पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२६१

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२६० उवर्षिणी-उद्दारणदत्त उहर्षिणी ( स. स्त्री०) वसन्ततिलक नामक वर्ण । उद्धारी न दशखस्ति सम्पन्नामां खकर्मसु । वृत्तका भेद। इसमें चार पाद पड़ते और प्रत्येकमें यत्किचिदेव दैयन्तु जायसे मानवर्ष नम् । एवं समुड तोद्धार समानंशान् प्रकल्पयेत् । चौदह-चौदह प्रक्षर लगते हैं- उद्धारऽनुद्ध ते त्वेषामियं स्वाद'शकल्पना ॥ "उक्ता वसन्ततिलका तभना अगी गः । मिहोन्नतेयमुदिता मुनिकश्यपैन । एवं हषभमुद्धारं सहरेत स पूर्वजः । उवर्षि नीयमुदिता मुनिसतन" (वृत्तरवाकर) ततोऽपरेऽजो एडषास्तटूनानां स्वमावत:॥" ( १० ११२-१२३ भो०) उर्षिन् (सं०वि०) उत्-वृष-णिच-णिनि। १ वर्ष- पैटक धनके विभाग कालपर विश ज्येष्ठ, चत्वा- कारक, खुश करनेवाला। २ पुलकित, खड़े रोंगटे रिंशद. मध्यम और पयोति भाग कमिष्ठको मिलना रखनेवाला। चाहिये। फिर अवशिष्टांश सकलको बराबर बराबर उद्दव (सं० पु०) उत्-धूङ-अच । १ यज्ञाग्नि । प्राप्य है। ज्येष्ठ और कनिष्ठके मध्यगत सकल माता २ उत्सव, जलसा। ३ वष्यमातुल एक यादव । ये सत्यकके पुत्र और वृहस्पतिके शिष्य रहे। दूसरा चत्वारिंशद भागके अधिकारी होते हैं। ज्येष्ठ यदि गुणवान् रहे, तो ट्रव्य सामग्रीके मध्य उत्कृष्ट वस्तु नाम देवश्रवाः था। उद्धव अन्तिमदशाको बदरिका- श्रम में रहते थे। श्रीकृष्णने इन्हें ज्ञानका उपदेश सकल और १० गाभीमें श्रेष्ठ गाभी उसको मिले। दिया। (भामवर ११ स्कन्द) सकल माता समान गुणसम्पन्न होनेसे ज्येष्ठको दशम उद्यमित्र-वैद्यप्रदीप नामक वैद्यकग्रन्थके रचयिता। पदार्थ प्राप्य नहीं। फिर भी सम्मानको रक्षाके लिये यत- उच्चस्त (सं. त्रि.) उत्क्षिप्तौ हस्ती येन, प्रादि. किञ्चित् उसे अधिक देना उचित है। अवशिष्ट सकल बहुव्री। उतृक्षिप्त हस्त, हाथ उठाये हुआ। धन भ्राता बराबर बांट लें। पैटक धन बंटते समय उद्यान ( स० की.) उज्जयतेऽस्मिन्बग्निः, उत्धा- ज्येष्ठको टूना, मध्यमको द्योढ़ा और तद्भिव सकलको एक एक अंश मिलेगा। प्रथम विवाहितासे कनिष्ठ ल्युट । १ चुलो, चू ल्हा। २ वमन, कै। (त्रि.) ३ उगत, उठा या चढ़ा हुपा। ४ वमित, उगला दुचा। और पश्चात् परिणीता पत्नीसे ज्येष्ठ सन्तान रहनेपर ५ स्थल, मोटा, सूजा हुआ। प्रथम स्त्रीगर्भजात, कनिष्ठ पड़ते भी एक श्रेष्ठ वृष उद्दान्त (सं० पु०) उत्-धन-णिच त। १ मद- उदाररूप पाता है। फिर अपर पत्नौगभेंज सन्तानको शून्य हस्ती, जिस हाथोके मस्तकसे मद न बहे। माताके कनिष्ठानुसार अपकृष्ट वृष मिलेगा। (वि.) २ वमित, उगला हुआ। उद्धारक (स• त्रि०) उच्चार करनेवाला, जो उठाता सहार (स• पु०) उदधियते, उत् ह भावे धज । १ मुक्ति, नजात, छुटकारा। २ पतित वा समाजच्यत | उद्घारण (सं० ली.) उत्-ध-णिच्-लुट् । १ उत्थापन, व्यक्तिका ग्रहण, गिरे या जाससे खारिज शखसको उठाव। उत-ह-णिच-लाट। २ उहारसाधन, उबार, फिर मिला लेनेका काम। ३ ऋणशोध, अदाकज । बचाव। ३ भागकरण, बंटवारा। ४ नष्टवस्तुका पुनरधिकार, खोयी हुयी चीज़पर फिरसे उद्दारणदत्त (स' पु०) महाप्रभु चैतन्यदेवके एक कबजा करने की बात। ५ अंशभेद । मनुने उद्दारका प्रसिद्ध भक्त ।१४०३ शकको त्रिवेणीतौरवर्ती सप्तग्राममें नियम इसप्रकार रखा है- इन्होंने जन्म लिया था। पिताका श्रोकरदत्त और "येष्ठख विश उद्धारः सर्वट्रव्याञ्च वरम् । माताका नाम भद्रावती रहा। गोत्र शाण्डिल्य था। ततोच मध्यमस्य स्यात् तुरीयन्तु यवीयसः । ज्येष्ठबद कनिष्ठय सहरतां यथोदितम् । ये घरमें अपने पुत्र श्रीनिवासको छोड़ और वाणिज्यका येऽन्चे ज्येष्ठकनिष्ठाभ्यां तेषां स्वान्मध्वमं धनम् । कार्य सौंप विवेकाचारी बने। नीलाचलमें उद्धारण- . सर्वेषां धनजातानामाददौताग्य मग्रजः । दत्त प्रभुसे मिलने प्रायः जाते और प्रसाद मांगकर यञ्च सातिशयं किश्चिद्दशशतया यादरम् ॥ खाते थे।