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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४७२

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एकहरा-एकाक्षरकोष ४०१ एक पहलवान् दूसरेकी गर्दन हायसे लपेट दूसरे ! एकांश (सं. पु.) एक एव अंशः, कर्मधा। एक हाथसे तान लेता और टांग लगा चित फेंक देता है। भाग, एक हिस्सा। एकहरा (हिं.वि.) एकमात्र स्तरयुक्त, एकपरता, एकाकार (सं० त्रि.) एकस्तुत्य पाकारी यस्य, जो दोहरा न हो। बहुव्री। १समान आकारविशिष्ट, हमसूरत, वही एकहरी (हिं. स्त्री०) कुश्तीका एक पेच। इसमें शक्ल रखनेवाला। २ मिश्चित, मिला हुचा। एक पहलवान् दूसरेको हाथ पकड़ अपनी दक्षिण , एकाकी (सं० वि०) एक-पाकिनच । एकादाकिनिज्ञासहावे । ओर झटकारता, फिर दोनों हाथोंसे रानको खींच या पाश५। असहाय, तनहा, अकेला। पटक मारता है। | एकाक्ष (सं० पु०) एकमति यस्य, एक-अक्षि-पच । एकहस्ती (सं• स्त्री०) प्रश्वको शोभन वल्गाका बहुव्रीही सध्याच चोः स्वाङ्गात् पच । पा ५।४।११३ । १ काक, एक भेद, घोड़े को एक लगाम । । कौवा। वनगमनके बाद चित्रकूट पर्वतपर रहते समय एकहाज (सं• पु०) नृत्यविशेष, किसी किस्मका नाच। एकदा राम सीताके कोड़में लेटे थे। उसो समय एकहायन (सं० पु.) एको हायनो वयोमानं यस्य, किसी कामुक काकने सीताके कुचदेश में तोय नख बहुव्री० । एक वत्सरका वत्स, एक सालका बछड़ा। मार दिया। रामने दुष्ट काकपर ऐते पाचरणसे (को०) २ एक वत्सरका समय, एक सालका परसा। क्रुद्ध हो ब्रह्मास्त्र फेंका था। काकने प्राणके भयसे (त्रि०) एक वत्सरवाला, एक-साला। नाना स्थानोंपर अनेक देवतावोंसे प्राश्रय मांगा। एकहायनी (स. स्त्री०) एकहायन-ङीष् । दामहाय किन्तु अपने प्राणनाशको पाशङ्कासे कोई उसे आश्रय नान्नाच। पा ४।१।२७। १ एकवर्षीय गाभी, एक सालको दे न सका। फिर काकने विधाताका श्राश्य ढंढा बछिया। २ उद्भिविशेष, एक पेड़। जो पेड़ एक था। विधाताने स्वयं प्राश्रय देने में असमर्थ हो उसे ही वर्षमें उपज और फल-फल झड़ या मर जाता, रामके शरणमें हो जानेको सिखाया। उसो उपदेशके वह एकहायनी कहाता है। अनुसार काक प्राणके भयसे विपन्न अवस्थामें रामके एकहदय (सं० वि०) एकमभिन्न हृदयं यस्य, निकट जा पड़ा। सीताने दुवस्थाके दर्शनमें घबरा बहुव्रौ.। १ अभिन्नदय, एकदिल। २ एकाग्रचित्त, रामसे उसका जीवन बचानको अनुरोध किया। दिलको एक ही जगहपर लगाये हुआ। रामने भी करुणासे पाद्र हो एक चक्षु मात्र वाण- एका (सं. स्त्रो०) एक-टाप् । १ दुर्गा। भोग्य बना उसे छोड़ दिया। २ शिव। ३ एक दानव । स्फटिक विविध वर्ण को प्रभा प्राप्त होनेसे विविध (त्रि.) ४ एकनेत्रविशिष्ट, काना। ५ सुन्दर नेत्रविशिष्ट, समझ पड़ता, वैसे ही एकमात्र देवीका रूप भी। उमदा आंख रखनेवाला। ६ एकमात्र प्रक्षाग्रविशिष्ट, गुणके वश अनेक प्रकार झलकता है। (देवोपुराण ४५ १०)| जो एक ही धुरा चा गोलडंडा रखता हो। २ अद्वितीया. अनोखी। ३ एकाकिनी. अकेली।। एकाचपिङ्गल (स. त्रि०) कुवेर। (हिं० पु.) ४ ऐक्य, मेल। एकाक्षर (सलो .) एकमहितीयमचरम्, कर्मधा । एकाई (हिं० स्त्री० ) एकत्व, वहदत, एकको जगह १ एक स्वरवर्ण । २ ओंकार। (त्रि.) एकमक्षर या हालत। २ नियमित मान विशेष, कोई नाप- यत्र, बहुवी०। ३ एक अचरविशिष्ट, जो एक ही जोख-जैसे रुपया, पैसा, सेर, छटॉक, गज़, फुट हर्फ रखता हो। इत्यादि। गणनाके प्रथम स्थान या प्रकको भी एकाई एकाक्षरकोष (सं.पु.) अभिधानविशेष, कोषका कहते हैं। एक ग्रन्थ। इसके रचयिता पुरुषोत्तम देव थे। एकाएक (हिं.क्रि.वि.) अकस्मात, इत्तिफाकसे। अकारादि क्रमसे एक-एक अक्षरको पकड़ यह अभि- एकाएकी, एकाएक देखो। धान लिखा गया है।