक, उदभूम देखो। २ तट, किनारा। ३ मेघ, बादल। ४ सूर्य, प्राफताब । उदचमस (वै० पु०) उदकस्थापनयोग्य चमसाकार “स सूर्यग दिद्युतदधिनिधिः ।' (वाजसनेयसहिता ३८२२) ५ घट, एक पात्र। घड़ा। ६ जलाशय, तालाब। ७हद, झोल। उदचव्वा-एक देवी। बम्बई प्रान्तीय धारवाड़ जिलेके (वै० त्रि०) ८ जलसंयुक्त, पानी से भरा हुआ। अदरची ताल्लु कमें होरहण्डो ग्रामसे खोट्टीग नृप. तिको जो शिलालिपि निकली, उसके पृष्ठपर इन उदधिकुमार (सं० पु०) जैन-शास्त्रानुसार देवोंके जो देवीको मूर्ति बनी है। व्यंतर, ज्योतिषी, भवनवासी और वैमानिक ये चार उदज (सं० पु०) उत्-अज पशुविषयके धात्वर्थे अप्। भेद बतलाये हैं, उनमेंसे भवनवासियों का एक भेद। समुदीरजः परषु । पा २०६९। १ पशुप्रेरण, मवेशियोंकी। उदधिकुमार देव अधोलोकको रत्नप्रभा नामक पृथ्वीके हंकाई। (त्रि.) २ जलजात, पानीसे पैदा।. खर भागमें रहते हैं। वहाँ इनके भवनोंको संख्या पटन-Hydrogenादीनन देखो। ....... छहत्तर लाख है। उत्कष्ट पायंकाल डेढ पल्य है। उदच (सं.वि.). १-ऊपरि गमनकारी, ऊपरको । पल्प देखी। स्वाभाविक शरीरको लंबाई दश धनुष है। Vol III. 58