8७२ एकाक्षरी-एकादश एकाचरी (म. वि.) एक अक्षरवाला, जो एक एकात्री (सं. स्त्रो०) वाणविशेष, एक तौर। इससे हो हर्फ रखता हो। एकही वीर मरता है। महाभारतमें लिखा-इन्द्रने एकाक्षरीभाव (सं० पु०) एकमात्र अक्षरका उत् कर्णको अपने कवचके साथ अर्जुनके मारनेकी यह ' पादन, संक्षेपब, हजफ, समेट। वाम सौंपा था। किन्तु भौषण समरमें कर्णने इसे एकाग्र (सं० वि०) एक अग्र पुरोगत नेयमस्व, | घटोत्कच पर ही छोड़ दिया। बहुव्री। १ अनन्यचित्त, एक ही बातपर लगा एकाङ्ग (सं० पु.) एक सुन्दरत्वेन मुख्य अङ्ग- हुआ। २ अमाकुल, जो घबराया न हो। ३ प्रसिद्ध, मस्य, बहुव्री। १ बुधग्रह। (लो.)२ चन्दन,. मशहर। ३ एकमात्र विन्दुभुक्खा, जो एक ही नोक सदल। ३ एक अङ्ग, अकेला अज़ो। ४ मस्तक,. रखता हो। (पु.) ४ विभक्त प्रतिवतिके विस्त त दमाग। बाहुका सम्पूर्स भाग। एकाङ्गवात (सं.पु.)१ पक्षवध रोग, आधे जिस्म में एकाग्रचित्त (स'• त्रि०) एकाग्रं एकविषयासक्त | होनेवाला लकवा। २ अश्वका एक वातव्याधि रोग। चित्त यस्य, बहुव्री० । एकमनाः, एक ही बातपर दिल | इसमें एक कर्ण बढ़ता, अध शरीर शुष्क पड़ता और लगाये हुआ। अश्व शून रहता है। (जयदत्त) एकाग्रतः (सं० अव्य.) अविभक्त चित्तसे, पूरे तौर- | एकाङ्गिका (स. स्त्री०) चन्दनसे बननेवाली एक पर दिल लगाकर। सामग्री। एकाग्रता (स. स्त्री.) एकाग्रस्य भावः, एकाग्र- एकाङ्गी (स• स्त्री०) १ मुरामांसी, एक खु.मबू- तल-टाप । १ एक विषय में प्रासलि, एक ही बातपर दार चीज.। यह कटु एवं कषाय लगती और भ्रम, झुकाव। २ त्रिगुणात्मक चित्तमें सत्वगुणका उद्रेक मूळ, तृष्णा, विष तथा दाहको दूर करती है। और रजः एवं तमोगुणका विक्षेप। तन्वादिका (राजनिघए) (वि०) २ एक अङ्ग-सम्बन्धीय, एक- अभाव पड़नेपर विषयान्तरके अवलम्बनरूप संसग से | तरफ़ा। शून्य चित्तका धर्मविशेष एकाग्रता कहाता है। एकाण्ड (स.पु.) एकमण्डमस्य, बहुव्री.। एक एकाग्रत्व (सं० लो०) एकाप्र-व। तस्य भावस्ततलो।। वृष्णविशिष्ट प्रख, एक फोतेका घोड़ा। जिस घोड़ेका पा ५।१।११एकाग्रता, दिलदिही। एक मुष्क बढ़ जाता, वह एकाण्ड कहाता है। • एकाग्रदृष्टि (संत्रि .) एकस्मिवेव अग्रे पुरोगते एकातपत्र (स. त्रि.) एकच्छत्र, चक्रवर्ती।' दृष्टिरस्य, बहुव्री० । १ एकमात्र विषयपर दृष्टि | एकात्मता (सं० स्त्री०) एकामाका भाव, दुनियामें डालनेवाला, जो एक ही ओर नजर लड़ाये हो। एक रूह रहनेका मकूला। (स्त्री० ) कर्मधा०। २ एक विषयमें दृष्टि, एक ही एकात्मवादी (सं० त्रि०) एक एव प्रात्मेति वक्तुं चीजपर पड़नेवाली नजर। शोलमस्य, बहुव्री.। वेदान्तके मतका अवलम्बी। एकाग्रमनाः (सं• त्रि०) एकान एकविषयासक्त वेदान्तमें ब्रह्म अद्वितीय माना गया है। मनो यस्य, बहुव्री०। १ एकाग्रचित्त, दिलको एक एकामा (म. पु.) एकोऽभिन्न प्रात्मा, कर्मधा० । हो ओर लगाये हुआ। ( लौ० ) २. स्थिरचित्त, १ अद्वितीय भामा, एक रूह। (वि.) २ अभिन्न- बंधा हुआ ध्यान। हृदय, एकदिल। ३ एकरूप, हमथल। ४ सहाय- एकाग्रा ( से त्रि.) एक प्रग्रं यस्य. बहवी.।। शून्य, तनहा। एकाग्र, एक ही ओर लमा हुआ। इसका संस्कृत एकादश ( त्रि.) एकेन अधिका दश, मध्यपद पर्याय एकतान, अनन्यवृत्ति, एकायन, एकसर्ग, एकाग्र लो। १ दशसे एक संख्या अधिक, ग्यारह, ११ ॥ और एकायनमत है। २ एकादशको पूर्ण करनेवाला, ग्यारहवां ।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४७३
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