उपनिवेश वलम्बी आर्यगण का गमनागमन लङ्का प्रभृति समुद्र अवस्थित है। वर्तमान मलम जातिका प्राचीन इति- स्थित सुदर होपसमूहको होने लगा। किन्तु सुदूर हास पढ़नसे समझते, कि मलयबासी पहले सुमात्रा द्वीपसमूहमें उनके उपनिवेश स्थापनका प्रमाण क्या होपके मेजङ्काबू नामक स्थान में रहते थे। वही उनके है। ऐसी अापत्ति मिटानेको प्रबन्धके अधिकार में न आदिवासका स्थान था। उसोको वे मलय भी कहते पड़ते भी प्रसङ्गक्रमसे दो-एक बात कहते हैं। थे।* इस मलय जातिको भाषा आज भी सुमात्रा रामायणके निर्देशानुसार क्षत्रियप्रवर रामचन्द्र और प्रभृति होपसे अष्ट्रेलिया आर पश्चिम मादागास्कर लक्ष्मण सीताको छोड़ाने बहुदूर पर्यन्त प्रचलित है। भारत महासागरके इस गये थे। किन्तु लङ्का कहां है? वर्तमान देशीय होपसमूहमें प्राय एक भाषा चलनी और विदेशीय भौगोलिक एक वाक्यसे सिंहल या समझ सकते-ये मलयाषी भिन्न देशीय विभिन्न सोलोन कहलाने वाले दोपका ही प्राचीन नाम लङ्का जातिवाले पहले एक जातिके थे। कोई असभ्य बताते हैं। किन्तु यह सिद्धान्त सङ्गत समझ नहीं। अवस्था में रहते भी कालके क्रमसे सभ्य हुये और पड़ता। अति पूर्व कालसे ही हमारे शास्त्रकार लङ्का कोई सभ्य होते भो फिर अवस्थाके भेदसे नितान्त और सिंहलको स्वतन्त्र होप मानते आये हैं। निम्न- असभ्य बन गये। लिखित श्लोक देखते ही सबका सन्देह मिट जायेगा। मलयवासी. जातिके लोग रक्षः वा राक्षस "सिहलान् वर्वरान् ने छान् चे च लवानिवासिनः।" नामसे रामायण में कहे गये हैं। अाजकल यवदोपके (महाभारत, वन ५१ । २२) निकटवर्ती फोरिस दीपमें एकप्रकार कदाकार भीषण “लका कालाजिनाचैव शैलिका निष्क टात्तथा ॥ २० ॥ कृष्णवर्ण असभ्य जातिके लोग रहते हैं। उनमें ऋषभाः सिहलाथै ब तथा काञ्चीनिवासिनः ॥ २७॥" सभीको रक: कहते हैं। उनका खभाव भी राक्षस- ___(मार्कण्डेयपु० ५८ अ०) की तरह ही हैं। इसी दीपमें लरोन्तक नामक एक सिवा इसके भागवत (५।१८।३०) एवं हत्- नगर है। यह नाम भी संस्कृत नरान्तक शब्दका संहिता प्रभृति प्राचीन ग्रन्थ में लङ्का और सिंहल दोनों अपश-जैसा समझ पड़ता है। इस होपदी निकट स्वतन्त्र होप जैसे उल्लिखित है। ही आज भी राम, लक्ष्मण, नौल और नल प्रभृति __ब्रह्माण्ड पुराण में लिखा है, कि लङ्गापुरी मलय- रामायणोक्त वीरगणके नामानुसार कितने ही खुद होपके अन्तर्गत है।* आजकल पूर्व उपद्दीपके अन्त- क्षुद्र होप विद्यमान हैं। गैत श्याम देश दक्षिास्थित विस्तीग भूमिखण्डको ___ उक्त प्रमाणले समझ पड़ा, कि रावणके राजत्व- मलय-प्रायोद्दीप कहते हैं। वह यवहीपसे पश्चिम कालमें लङ्काका राज्य वर्तमान सुमात्रा प्रभृति होप-
- “यवदीपमिति प्रोक्तं नानारबाकरान्वितम्।
पुञ्जसे लेकर मादागास्कर पर्यन्त विस्तृत था ।** तवापि द्युतिमानाम पर्व तो धातुमण्डितः ॥ १९ तथ व मलयद्दीपर्मवमेव मुस'इतम् ।
- Crawfurd's Indian Arehipelago, Vol. II P. 371.2.
मणिरबाकरं स्फीतमाकरं कनकस्य च ॥ २० ग्रोसर्दशीय प्राचीन भौगोलिक इसी मलयको Cheraonesus Area तथा विकूटनिलये नानाधातुविभूषिते। अर्थात् स्वर्णदीप कहते थे। अनेकयोजनोत्सधे चिवसानुदरौराहे ॥ २६ + English Cyclopaedia, Vol. xi, P. 656. तस्य कूटरटे रम्ये हेमप्राकारतोरणा !
- English Cyclopaedia ( Geography ), Vol. II. E.
नियुहवलभौचिवा हर्वप्रासादमालिनी ॥ २७ 1015, Vol. III, P. 704. यह सस्क तके रक्ष: शब्दका प्राकृत रूप है। शतयोजनविस्तीर्ण विशदायामयोजना। 8 नरान्तक शब्द का अर्थ भी राक्षस ही है। नित्यप्रमुदिता-स्फीता बहानाम महापुरी॥ २८ .
- इसीसे समझ पड़ा, कि भारतवर्ष के भौगोलिकगाने लङा-.
सा कामरूपिणां स्थान राक्षसानां महात्मनाम् ।” (५० :) | दीपको उज्जयिनीको समरेखापर रखा है।