पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२७९

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२०८ उद्दिड़ाल-उद्देजन उसे भोलोमें डाल ग्रामसे प्रायः १०१२ र दिक् जहाज़ छोड़ उद्दिड़ाल पकड़नेको उद्योग किया। छोड़ पाये। परन्तु अपने घर वापस पहुंचने के कुछ भिन्न भिन्न जातियोंका इस व्यवसाय पर पाग्रह आ काल बाद ही उन्होंने देखा-प्रभुभता उहिडाल सामने जानसे लोमका मूल्य अधिक घट गया। ईष्ट इण्डिया खड़े यूछ हिला रहा है। कम्पनीके लोग इस लोमको काण्टन नगर भेजते थे। __ भूटान और आसामके उत्तर पार्वतीय प्रदेशों में | पूर्वमें इस देशके असभ्य व्यक्ति उद्दिड़ाल खाते थे। एक प्रकारका उविडाल रहता है। उसका देह मटमैला रोमन काथलिकोंके धर्मग्रन्थों में भिन्न भिन्नके भक्षणका और मुख, मस्तक तथा कण्ठदेश सादा होता है। बीच निषेध पड़ते भी इसका मांस नहीं छटा। वे अाग्रहके बीच हरित् वा हरिताभ पिङ्गल वर्ण के विन्दु पड़े। साथ इसे खाते थे। इसका मांस उग्र और मत्स्यवत् रहते हैं। शावकका ईषत् पिङ्गल और वयस्था स्त्री| खादु होता है। जातिका निम्न भाग प्राय: स्वच्छ रहता है। देहका | उद्दिवहण (स' लो०) उत्-वि-वह ल्युट । उवार- पौने दो और लाङ्गलका आयतन एक हाथ से अधिक | करण, छुड़ा देनेका काम । बैठता है। इस जातिके दो-एक उद्दिड़ाल कभी कभी उहीक्षण ( स० क्लो) उत्-वि-ईक्ष भावे ल्य ट । वङ्गदेशमें भी देख पड़ते हैं। १ अर्व दृष्टि, उठी हुई नज़र । करण लुपट । २ दर्शन, हिमालय के हिमप्रधान स्थानों में अन्य जातीय उद्दि- नेत्र, नज़ारा, आंख । डाल होता है। इसके लोम बहत्, अपरिष्कार. और उद्दीच्य (स अव्य) १ अर्व दृष्टि डालके, ऊपर पिङ्गलाभ कृष्णवर्ण लगते हैं। निम्न भाग लाङ्गलके | देखकर। (त्रि०) २ देखने के योग्य । अन्तप्रदेश पर्यन्त खेत रहता, जिसमें धूसर और उद्दीत (स• त्रि०) उत्-वि-उ-क्त । १ उगत, उठा हुआ। पिङ्गलाभ-मिश्रित वर्ण झलकता है। देहका दो और २ सावित, डबा हुआ । २ उच्छलित, उछला हुआ। लाङ्गलका आयतन प्रायः डेढ़ हाथ पड़ता है। उद्धृहण (स' क्लो० ) आधिक्य, बढ़ती।। युरोपमें लुट्टा वलगेरिस ( Lutra vulgaris)| उदृत्त ( स० त्रि०) उत्-वृत्त । १ उत्क्षिप्त, ऊपर जातीय उद्दिडाल होता है। किन्तु अमेरिकाका फेंका हुआ। २ उत्तोलित, उठाया हुआ। ३ जात, उद्दिडाल उपरोक्त सकलसे वृहत् और देखने में अनेकांश | पैदा। ४ क्षुभित, घबराया हुआ। ५ अतिरिक्त, विवर सदृश होता है। लोम अधिक मूल्यवान् रहते | छोड़ा हुआ। ६ उद्दान्त, उगला हुआ। ७ भुक्तवर्जित, और भिन्न भिन्न ऋतुमें रङ्ग बदलते हैं-ग्रीष्म कालमें | खानेसे बचा हुआ। ८ दुबत्त, बदचलन। क्षुद्र एवं कृष्ण तथा शीतकालमें मनोहर रक्ताभ पिङ्गल | उद्देग (सं. पु०) उत्-विज् भावे घज । १ चिन्ता, वर्ण लगते हैं। फिर भी वह विवरके लोम सदृश फिक्र, चाह। २ भय, डर। ३ उधम, ताज्जुब। ' वृहत् नहीं। प्रतिवर्ष हज़ारों इस जातिके उद्दिडाल ४ चमत्कार, रौनक । ५ विरहजन्य दुःख, जुदाईको अमेरिकासे इङ्गलेण्डको भेजे जाते हैं। तकलीफ। ६ उद्गमन, उभार। (लो) ७ गुवाक- ___ प्रशान्त महासागरके उत्तरांश एवं उत्तर अमे- फल, सुपारी। (त्रि.)८ शोधगामी, जल्द चलने- रिकाके निकटस्थ सागरसमूहमें 'सामुद्रिक उहिडाल' वाला। स्थायो, कायम । १० उद्गमनशील, उभरने- मिलता है। लोम अपर सकल जातिको अपेक्षा सम- | वाला। ११ अर्ववाहु, हाथ उठाये हुआ। धिक चिक्कण और अधिक मूल्यवान् हैं। सागरके | उद्देगिन् (स० त्रि.) १ चिन्ताकारक, फिक्र बढ़ाने- मत्स्यपर जीवन चलता है। प्रायः सवा दो सौ वर्ष वाला। २ चिन्तित, फिक्रमन्द। पहले रूसी उसे पकड़ते और बहुमूल्य लोम बेचते उद्देजक (सं० त्रि०) दुःखदायो, तकलीफ देनेवाला। थे। उसमें उनको अधिक लाभ होता था। जब उढेजन (संलो०) उत्-विज भावे लुपट् ।१ उद्देग, सुरोपीयोंको इसका संवाद मिला, तब उन्होंने भी चारो। जोश । (मनु ८३५२) २ भय, डर। ३ कम्पन, कंपकंपी।