पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४५१

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ऋष्यशृङ्ग-ऋष्यादि

"कृष्य मुकातु हनुमान् गत्वा तं मलयं गिरिम् । यज्ञकार्यादि बिगड़ा और इन्द्र के असन्तुष्ट रहनेसे भाचची तदा वीरौ कपिराजाय राधवी ॥१॥" राज्यपर जल भी न पड़ा। फिर लोमपादने विव्रत (किष्किन्धा ५ सर्ग) हो किसी प्रकार ब्राह्मणों को परितुष्ट कर इस विपदसे इनमान्ने ऋष्यमूकसे मलयगिरिपर पहुंच कपि- बचनेका उपाय पूछा था। उन्होंने ऋष्यशृङ्गको लानकी राज सुग्रीवसे रघुवीरहयका वृतान्त बताया था। बात कही। उसीके अनुसार राजाने इस दुष्कर 1 वर्तमान मन्द्राज प्रदेश के अन्तर्गत त्रिवाशोड़ नामक कार्य पर कितनी हो वेश्यावों को लगा दिया। जल- राज्यमें एक 'पम्बे' नदी पड़ती है। जिस पर्वतसे यह पथसे लाने का परामर्श कर नौकायोगमें तपोवनके नदी निकलती, उसको संज्ञा पश्चिमबाट या अनमलय सप्लीप वह पहुंची और दूर ही नौका खड़ी रख ऋष्य- है। यही नदी रामायणोक्त 'यम्पा' मानी जाती है। शृङ्गके निकट गयी थीं। नानारूप भावभङ्गो देखा. इसोको उत्पत्तिका स्थान ऋष्यमूक है। अाजकल | विचित्र माल्य एवं विविध वस्त्रादि पहना और नाना- अनमलय वा इस्तिगिरि कहते हैं। प्रकार मुस्वादु पेयादि पिला उन्होंने ऋष्यशृङ्गको क्रमशः रामायणमें ऋष्यमूक पर्वतके उद्भिदादिका जो कामोन्मत्त किया, फिर नौकाका पथ लिया। पोके विषय पड़ता, उसका अधिकांश अद्यापि इस अन- विभाण्डकने वहां पहच और ऐसी अवस्था देख मलय गिरिपर मिलता है। वास्तविक ऐसी उर्वरा पुत्त्रको नाना प्रकार सान्त्वना दी थी। किन्तु तपस्यार्थ स्थली दक्षिणापथ पर प्रायः देखने में नहीं आती। उनके पुनर्वार गमन करते हो वेश्यायें आ और हण्टर साहबने इस गिरिक सम्बन्धमें लिखा है- ऋष्यशृङ्गको नौकापर बैठा अतिसत्वर लोमपादके पास "The soil supports a flora of extraordinary उपस्थित हुई। लोमपादने सन्तुष्टचित्तसे उन्हें अन्तः- variety and beauty; while the climate पुरमें रखा था। उनके आते ही समस्त राज्य में equals in salubrity that of any sanitarium, and......any plantation of Southern India." | प्रभूत वर्षण पड़ा। फिर लोमपादने कृतकृतार्थ हो ( Hunter's Imp. Gaz, India, 2nd Ed. Vol. I, p. 269.) | विभाण्ड कके अभिशापसे बचनके लिये मित्र दशरथको अतएव हमारे मतमें अनमलय पर्वत ही ऋष्यमूक शान्ता नाम्नी कन्या ऋष्यशृङ्गको सौंप दी। इधर ठहरता है। विभाण्ड़कने आश्रममें पहुंच और पुनके प्रदर्शनमें ऋष्यशृङ्ग (सं० पु०) ऋष्यस्य मृगस्य शृङ्गमिव शृङ्गमस्य, ध्यानस्थ हो समुदाय देख लिया था। वह क्रोधसे बहुव्री। १ कोई मुनि। रामायण और महाभारतमें प्रज्वलित हो लोसपादके राज्यमें आये। उनके इनका वृत्तान्त इसप्रकार कहा है-विभाण्डक नामक आगमनसे सब लोग भय खां ऋष्यशृङ्गका राज्य बताने एक महातेजा कश्यपवंशीय ऋषि रहे। किसी समय लगे। फिर विभाण्डकने कोपको छोड दिया और अमरा उर्वशीको देखनेसे जलके मध्य उनका रेतः पुत्र तथा पुत्रवधूको आदर प्रदर्शनपूर्वक आशमके गिर गया था। एक मृगौ वह जलमित्र रेतः पीकर प्रति प्रत्यागमन किया था। ऋष्यशृङ्ग पत्नीके साथ गर्भिणी हुई। यह मृगौ भौ शापभ्रष्टा कोई देवकन्या | उसी राज्यमें रहने लगे। थी। यथाकाल मृगौने एक पुत्र प्रसव किया । इन्हीं ऋष्यशृङ्गने दशरथ राजाका पुत्रेष्टियंज्ञ मृगौके गर्भसे उत्पन्न होनेपर, उसके एक शृङ्ग किया, जिसके फलसे रामादि वाचतुष्टयने जन्म निकला था। इससे लोग उसे ऋष्यशृङ्ग कहने लगे। लिया था। यह अतिशय प्रतापशाली एवं यज्ञनिष्ठ पिता भिन्न अपर व्यक्ति कभी देख न पड़नेसे उसका रहे। २ सावर्णिक मन्वन्तरके एक ऋषि।. . मन सिवा ब्रह्मचर्यके अन्य विषय पर चलता न था। ऋष्याङ्क (स०प०) प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध । अनिरुद्ध देखो। __इसी समय दशरथके बन्धु अङ्गेश्वर लोमपादको ऋष्यादि (सं• पु०) ऋषिरादिरस्य, बहुव्री० । वैदिक किसी अपराध वश ब्राह्मणों ने छोड़ रखा था। उनका । मन्त्रके अवश्य ज्ञातव्य ऋषि प्रभृति पांच विषय । पांचो