उपनिवेश अथवा प्राचीन मलयजाति सुदूरवर्ती मादागास्कर | विद्यमान हैं। मलयजातिवाले जिस स्थानको अपनी प्रभृति सकल द्वीपोंमें उपनिवेश करती रही होगी। आदि जन्मभूमि समझ गौरव बढ़ाते और पृथिवीके मलयशब्दमें विस्त त विवरण देखो। अपर सकल स्थानको अपेक्षा जहां समधिक सुवर्ण अन्ततः ब्रह्माण्डपुराणके मतानुसार यह बात पाते हैं, उसी स्वर्णमय भूमिके निकट आज भी इन्द्र- मानना पड़ी-मलयमें ही लङ्कापुरी रही। रामायणके गिरि नामक नद प्रवाहित है। उक्त नामसे स्पष्ट अनुसार इसी मलयका नाम सुवणेहोप था। आजकल हो हृदयङ्गम हुआ, कि एक समय हिन्दुवोंने सुमात्रा इसे सुमात्रा कहते हैं। हीपमें जा उपनिवेश किया था। सुमावा देखो। वर्तमान मानचित्रमें सुमात्रा होपके उत्तर पूर्वीशसे उसके बाद ही यवद्दोप है। इसका बहुतसा प्रमाण पर्वतके सानुदेशपर समुद्र के निकट 'सोनी लङ्गषा' मिला, कि उक्त स्थानमें किसी समय भारतवासि- नामक एक नगर है। यह "खण लङ्का" शब्दका योंने उपनिवेश किया और अपने धर्मको विशेष अपभ्रश-जैसा ही समझ पड़ता है। फिर इसी प्रबल बना दिया था। अद्यापि यवद्दोपके प्रम्बनन होपके अन्तवों होरक अन्तरोप ( Diamond नामक स्थानमें बहुसंख्यक देवमन्दिर देख पड़ते हैं। Pt.)के निकटस्थ एक बन्दरको आज भी 'लङ्कात' कहते उक्त मन्दिरसमूहमें इस समय भी शिव, दुर्गा, गणेश, हैं। इस समय भी इस होपके उत्तर पश्चिमांशमें विष्णु,सूर्य प्रभृति देवताओं की पाषाणमयो और पित्तल- काञ्चनगिरि ( Golden Mt.) विद्यमान है। * मयो मूर्तियां विराजमान हैं। हिन्दूधर्मावलम्बी राज- उक्त प्रमाणसे रामायणोक्त 'लङ्कापुरी' अथवा 'सुवर्ण-! गणने बहुकाल पर्यन्त इस स्थान में राज्य किया। होप'से वर्तमान सुमात्रा द्वीपको प्रचौन लङ्काका बोध बौद्धधर्म बढ़ने पर यहांके धर्मनिष्ठ भारतवासी बालि- होता है। सुमात्राहोप, यवदीप और फोरिस दोपसे होपमें जाकर रहे थे। यवोप देखा। दक्षिण-पश्चिम प्रवाहित सुमुद्रको आज भी स्थानीय बालिहोपमें आज भो हिन्दू धर्म प्रबल है। अद्यापि बुगी जातिबाले 'लङ्गाई' सागर कहा करते हैं। वहांके राजा शैवमतावलम्बो देख पड़ते हैं। वहां इसके द्वारा भी लङ्काके स्थानका निर्णय हो सकता है। पूर्वकालीन भारतीय राजनीति के अनुसार ब्राह्मण __सुमात्रा द्वीपमें हिन्दूजातिका लेश मात्र न रहते, विचारकका कार्य किया करते हैं। पतिके मरनेपर हिन्द-निर्मित मन्दिरादिका ध्वंसावशेष तक देखन सती उसको सहगामिनी बनती है। वालि देखी । फिर भी पड़ते और इतिहासमें कुछ न लिखते भी ऐसे धनक | इसके समझने का कोई उपाय नहीं-कितने दिनसे प्रमाण मिलते, जिनके द्वारा हम मुक्तकण्ठसे मान वहां भारतीय उपनिवेश स्थापित हुआ है। सकते, कि श्रीरामचन्द्र के आगमन बाद भारतवासी बालि हौपके बाद ही लम्बक द्वीप है। यह भी स्वर्णके लाभको आशासे उस स्थानपर जा पहुंचते इस समय हिन्द्र राजाके अधीन है। यहां हमारी थे। इस होपमें आज भी मङ्गल, इन्द्रगिरि, इन्द्रपुर प्राचीन स्म तिके अनुसार राजकार्य और विवाहादि आदि हिन्द-प्रदत्त संस्कृत नामके नगर तथा नदी नद निर्वाह हुआ करते हैं। किसी किसोने कहा, कि बालि होपके हिन्दुवोंने वहां पहुंच उपनिवेश किया . ब्रह्माण्डपुराण इसोको 'काञ्चनपाई' नामसे मलयदीपक मध्य | था। लखकरेगी. बताता है। "तथा काचनपादस्य मलयापरस्य हि।" (ब्रह्मापु० ४८५०) ब्रह्माण्डपुराणके मतसे मलयदीपके पूर्व शङ्खदीप + स्कन्द पुराण जिवलिखित वचनसे इसका कितना ही प्रमाण पाते, कि रामके बाद इस लवाहोपमें बहुत से लोग स्वर्ण लाभकी पाशा ! आते जाते थे।- स्कन्दपुराणमें यह भी लिखा, कि रामकै स्वर्गारोहय करनेपर उनके "भविष्यन्ति कलौ काले दरिद्रा नृपमानवाः । पुव कुशका गमन लङ्कामें हुआ था। ( नागरखण्ड १८८ प० ६०-८२ शो०) तेऽव स्वर्गव लोभन देवता-दर्शनाय च ॥ ४० • इस सुमाबाकै पात्रका रूपत' नामक दीप रामाययोत पक्रदीप ही नित्य चैवागमिष्यन्ति व्यक्त्वा रच:वसं भयम् ।४॥" (नागरख ६४.१०)। समझ पड़ता है। Vol III. 80
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