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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३१६

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उपनिपातिन्-उपनिवेश ३१५ (किरात) २ हठात् आगमन, एकाएक आ पहुचनेको तीत कालके वासका स्थान वर्तमान कुरुक्षेत्रसे उत्तर हालल। ३ वध, कत्ल । “तब लाकागमनं देवदत्तागमनस्योप-! विन्दुसर ( सरोकुल हूद) और पश्चिम खोरासनके मानं तान्यतन' हस्य पनिपातस्य ।" ( केयट) प्रान्त तक समझा गया है। इसी विस्तीर्ण भूमि- उपनिपातिन् (सं० त्रि.) १ आ पड़नेवाज्ञा, जो खण्डको हम भारतीय आयकी आदि वासभूमि मानते टट पडता हो। २हठात् बाबामण करनेवाला, जो हैं। फिर वह दक्षिण पूर्व कोकट (मगध) एवं एकाएक हमला सारता हो। अब और उत्तर वाहिक (बलख) देशको गये। उपनिवन्धन (सं० को०) उप-मि-बन्ध-ल्य ट। १ सम्पा पाच वेद देखो। उसी समयसे उन्होंने नाना देशमें उप- दन, दजावट: २ ग्रन्यन, गूधगांय । निवेश जमानेको धाशापर पैर बढ़ाया था। कमसे उपनिमन्त्रण (सं० लो० ) उप-नि-मन्त्र-त्य ट। वह भारतवर्षके प्रायः समस्त उत्तर भागमें फैल पड़े नियोग करण, जरूरी कालमें लगाने की बात। और इसी कारण लोग इस देशको आर्यावर्त कह उपनिवपन (सजी०) उप-जि-वय-ल्य ८ । १ अग्जि- चढ़े। आर्यावर्त देखो। यह बहुकालको कथा है, सम- प्रणयन वर्माङ्गलत कानयाधानादि व्यापार । २ निक्षेप, यो निर्णयका कोई उपाय नहीं। फैला। रामायण और महाभारतके पाठसे हम समझ उपनिविष्ट (सं० त्रि०) उपनिवेशमें भाकर बसा | सके-सनातन धर्मावलम्बी आर्य विन्ध्य पर्वत लांघ हुआ, जो नौ-यावादीमें आकर रहा हो। दक्षिणापथ, अनन्तर भारतवर्ष छोड़ सिंहन्त प्रभृति उपनिवेश (सं० लो०) उप-नि-विश-घञ्। १ उप भारत महासागरके होपसमूहको कायके अनुराधसे गये, मगर, बड़े शहरके पासका छोटा शहर । जिनमें किसो-किसीने उपनिवेश स्थापन किये. कोई २ कृषिवाणिज्यादि करने को किसी दूर देशमें सब कुछ काल दूर देशमें होरड़ फिर खदेगको चलते बने । लोगांके साथ रहना। ३खदेश छोड़ अपर स्थानमें रामायण के पाठसे आर्यगण में प्रथम मुनिवर अग- बास स्थापन। 'उपनिवेश' शब्द सुनते हो कितनी हो स्थ्यका दक्षिणायथ को गमन जान पड़ता है। सम्भ- बात हमारे मन में उठती है। कौन भारतीय जानना बतः इन्हीं महात्माने विन्ध्यगिरिक दक्षिण प्रदेश नहीं चाहता-खदेशीय प्राचीन महर्षिने भारत व्यतीत आयसभ्यता कथञ्चित् फलायो यो। क्योंकि दाक्षि- किस किस स्थान पहच वास और राजकीय कार्यके णात्यके सर्वस्थान में अपरापर देवगणको अपेक्षा अग- अनुसार, वाणिज्यके अभिप्राय, धर्मप्रचार के उद्देश्य स्त्यका ही माहात्मा समधिक लक्षित है। फिर एवं राजदण्डके भय किंवा राजकटक निर्वासनसे । दाक्षिणात्य के इतिहास और अपरापर शास्त्रमें अगस्त्य उपनिवेश स्थापन किया था। देशको विविध भाषाके संशोधनकारी और वैयाकरण अपने प्राचीन शास्त्रसे मूरि भूरि प्रमाण पाते, कि प्रसिद्ध हैं। केरलोत्पत्ति नामक अन्य देखते परशु- परकालको भारतवर्षीय बौर पृथिवीके नाना स्थान राम ब्राह्मणगणको उत्तर देशले दाक्षिणात्य ले गये थे। म पाते थे। इस स्थलपर यही प्रथम विवेच्य पाया, इसके द्वारा भी कितना ही समझ पाते, कि पहले विदेश जालेसे पहले जम्बदोपवासोने किस स्थानमें ब्राह्मण दक्षिणापथको जाते न थे। परशुरामके समयसे वास रू.गाया और अपने आदिपुरुषणगणको कही जा | गमनागमन होने लगा और दाक्षिणात्य सनातन सकनवाली वासभूनिसे क्रमशः शिस अपर देशविदे धर्मावलम्बी ब्राह्मणगएका उपनिवेश पड़ा। शमें उपनिवेश चलाया। हम पहले से ही कहते, कि, रामायण के वचनानुसार उस समय भारतीय दक्षिण- वैदिक लोग आदिमें सरस्वती प्रभृति सप्त नदीको समुद्रस्थ होपादिका विषय समझते थे। किन्तु कोई उत्पत्तिके स्थानपर रहते थे। आर्य शब्द देखी। किन्तु । उल्लेख नहीं-आर्य कहां कहां आते-जाते थे। सुतरां अपरापर नाना अनुसन्धान द्वारा अब उनके गणना- । मानना पड़ा-राजा रामचन्द्र के समयसै सनातनधर्मा-