पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३५६

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उपायत्व-उपावसायिन् ३५५ उपायत्व (सं. लो०) साधन प्राप्त होनेकी स्थिति, उपारम्भ (सं० पु.) उप-प्रा-रम्भ-घन-नुम् । रभर तदबीर निकल आनेको हालत। लिटोः । पा ७:१६६३ । पारम्भ, शुरू। उपायन (सं० लो० ) उप-इन् वा अय-ल्य ट। उपारूद (स. त्रि०) बर्धित, बढ़ा हुआ। १उपढौकन, भंट। २ निकट गमन, पहुँच। ३ उप-उपारूढस्नेह (स.त्रि.) बधित प्रीति रखनेवाला, गमन, पास जानकी हालत। (ऋक् ।२८२) 'उपायने । जो अपनी मुहब्बत बढ़ा चुका हो। उपगमने।' (सायण ) कर्मणि ल्युट। ४ उपढौकनीय उपार्जक (सं० त्रि०) अर्जन कर लेनेवाला, जो कमा ट्रव्यादि, भेटकी चीज़। ५ व्रतादि प्रतिष्ठा। खाता हो। उपाययोग (सं० पु०) साधनका नियोग, तदबीरके ! उपार्जन (सं० लो०) उप-अर्ज-ल्य र। १ अर्जनकर काममें लगाये जानेकी बात । लेनेका कार्य, कमाई। सेवा, खिदमत । ३ कृषि, उपायान्तर (सं० ली.) प्रतीकार, इलाज । खेती। ४ बाणिज्यादिका धनलाभ, रोज़गार वगैरह- उपायिक (सं० त्रि०) आवहकर, मायल, रुज। का फायदा। उपायिन् (सं० त्रि०) उप-अय-इनि। १ साधन उपार्जनीय (सं० वि०) अर्जन किये जाने योग्य, जो युक्त, तदबीरी। २ उपगन्ता, डौला लगा लेनेवाला।' कमालेनेके काबिल हो। (कात्यायनश्रौतसू० ।५।१६) उपार्जित (सं त्रि०) प्राप्त, कमाया हुआ। उपायु (वै० त्रि०) उप-आ-इन उन्। उपगन्ता, उपाथै (स त्रि.) पल्प अर्थवाला, नाकाम, जिससे पास पहुंच जानेवाला। (शुक्लयजुः ११) कोई काम न निकले। उपार (वै० पु०) उप-ऋ-घञ्। समीप, पड़ोस। उपालब्ध (स' त्रि.) उप-आ-लभ-क्त। तिरस्कार- (ऋक् महा६) २ प्रमाद, ग़लती। पूर्वक निन्दित, जो झिड़का और बुरा कहा गया हो। उपार-बम्बईप्रान्तीय कोल्हापुर राज्यके सङ्गतराश। उपालभ्य (स. त्रि०) निन्दनीय, जो झिड़काने यह दश बारह हज़ारसे कुछ अधिक ग्रामों तथा नग । जाने के काबिल हो।। रों में बसते हैं। देखने में उपार कुनबियों या मालियोंसे उपालम्भ (सं० पु०) उप-प्रा-लभ-घञ्-नुम् । उपसर्गात मिलते-जलते हैं। यह देवताको अपने वशमें रख- खल् घो। पा ७:१६६७ । १ तिरस्कार, गाली- नेका दावा करते हैं। कभी-कभी उपार नदीके गलेज, आड़फटकार। २ विलम्ब, देर। किनारे बैठ माल फेरते और अवसर पा स्नान करने- उपालम्भन (स क्लो०) उपालम्भ देखो। वालोंका माल-असबाब ले भागते हैं। ये यहांसे उपालम्भा (संत्रि.) अतिरिक्तरूपसे ग्रहण किया नमक भी बनाते हैं। इनमें विधवा-विवाह होता है। जानेवाला, जो ज्यादतोमें लिया जाता हो। किसीके मरनेपर दश दिन अशौच रहता है। पञ्चायत-उपालि-बुद्धदेवके एक प्रिय शिष्य । जातिके नापित से जातिका झगड़ा मिटाया जाता है। इनमें पड़े होते भी ये बुद्धको कपासे शाक्यभिक्षुवोंमें प्रधान बन लिखे और अमीर पादमी कम हैं। गये थे। बौद्ध विनयको इन्होंने नियमित किया। उपारण (सं० क्लो०) उप-प्रा-ऋ-ल्य ट्। अनुपयुक्त (महावस्त्ववदान) स्थान, ख़राब जगह। उपाव (हिं० ) उपाय देखो। सपारत ( सं त्रि. ) उप-प्रा-रम-त। १ प्रत्या उपावर्तन (स० क्लो०) उप-प्रा-वृत-ल्युट् । १ पुनर्वार वृत्त, आने-जानेवाला। २ प्रसन्न, खुश। ३ संलग्न, आगमन, वापसी। २ भूमिपर लुण्ठन, ज.मोन्पर मशगूल। लोटने-पोटनेका काम। ३ प्राप्ति, पहुँच। ४ समाप्ति, उपारना, उखाड़ना देखो। बन्दी। उपारम (सं० पु०) नियोग, लगाव। | उपावसायिन् (स० वि०) अधीनस्थ, मातहत ।