पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३८७

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उर्णा-उवट उर्णा (सं० स्त्री०) कर्ण-ड ततः टाप स्वः। १ मेषा-. जिस समय यह भाषा निकली, उस समय मसल- दिका लोम, भेड़ वगैरहका रूया । २ ललाटका! मानोंका राज्य था। सब लोग इसी भाषाको भारत- लोमसमूहात्मक चिह्न विशेष। अपर्णा देखी। वर्ष के इस छोरसे उस छोरतक लिखते थे। हिन्दी उर्णायु, जय देखो बहुत कम लिखी जाती थी। इसीसे उर्दू की प्रधानता उद-१ सकर्मक धातु। यह दान और पाखाद कर बढ़ी और इसने बड़ी उन्नति कर ली। नेके अर्थमैं पाता है। २ अक० स्वादि० श्रात्म० सेट् । लखनऊको उर्दू प्रसिद्ध है। ऐसा माधयं अन्य यह क्रीड़ा करनेके अर्थ में व्यवहृत होता है। प्रदेशको उर्दू में देख नहीं पड़ता। इसका मुख्य उद, उरद देखो। कारण लखनऊको उर्दू में संस्कृतके बिगड़े शब्दों का उदेपर्णी (हि. स्त्री०) माषपर्णी, जङ्गली उड़ द। अधिक परिमाणसे समावेश है। उर्दू (हि. स्त्री०) १ सेना, फौजी बाज़ार । २ भाषा ___अब थोड़े दिनोंसे भारतवासी हिन्दो लिखने पढ़ने विशेष, फ़ारसी और अरबी मिली हुई हिन्दुस्थानी लगे हैं। इसीसे उर्दू का दबदबा घट गया है। हिन्दीने जवान् । तुको भाषामें इस शब्दका प्रछत अर्थ शिविर है। अपनी अपूर्व मोहिनी मूर्ति सबको देखा दी है। किन्तु शाहजहान्के राजत्वकालमें उर्दू एक भाषाका लोगोंने समझ लिया है,-उर्दू कभी हिन्दीको पा नाम पड़ा। कारण बादशाही फौजक सिपाही नहीं सकती। कारण हिन्दो और उरदू दोनोको क्रिया फारसी, अरबी, तुर्की और हिन्दुस्थानी थे। वह एक ही है। फिर वह क्रिया संस्कृत धातु बिगड़- हिन्दीमें अपनी अपनी भाषाके शब्द प्रयोग करते थे। यह नेसे बनी है। इसलिये उसके साथ संस्कृत के विशेश्य भाषा मुसलमानोंके राजत्व कालमें दिल्लीसे निकली। विशेषणादि शब्द बहुत अच्छे लगते हैं, फारसी और युक्ता-प्रदेश और पञ्जाबमें इसका व्यवहार अधिक है। अरबीके शब्द ठीक नहीं पड़ते। यह पहले दिल्लीके बादशाहों और लखनऊके नवा- उर्दूबाज़ार (हिं पु०) · १ से न्य-हट्ट, फौजी हाट, सभामें चलती थी। आज भी युक्त प्रदेशादिको जो बाजार छावनी में लगता हो। २ प्रधान हट्ट, अदालतोंमें उटू का ही उद्भव देख पड़ता है। भारत- बड़ा बाजार। वर्ष के मुसलमान इसोका अधिक व्यवहार करते हैं। उर्दू मुवल्ला (तु. स्त्री०) १ राजभाषा, आदालतो बहुत संस्कृत शब्दोंके अपभ्रंशसे ही उर्दू निकली है। ज़बान् । २ दिल्लीका वाग्व्यवहार, जी महावरा समग्र क्रियावाचक शब्द संस्कृतके धातु बिगाड़ कर दिल्लीमें चलता हो। बनाये गये हैं। जैसे-करना, चरना, डरना, भरना, उद्र (स० पु.) अदरक । जलविड़ाल, जद- मरना, लिखना, पढ़ना, उठना, बैठना, चलना, फिरना, बिलाव। अहिडाल देखी। हिलना, डलना, जाना, पाना, गाना, बजाना, बताना. | उधं (हिं.) ऊर्ध्व देखो। सुनाना इत्यादि । इसीप्रकार उपसर्ग भी संस्कृत उफ (प. पु.) उपनाम, प्यारका नाम । शब्दोंसे मिलते हैं। जैसे-ने, को, से, में, पर प्रभृति। उर्मि (हिं.) ऊर्मि देखो। विचारनेसे हिन्दी और उर्दू में विशेष भेद नहीं| उर्मिला (हिं० ) अनिला देखो। पड़ता। केवल उर्दू फारसी पौर हिन्दी संस्कृतके उर्मीकफ (सं० पु०) समुद्रफेन, समुन्दरका भाग। अक्षरोंमें लिखी जाती है। हां, मुसलमान अपना | उर्व-स्वादि• पर० सक० सेट्। यह धातु हिंसा कर . भाव प्रकट करनको विशेष्य एवं विशेष फारसीके अर्थमें आता है। रखते हैं और हिन्दू संस्कृतके शब्दोंको भरमार करते उर्वङ्ग (सं० पु०) १ पर्वत, पहाड़ । २ समुद्र, बहर। हैं। किन्तु क्रिया दोनों भाषाओंको एक ही है। उर्वज (सं• पु०) विस्त त क्षेत्र, बड़ा खेत । 'करना लिखनेके लिये दसरा कोई शब्द नहीं। उवट (सं० पु.) उरु-अट-अच् । वत्सर, साल।