ऋषी-ऋष्यमूक स्व-प्रए। ऋषिगणका स्तुतिपात्र, जो ऋषियों हारा ऋष्यक (सं.पु.) मृगविशेष। ऋष्य देखो। प्रशंसा किया गया हो। ऋष्यकेतन, ऋषकेतु देखो। ऋषो (सं० स्त्री०) ऋषि-डी। ऋषिपत्नी। ऋष्यकेतु (सं• पु०) ऋष्यः केतौ यस्य, बहुव्री। ऋषोक (सं० पु.) १ ऋषिपुत्र । २ काशण, कांस।। अनिरुद्ध। ऋषीतत ( स० वि०) ऋषियों द्वारा प्रसिद्ध किया ऋष्यगता (सं० स्त्री० ) ऋष्य ण ऋषिसमूहेन गता हुआ, जिसको ऋषियोंने मशहर किया हो। ज्ञाता, ३-तत्। १ शतमूली, सतावर। २ माषपर्णी । ऋषीवत् (स० त्रि.) ऋषिः स्तोटत्वेन अस्यास्ति, ३ अतिबला। ऋषि-मतुप, मस्य वः दीर्घश्च । छन्दसौरः। या ८।२।१५। ऋष्यगन्धा (सं० स्त्री०) ऋष्यस्य मृगस्य गन्ध इव १ ऋषिस्तुत, ऋषियों द्वारा प्रशंसा किया हुआ। गन्धो यस्याः, बहुव्री०। १ ऋषिजाङ्गला। २ अति- २ ऋषिस्तोता, ऋषियोंकी प्रशंसा करनेवाला। बला। ३ क्षीरविदारी। ४ खेतशकरकन्द, सफेद ऋषीवन् (वै० वि०) १ ऋषितुल्य, जो ऋषियोंके शकरकन्द। ५ रक्तशर्करकन्द, लाल शकरकन्द । बराबर हो। २ जिसके साथ ऋषि रहे। ऋष्यगन्धिका, ऋष्यगन्धा देखो। ऋषीवा (स.त्रि.) ऋषीन् वहति, ऋषि-वह, पचा | ऋजिह (स• क्लो०) महाकुष्ठ रोग, बड़ा कोढ़। द्यच दीर्घश्च । ऋषिवाहक, ऋषियोंको ले जानेवाला। यह पैत्तिक, मृगको जिह्वाके न्याय खरस्पश और आभ्य- ऋषु (३० पु.) ऋष-कु। १ अनवरत गति, कभी न्तरिक उमाविशिष्ट होता है। अल्पदिनके मध्य हौ. बन्द न होनेवाली चाल। २ सूर्य रश्मि, आफ़ताबको | ऋष्यजित पककर फट जाता है। फिर इसमें कृमि रोशनी। ३ अङ्गार, अंगारा। पड़ते भी देर नहीं लगती। (सुन्धत ) ऋष्टि (स. स्त्री०) ऋष हिंसायां तिन्। १ खड़ग, ऋष्यजिह्नक, ऋषाजित देखो। तलवार । २ साधारण अस्त्रमात्र, कोई मामूली ऋष्यपुष्यो (सस्त्री०) अतिवला, करियारी। हथियार । ३ दीप्ति, चमक । (त्रि.) ४ गमनागमन- | ऋष्यप्रोक्ता (स'० स्त्री०) १ खेतवाटयालक, सफेद शील, आने-जानवाला। (पु०) ५ धर्मसावर्णिक | बरियारो। २ शतमूली, सतावर । ३ महाशतावरी, मन्वन्तरके एक ऋषि । ६ ग्रहदोष । ७ अशुभ, बुराई। बड़ी सतावर। ४ महाबला, बड़ी बरियारो। ५ कपि- ऋष्टिक (संपु०) देशविशेष, एक मुल्क। यह कच्छु लता, केवांच। ६ पीतवाटयालक, पीली वरि- दाक्षिणात्यमें अवस्थित है। (वानीकीय रामाया) यारी। ७ माषपर्णी। . ऋष्टिमत् (वै० त्रि०) खड़गयुक्त, तलवार या भाला ऋष्यमूक (सं० पु.) एक पर्वत ।- रामायणमें बांधे हुआ। लिखा, कि रावणके सीताहरण करने पर नाना स्थान ऋष्टिविद्युत् ' (दै० त्रि.) १ विद्युत्के न्याय खड्ग घम-फिर रामचन्द्रका एक पर्वतपर जाना हुआ था। चलानेवाला, जो बिजलीकी तरह बरछौ मारता हो। वहीं कबन्ध नामक दानवने उनसे कहा-'पम्या २ अस्त्र द्वारा प्रकाशमान्, जो हथियारोंसे चमकता | नदीके तौर ऋष्यमूक पर्वत पर मुग्रीव रहते हैं। वह हो। (सायण) आपको सौताका संवाद बता सकेंगे।' (अरण्य ७३ वर्ग) ऋष्य (स० पु०) ऋष्-यत् निपातनात् सिद्धम्। | तुलसीदासने भी रामचन्द्रक ऋष्यमूक पर्वतको मृगविशेष, एक हिरन। इसका वर्ण नील और मांस जानेका उल्लेख किया है- मधुर, बलकारक, सिग्ध, उष्ण एवं कफपित्तजनक "आगे चले बहुरि रघुराई । ऋष्यमूक पर्वत नियराई ॥" होता है। (मावप्रकाश) प्रथमतः समझना चाहिये-पम्यानदी कहां है। २ कुरुवंशीय देवातिथिके एक पुत्र । (क्लो०) ३ खेत पम्पा नदीको वर्तमान अवस्थिति ठहरा सकनेपर कुष्ट, सफेद कोढ़। . ऋष्यमूक पर्वतका पता अनायास ही लग जायेगा।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४४९
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