पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४२६

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ऋक्साम-ऋग्वेद ४२५ फक्साम (सं. क्लो०) ऋक्च साम च हयोः समा- पाप छुट पड़ता है। हविष्याब खा लन्च गायत्री मन्त्र हारः, समाहारहन्द। ऋक् और सामका मिलन। । जपनेवाला मोक्ष लाभका अधिकारी है। ऋक्सामशृङ्ग (सं० पु.) विष्णु । भोकार परब्रह्म है। प्रववके जपनेसे सर्वपाप ऋगयन (सं. लो०) ऋचामयनं यत्र, बहुव्री.। छटता है। जो नाभिमाव जसमें ठहर शतवार भोकार ऋक-पारायण ग्रन्य विशेष। जपता, उसको देखते ही पाप कंपता है। ऋगयनादि (सं० पु.) पाणिनि कथित एक गण। तीन मावा, तीन वेद, सप्त महाव्याहृति और सप्त- इसके अन्तर्गत व्याख्यान, छन्दोगान, छन्दोभाषा, छन्दो-! लोक उल्लेखपूर्वक होम करनेसे सकल जन्मका पाप विचिति, न्याय, पुनरुवा, निरुक्त, व्याकरण, निमम,वास्तु छुटता है। जलके मध्य महाव्याहृति और परमा विद्या, चनविद्या, अङ्गविद्या, विद्या, उत्पात, उत्पाद, गायत्री जपनेको अघमर्षण कहते हैं। जो वहिदैवत उद्याय, सम्बत्सर, मुहत, उपनिषद, निमित्त, “अग्निमौले पुरोहितम्” (१११) सूक्त यथाविहित एक वत- शिक्षा और मिक्षा है। सर जपता, उसे सकल इष्ट मिलता है। मेधाकामी ऋगावान (सं० लो०) ऋचां प्रावानं ग्रथनम्, ६-सत् । 'सदसन्यम्', मृत्यु निवारणेच्छ, 'अनःशेपमृषिम्', शत्र एवं वेद पढते समय अर्ध ऋच् प्रभृति पूर्व परके साथ विघ्न दमनाभिलाषी 'हिरव्यस्त पम्', पारोग्यकामी अथवा सम्मिलन। रोगी 'प्रस्कण्वमोत्तमम्', आसनको मिहिका इच्छुक ऋग्गाथा (स० स्त्री०) ऋचामिव गाथा, उप० । मध्याह्नकालको 'उत्तमस्तस्य', अर्ध ऋक् तथा उदयव्यायु .. लौकिक गीतिवेद। राय्य तेजः' पूर्ण ऋक, सूर्यास्त होनेपर शटुसे परि- ऋग भाक् (सं.वि.) ऋक का भाग लेनेवाला। वाणेच्छ, 'नवयय', मोक्षकामी 'आध्यात्मिकोः कः', वस्त्र- ऋग्मत् (सं० वि०) ऋक अस्त्यस्य, ऋक -मतुप । कामी 'व' मोम' पौर पुण्यकामी मध्यवेलामें 'पापन: १स्तावक, तारीफ करनेवाला। २ पूज्य, परस्तिशके शोनचेत्' इत्यादि कामनानुयायो ऋक यथाविहित काबिल। जपनेसे सर्व प्रकार सिदिलाभ करता है। प्रसव ऋग्मिन् (सं० त्रि.) ऋक प्रस्थास्ति, ऋक-मिनि। समय 'प्रमन्दिन' सूक्ता जपनेपर गर्भवेदना अनुभव न स्तोता, तारीफ करनेवाला। कर गर्भिणी सुखसे प्रसव कर सकती है। कर्षणकाल, "निर्णिलमिणे ययुः।" (ऋक राहा४६) वपनकाल एवं छेदनकालपर सूक्ता द्वारा इन्द्रादि 'ऋमियः स्तोतार:।' (सायय) देवगणको उपासना करनेसे सकल कर्म प्रमोघ पड़ता ऋग यजुःसामवेदी (सं० वि०) ऋक, यजुः पौर| और कृषिके कार्यमें उत्कर्ष बढ़ता है। 'विजिगीषु बनस्पति' सामवेद जाननेवाला। सूक्त जपनेसे मूढगर्भा स्त्रोका गर्भ अनायास निकल ऋम्विधान (सं• क्लो०) ऋग वेदोक्त मन्त्र द्वारा पासा है। (भनिपु० २।८५०) ऋग्वेद (सं० पु०) ऋगेव वेदः । प्रथम वेद। यह व्रतविशेषका विधान। इसमें यही वन चलता. संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और सूत्रभेदसे चार ऋग्वेदका कौन मन्त्र जपनेसे क्या फल मिलता है। प्रकारका है। फिर ऋग्विधान पढ़नेसे जानते, जगत्के आदिग्रन्थ ऋकसंहिताको नाना शाखा हैं। महापुराणादिमें और महाधर्मग्रन्थ ऋग वेदवाले मन्वादि प्राचीन ऋषि उमेख किया-कृष्ण पायन वेदव्यासने वेद भाग- किस प्रकार सम्मान एवं पुस्तफलप्रद मानते थे। कर पैलको ऋग्वेद दिया था। अग्निपुराणमें इसतरह ऋविधान लिखा है- “ऋविदः प्रथमं विप्र पैल ऋग्वेदपादपम् ।। जलके मध्य अथवा होमके समय प्राणायामपूर्वक इन्द्रप्रमतये प्रादाद वास्कलाय च सहित ॥ १५ गायत्री अपनेसे अभीष्टसिद्धि होती है। जो निशा- चत स विभेदाथ वास्तलि कि सरिताम। .: भोली हो दशमास मायवी जप करता, उसका सकल । बौध्यादिभ्यो ददौ वास्तु शिष्येमाः स महामुनिः। 107 Vol. III.