पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४३६

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ऋतवत्-ऋतु ४३५. ऋतवत् (वै• त्रि) उचितवक्ता, जो सच कहता हो। · ऋताषड्, ऋताषात् देखो। ऋतवाक् (वै० पु०) सत्य भाषण, रास्तगोई। 'ऋताषात् (वै• पु०) धार्मिक व्यवस्थाको प्रतिपालन ऋतवादी (वै० त्रि०) ऋत सत्यं वदति, ऋत-वद करनेवाला। णिनि। सत्यवादी, सच बोलनेवाला। ऋति (सं० स्त्री०) ऋ तिन्। १ कल्याण, भलाई । ऋतव्रत (स० पु०) शाकहोपस्थ एक उपासक । २ पथ, राह। ३ निन्दा, हिकारत। ४ स्पर्धा, हसद। ऋतसद् (वै० पु.) ऋते य- सोदति, ऋत-सद- ५ गमन, चाल । ६ अमङ्गल, बुराई। ७ नरमेध विष । १ अग्नि। (त्रि.) २ सत्य में प्रतिष्ठित, यत्तस्थ देवताविशेष। ८ आक्रमण, इमला। रोति, सचाईमें रहनेवाला। ३ यजस्थानीय । ( सायण) चलन। १० सम्पद, खुशहाली। ११ सत्य, रास्तो । ऋतसदन (वै लो०) ऋताय यज्ञाय सीदत्यस्मिन्, १२ स्मरण, याद। १३ शरण, पनाह। १४ दुर्भाग्य, ऋत-सद-ल्य ट । यज्ञार्थं उपवेशन-स्थान, ठोक या बदबखती। मामूली बैठक । ऋतिकर (सं० त्रि.) ऋतिं करोति, ऋति-क-खच- ऋतसाप (वै त्रि.) १ यन्न प्रदान करनेवाला, मुम्। १ शुभकारक, भलाई करनेवाला। २ अमङ्गल- जो पत्र देता हो। कारक, बुराई करनेवाला । "ये चिडिपूर्व ऋतसाप आसन् ।” ( १। १२) ऋतीया (स. स्त्रो०) ऋत-ईयङटाप। १ घृणा, "ऋतसाप ऋतस्य यज्ञस्यापरितारः।” ( सावण ) नफरत। २ जुगुप्सा, हिकारत। ३ लज्जा, शमै । धार्मिक कार्य करनेवाला। धार्मिक विश्वास में दृढ़ । ऋतोषह (दै० वि०) ऋतिं पौडां शत्रु वा सहते, ऋतस्तुभ (वै० पु०) उचित रूपसे स्तुति करनेवाले ऋति-सह-किप. दीर्घः षत्वञ्च । १ पोडा सहन करने- एक वैदिक ऋषि। वाला, जो तकलीफ उठाता हो। २ शत्रुको वयोभूत ऋतस्था (वै० वि०) उचित रूपसे दण्डायमान, करनेवाला, जो दुश्मन्को दबाता हो। सौधा खड़ा होनेवाला। ऋतौषात्, ऋतोष देखो। ऋतस्पति (सं• पु०) ऋतस्य यज्ञस्य पतिः, ६-तत्। ऋतु (सं० पु.) ऋ-तुः-कित्। अतश्च तुः । उप १।७२६ १ यज्ञपति। २ वायु। १ काल विशेष, मौसम, गरमी, बरसात और जाड़े का ऋतस्पृक (वै० त्रि.) १ सत्यसे प्रेम रखनेवाला, जो समय। हिम, शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा और शरत् सचको चाहता हो। २ जलको स्पर्श करनेवाला, जो छह ऋतु होते हैं। वेदमें पांच और पाश्चात्य शास्त्र में पानीको छूता हो। चार ऋतु कहे हैं। साधारण लोग तीन ही ऋत ऋतात (स क्लो०) सत्य और असत्य, झूठ-सच । मानते हैं। ऋतायु (वै• त्रि०) १ धार्मिक व्यवस्थापर चलनेवाला। पहले सोचना चाहिये-ऋतु पड़ने का कारण २ यज्ञाभिलाषी, जो यन्न करना चाहता हो । ( सायण ) क्या है? आदिवेद ऋक्संहिताके मतसे सूर्य हो। ऋतायो, ऋतायु देखो। . ऋतुके विभागकारी हैं- ऋतावन् (वै० वि०) ऋतमस्यास्ति, ऋत-वनिप् दीर्घश्च । १ यन्नविशिष्ट । २ प्रवत व्यवहारयुक्त, सच्चे चाल- “उत्संहायास्थादव्युत् रदध ररमतिः सविता देव आगात् ।" (ऋक् ॥३८४) चलनवाला। ३ पवित्र, पाक, माननेवाला। ४ खाद्य विरामहीन और ऋतुविभागकारी ज्योतिष्मान् उधार मांगनेवाला। सूर्य जब फिर निकलते, तब मानव शय्या छोड़ ऋताह (वै० वि०) ऋतं यन्नं वर्धयति, ऋत-वृध- चलते हैं। विप दीर्घश्च। १ यन्नवर्धक। २ सत्य एवं प्रेमसे । ऋक्संहिताके मतसे ऋतु पांच हैं। कोई-कोई प्रसव रहनेवाला। | छह भी बताता है।