पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३९२

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उलाहना-उलूपी 'उलाहना (हिं. पु०) उपालम्भन, शिकवा, शिकायत ।। तरह होते हैं। उलक सीधा चलता और उमा करता उलिचना, उलीचना देखो। है। यह 'उलक, उलक' बोलनेसे श्रीहट्ट, आसाम उलिन्द (सं० पु०) वल-किन्दः सम्यसारणम्। प्रभृति अञ्चलोंमें उलक कहलाता है। बैठनेसे यह एक १ कुलिन्द देश । २ शिव। फोट ऊंचा देख पड़ता है। चौटी और मकड़ी वर्ग- उलोचना (हिं. क्रि०) जलनिक्षेप करना, हाथ या रह इसके खानेकी चीजें हैं। फिर वृक्षका पत्र और किसी दूसरौ चौजसे पानी फेंकना। उपादेय फल भी इसे अच्छा लगता है। यह शीघ्र उलुप (सं० पु.) १शाखापत्वयुक्त लता, डाल आर फंदे में नहीं पड़ता। ग्रीष्मकालमें ही यह पकड़ा पत्तीवाली बेल। २ कोमलगा, मुलायम घास ! जाता, क्योंकि उस समय वृक्ष छोड़ भूमिपर सोने को उलुपी (सं० पु०) शिशुक, सूस । उतर पाता है। वृक्षपर पकड़ा जानेसे आहार-जल उलुबेड़िया-१ बङ्गाल प्रान्तके हवड़ा जिलेको एक छोड़ता और इहसंसारसे मुह मोड़ता है। किन्तु तहसील। इसमें उलुवैड़िया, आमता, बाघनान और बच्चे शीघ्र ही हिल जाते हैं। शामपुर चार थाने लगते हैं। उल कपाद (सं० पु.) अश्वपादरोग विशेष, घोड़े के २ हवड़ा जिलेका एक नगर। यह हुगली नदीके पैरकी एक बीमारी। कूर्चको आवर्तन कर जङ्घामें किनारे अक्षा०२२°२६ उ० तथा ट्राधि० ८८८ उत्पन्न होनेवाला शोथ उल कपाद कहलाता है। १५“पू०पर अवस्थित है। उलूवेड़िया मेदिनीपुरको उलकयातु (वै० पु०) वेदोक्त असुर विशेष। यह राहमें पड़ता है। १६८६ ई० पर्यन्त यह स्थान असुर उल्लूको सूरतमें रहता है। (ऋक् ७१०४।२२) उड़ीसामें मिला था। उलकायम (सं० पु०) इन्द्र का भवन, इन्द्र के रह- 'उलुम्बा (सं० स्त्री०) बमानी, अजवायन। नेकी जगह। उलुलि ( स० पु०) उल-उलि! वृद्धिसूचक शब्द उलूखल (संलो०) अध्वं खमुलूखं पृषोदरादित्वात् (वाच्य), गुरराइट। ला-क । १ धान कूटनेका काष्ठ वा पाषाणमय पात्र, उलूक (स• पु०) बल-उक् सम्प्रसारणञ्च। उल्का- खल । २ गुग्ग लु, गूगुल । दयश्च । उण ४४१ । १ इन्द्र।.२ पेचक, उल्लू । ३ उलखल, उलखलक, उलूखल देखो ! । ओखलो। ४ दुर्योधनका एक दूत ४ योधनका एक दत। विश्वामित्रके उलखलसन्धि ( पु.) कक्षावण दशनसन्धि । एक पुत्र। ६ एक जनपद। (मार्क०पु० ५८४०) यह उलखलसुत (वै० पु०) उलखल द्वारा अभिषत स्थान भारतके उत्तरांशमें अवस्थित है। अर्जुन सोमरस। (ऋक् ॥२८१) ... दिग्विजयके समम यहां आये थे। उस समय वहन्त उलूखलिक (सं० त्रि०) उलखलमें कूटा हुआ, जो इस देशके राजा रहे। (महा० सभा २६ १०) कहीं इसे खलमें साफ किया गया हो। उलूत (महा० भीम रा५३) और कहीं कुलूत (वामनपु० १३४२) उलूट (स० पु० ) जातिविशेष । भी कहा है। आजकल इसे कुउ कहते हैं। ज्वाला- उलत (सं० पु०) उलति हिनस्ति यः, उल् बाहुल- मुखी तीर्थ के उत्तर विपाशो तटसे यह जनपद लगता कात् उतच्। १अजगर सर्प, बहुत मोटा और बड़ा है। इसकी प्राचीन राजधानी नगरकोट थी। वर्त- सांप। २ जनपद विशेष, एक बसती। मान राजधानी सुलतानपुर है। ७ चट्टग्रामका एक उलूप उलुप देखो। प्राचीन नगर। (भविष्य, ब्रह्मखण्ड १५/२०) उलपी (सं० पु०) १ शिशुकमत्स्य, सूस। (स्त्रो०) . ८ जन्तुविशेष। यह लाङ्ग लहीन एकजातीय , २ ऐरावत कुलके कौरव्य नामक नागराजको वानर है। इसका सर्व शरीर काला रहता, केवल कन्या। पाण्डनन्दन अजुन वनवासके समय गङ्गा- चक्षुका भ्र सफेद पड़ता है। कर्ण अधिकांश मनुष्यको हारके निकट इन नागकन्या द्वारा प्राकर्षित