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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३९३

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३६२ उलटना-उल्का हो नागलोक पहुचे थे। वहां उलूपीकी प्रार्थनाके . का निगूढ़ तत्त्व समझनेके लिये विस्तर यत्न लगा रहै. अनुसार उन्होंने विवाह किया। उलूपौने अपनी हैं। किन्तु वस्तुतः वह आज भी उल्काका निगूढ मनस्कामना सिद्ध होने पर अर्जुनको वर दिया तत्त्व विशेष रूपसे ढढ नहीं सके। जो नाना मत था-तुम समस्त जलचरोंको जीत सकोगे : (भारत, आदि| चलते, उनका संक्षिप्त विवरण नीचे लिखते हैं- २१४ अ० ) उसी समय मणिपुरपति अजुनपुत्र व वाइन किसीको समझमें टूटनेवाले नक्षत्र (Shooting stars), पिताके आगमनको वार्ता मुन अभ्यर्थना देने गये। अग्निके गोलक (Fire-bello) उपनक्षत्र (Astervids) अर्जुनने अपने पुत्रको विना युद्धको सज्जा आते देख | प्रभृति दीप्तिमान वस्तु ही उल्का हैं। पृथिवीके निकट अत्यन्त विरक्त हो विस्तर भत्सना बतायी थी। वज्र पानेसे वह हमें देख पड़ते हैं। युरोपके प्राचीन वाहन उससे दुःखित न हुये। किन्तु ज्योतिविद कहते, कि वायुमण्डलके अध्व भागमें नक्षत्र जा उन्हें पितासे लड़ने को भड़काया था। उलपोको जैसे कितने हौ दीप्तिमान् वस्तु समय समय पर देख मायासे वव्र वाहनने अर्जुनको मार डाला। फिर पड़ते और गगनमार्गमें द्रुत वेगसे चलते ; फिर शीघ्र उलपीके दिये दिव्य मणिके प्रभावसे ही वह जिये थे।। अन्धकारमें छिपते हैं। कभी कभी कतिपय वृहदाकार (पावमेधिक ७६.८०) कुमिला और त्रिपुराके राजा अप वस्तु भी दृष्टिगोचर हो जाते हैं। वायुको गतिसे उनमें नेको उल पी और अर्जुनके वंशीय बताते हैं। विपर्यय पड़ता है। कोई अल्प-परिसर पथमें फिरते उलेटना, उलटना देखो। फिरते उज्ज्वल आलोक एवं धूम छोड़ता, कोई दो- उसेटा, उलटा देखो। तीन खण्डमें टूटता और कोई गभोर गर्जनके साथ फट उलेड़ना (हिं.क्रि.) उडेलना, ढालना। कर भूमितलपर गिरता है। उलेख (हिं० स्त्री०) १ आल्हाद, खुशी। २ उन्नति, उल्का पृथिवीपर नानाप्रकारके आकारमें गिरते वृद्धि, बाढ़। (त्रि.) ३ अविज्ञ, बेसमझ। देख पड़ी है। कभी बिलकुल मेघ न रहते गभीर उलैंड़ना, उलेड़ना देखो। उल्का (सं० स्त्री०) ओषति, उष षकारस्य लत्वं क ततः टा। शुकवल्कोल्का:। उरार ३४२ । १ तेजःपुन, ज्वाला, खाला, लपट। “उल्का ज्वालाविभावमोः।" (मुभूति) २पाकाशसे पतित अग्नि, आसमानसे गिरी पाग। कितने ही लोग समझते, आकाशसे जो उल्का- काण्ड पड़ते, उन्हें टटा तारा कहते हैं। गणनातीत कालसे इस आकाशमें उत्पात होते आये हैं। फिर आकाशमें उल्का । अति प्राचीन कालसे इस अभावनीय नैसर्गिक घट- गर्जनसे उल्कापात हुआ है। कभी निर्मल आकाश नाको देख लोग नानप्रकार कल्पना भी लगाते रहे हैं। पर अल्प समयके मध्य मेघका अन्धकार चढ़ा और वैदिक ऋषि उस्काको अग्निका अंश जानते भौषण शब्द के साथ प्रस्तर पड़ा है। कभी आकाशमें (ऋक् १०६४।४ ) और उल्काको उत्पत्ति भी सूर्यसे मानते सहस्र सहस्र सर्पाकारसे झलक गभौर गजनके साथ थे। “अवचिपन्न उल्कामिव द्योः।" (ऋक् १४१६४४) उल्का गिरी है। उल्कामें जो प्रस्तर वा लौह रहता है,. देशके प्राचीन ज्योतिर्विदोंने इसे अष्ट उपग्रहके वह पार्थिव प्रस्तर वा लौइसे नहीं मिलता। किसी मध्य गिना है। उपग्रह देखो। उनका मत इस प्रस्ता- उलकाके लौहमें सैकड़े पीछे ८६ भाग ट्रवणीय लौह वके उपसंहारकालमें विकृत होगा। होता है। कहीं कहीं.धातव लौहका प्रभाव भी युरोपीय वैज्ञानिक ज्योतिर्विद बहुत दिनसे उल्का रहता है। तोह देखो।