पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३७३

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३७२ उमा-महेश्वर-उमौचन्द कर मन्त्रीके हाथों राजकीय कोषमें जमा कराना उमाह (हिं. पु.) पौत्सुक्य, दिलका उभार, उमंग। पड़ता था। १७३६ ई. पर उमा-बाईने पोलाजीके | उमाहना (हिं० क्रि०)१ प्रवाहित होना, बह चलना। स्थानमें दामाजीको गुजरातमें अपना प्रतिनिधि माना। २ उत्सुक होना, छटपटाना। किन्तु वह रंगोजीको अपनी जगह छोड़ दक्षिण गये | उमाहल, उमंगा देखो। थे। फिर रंगोजी और कांताजो कदममें विवाद उमोचन्द (अमोरचन्द)-एक प्रसिद्ध बणिक । १०१० होनेपर उन्हें वापस आना पड़ा। किन्तु दामाजी शताब्दीके शेषभागमें अमौरचन्द और गोपालचन्द कांताजीके लिये चौथका प्रबन्ध बांध दक्षिणको लौट नामक दो सिख बणिक बङ्गालमें आकर बसे। लोग गये । वहां उमा-बाई पेशवाके विरुद्ध साजिश समझ न पाये, वही बङ्गालके प्रथम अधिवासी कहाये करती थीं। इन्होंने खांडेराव गायकवाड़को अपनी या उनके पूर्वपुरुष भी किसी समय यहां अ सहायता के लिये बुलाया। रंगोजीको उमाबाईने ___ उस समय वैष्णवदास और मानिकचन्द सैठ नामक अपना सहकारी बना लिया था। १७४७ ई० में दो बणि कोंने बङ्गालमें बहुविस्वत व्ययमायसे प्रचुर उमा बाई स्वगै गयो। धनसम्पत्ति कमा विशेष प्रतिपत्ति पायो थो। अमोर- उमा-मईखर-बम्बई प्रान्तके नासिक नगरका एक चन्द आते ही उनके पास बाणिज्य-विषयक कर्ममें मन्दिर। यह सुन्दर नारायण मन्दिरसे दक्षिण-पूर्व लग गये और कार्य को कुशलता तथा दक्षताके गुण ७. गज दूर बना है। यह पत्थरको एक दीवारसे क्रमशः यावतीय व्यवसायकै अध्यक्ष बन गये। घिरा किया है। सामने दो मकान् खड़े हैं। मन्दिर काम करते करते इन्होंने भी अपनो सम्पत्ति बढ़ायो के सामने काठका एक बड़ा कमरा बना है जिसकी पौर अन्तको अपनी दुकान खोल दी। थोड़े ही छतपर बहुत अच्छा काम खुदा है। भीतर कृष्ण दिनोंमें बङ्गाल और विहार दोना जगह इनके बाणिज्य प्रस्तरको तीन मूर्तियां कोई दो फीट ऊंची प्रतिष्ठित व्यवसायको धूम पड़ गयौ थो। हैं। बीच में मईखरवा शिव, दाहने गङ्गा और बायें | । उधर बङ्गालमें अंगरेजोंका भी बाणिज्य चलता उमा या पावती हैं। हम सुन पाते हैं, कि कर्णाटकसे था। कलकत्तेमें उस समय अंगरेजी कौन्सिलका मराठे वह मूर्तियां लूट लाये थे। १७५८ ई०को अधिकार रहा, अंगरेजोंके साथ काम कर अमौरचन्दने श्य पेशवा माधवरावके चाचा बकराव अमृतखरने कलकत्ते में बहुत बड़ा मकान बनवाया। अस्त्रधारी २लाख रुपये लगा मन्दिर बनवाया था। गवरनमण्ट पुरुषोंका एकदल सर्वदा उपस्थित रहता था। वार्षिक प्रायः २०० रुपये मन्दिरको देती है। मन्दि- अंगरेजोको पण्यद्रव्य अधिकांश अमोरचन्द हो रका प्रबन्ध श्राचार्य काशीकरके वंशज करते हैं। पहुंचाते और मुर्शिदाबादके नवाबसे भी अपना बाद के समय मन्दिरको चटान पानीसे घिर जाती है। काम बनाते थे। नवाब साहबके निकट इनका बड़ा मन्दिर के सामने नदीमें उतरनेको सिड़ियां बनी हैं। मान रहा। उमावन (स ली.) शोणितपुर, देवीकोट, एक शहर । ___ कम्पनीको रसद देने में प्रमौरचन्द बहुत धनी उमासहाय (सं० पु०) शहर, पार्वतौके साथौ महादेव। होते हुए भी लोभवश अन्यान्य उपायोंसे लाभकी चेष्टा उमासुत (सं० पु.) उमाया सुतः। कार्तिक । करने लगे। अंगरेजोंने अच्छा माल न पा और रामास्वातिवाचक (स. पु.) एक प्रसिद्ध जैन ग्रन्थ मराठोंके उत्पातसे घबरा इनसे रसद लेना रोक कार। इन्होंने प्रशमरतिप्रकरण और सत्त्वार्थ सूत्र - दिया। इससे विशेष क्षति पड़ते भी अमोरचन्दने मामक दो अन्य बनाये हैं। किसी किसी हस्तलिपिमें | नवाबके साथ अपना कारबार बढ़ाया। उमास्वामी भट्ठारक माम लिखा है। बहुतोंका मत है। __ उसी समय अलौवर्दी पौड़ासे शय्यागत हुये। उनके कि ये ईशवीय सन्से पहिले जीवित थे। जीनेकी आशा न रही। लोगोंने समझा-नवाबके