पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४७५

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8७४ एकादशी सभी समान अधिकार रखते हैं। नित्य उपवासमें ! कारसे तीन अञ्जलि पुष्यदान एवं मन्त्रपूत जलपान रवि शुक्रादिका दोष मानना आवश्यक नहीं। · अष्टम | कर उपवास रखना चाहिये। मन्त्र- वर्षसे अशीति वत्सर पर्यन्त मानव इस उपवासका ___ “एकादश्यां निराहारो स्थित्वाऽमपरेऽहनि । अधिकारी है। विधवा समुदय एकादशी पर नित्य भोच्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥" अधिकार रखती हैं। उनके लिये मलमासादि कोई पुण्डरीकाक्ष अच्यत! मैं एकादशीको निराहार दोष वाधा नहीं देता। रह परदिन भोजन करूंगा। तुम मेरे पाश्रय बनो। एकादशौक उपवास का विधि-पारणके दिन बादशी मिलने- दोनों पक्षको एकादशीको निराहार रह, समा- से पूर्णा छोड़ खण्डा एकादशीमें गृहीको उपवास हितचित्त बन, सम्यक विधानके अनुसार स्नान कर, करना चाहिये। किन्तु वसा न होनेसे गृही पूर्णाके मानके अन्तमें धौत वस्त्र पहन, जितेन्द्रियता पकड़ एवं दूसरे और विधवा आनेवाले दिन उपवास और पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, बहुविध उपहार, जल, करें। जो एकादशी उदयके दो दण्ड पहले लगतो, होम, प्रदक्षिण, स्तोत्र, मनोरम नृत्यगोत एवं वाद्यादि उसीकी पूर्णा संज्ञा पड़ती है। पूर्व दिन दशमी और सहकारसे यथाविधि विष्णुको पूज रात्रिके समय पर दिन हादशी युक्त रहनेसे परदिनको ही उपवास जागरण रखना चाहिये। स्कन्दपुराणमें भी रात्रिके कर्तव्य है। अरुणोदय कालपर दशमी होनेसे विद्या जागरणको व्यवस्था इसी प्रकार लिखी है। विशेषतः एकादशी कहाती है। विद्दा एकादशीको उपवास रात्रिके प्रत्येक प्रहर हरिको प्रारति करनेका करना न चाहिये। ऐसी अवस्था में हादशीको उपवास विधान है। रख त्रयोदशीको पारण करना उचित है। पारणके दिन कर्तव्य-सम्बन्ध में कात्यायनके मतानु- .' इरिभक्तिविलासके मतसे उपवासको व्यवस्था-वैष्णवको उप- सार प्रात:काल स्नान और श्रीहरिको पूजा समापन वासके पूर्वदिन प्रातःसान कर धौतवस्त्र परिधान प्रभृति कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिये। सुवेश करना चाहिये। उसके बाद- "अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव । प्रसौद सुमुखी नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥" "दशमौदिनमारभ्य करिष्येऽह व्रतं तव। . विदिन' देवदेवेश निर्विघ्नं कुरु केशव ॥" . . हे नाथ केशव ! इस व्रतके द्वारा प्रसन्न हो तुम अज्ञानतिमिरान्धको ज्ञानदृष्टि दो। . है देवदेवेश केशव! मैं दशमोसे तुम्हारा व्रत .. यही मन्त्र पढ़ उपवास समर्पण करते हैं। उसके करूंगा। इन तीन दिनों मुझे निविघ्न रखो। पीछे हरिको स्मरण कर व्रतको सिद्धि के लिये पारण उक्त सन्त्रको पढ़ महोत्सवके सहकारसे सङ्कल्प | कर्तव्य है। जो व्यक्ति पारणके दिन हादशी अतिक्रम करना चाहिये। हरिदिनको क्षारलवण छोड़ एकवार कर त्रयोदशीको खाता, वह शतजन्म पर्यन्त नरक- मात्र हविष्याब खाते, मृत्तिकाशयनपर सो जाते और वास पाता है। हादशो अल्पक्षण स्थायी रहनेसे स्त्रीसङ्गसे दूर रह पुरुषोत्तमका स्मरण करते अवस्थान अरुणोदयको और अत्यल्प होनेसे निशीथ कालके लगाते हैं। बाद पारण करना चाहिये। स्कन्दपुराणमें यह सकल ___ स्कन्दपुराणमें दशमीको कास्यपान, मांस, मसूर, द्रव्य द्वादशीको निषिद्ध कहे हैं-मध, मांस, सुरा, तेल, मधु, मिथ्यावाक्य, दो बार भोजन, परिश्रम और व्यायाम, क्रोध, मैथन, पराब, कांस्यपान, ताम्बल, न न किया जानेवाला सकल कार्य निषिद्ध लोभ, निर्मात्यलडन, मिथ्यावाक्य, प्रवास, दिवास्वप्न, कहा है। अनन, शिलापिष्ट द्रव्य, मसूर, द्यूतकोड़ा, हिंसा, _देवलोक्त उपवासके दिनका कर्तव्य-उत्तरास्य होने पर जल चना, कोरदूषक और औषध। . पूर्ण उडम्बरपात्र ग्रहणपूर्वक निरोक्त मन्त्रपाठ सह- एकादशीको उपवासमें असमर्थ होनेपर पुत्र अथवा