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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४९४

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एलिचपुर-पिरहा ४५ प्राधान्य देख पड़ता है। गेहं बहुत अच्छा होता है।। शासक बने थे। किन्तु उन्होंने अपना काम प्रति- रूईको उपज अधिक है। मेलघाटमें चाय भी बोई | निधिके द्वारा किया। सलाबत खान्ने शासकका पद जाती है। प्रधान नगर एलिचपुर, अंजनगांव, परत पानेपर इस नगरको बड़ी उबति को थी। उन्होंने वाडा और करजगांव है। सितम्बर और अकोबर राजप्रासादको बढ़ाया, सर्वसाधारणके लिये एक बाग मास रोगका धर होता है। ममाया और प्राचीन जलमार्गको ठोक कराया। वह २ बरार प्रान्तके एलिचपुर जिलेको तहसील। बड़े वीर रहे। निजाम और टीपू सुलतानके मध्य भूमिका परिमाण ४६८ वर्ग मोल है। ३ बरार युद्ध प्रारम्भ होते ही उन्हें सेनामें उपस्थित होनेका प्रान्तके एलिचपुर जिलेका प्रधान नगर। यह अक्षा. आदेश मिला था। सलाबत खान्ने इस युद्ध में बड़ा २१.१५ ३०“उ० और द्राधि० ७७.२९ ३० पू०पर | नाम पाया। सलाबत खान का उत्तराधिकार उनके अवस्थित है। किसी समय यह अतिसमृद्द नगर लड़के नामदार खान्के हाथ लगा था। पोछे नामदार रहा। ४०००० मकान् बने थे। निज़ामके दिलोसे खान्के भतीजे इब्राहीम खान् १८४६ ई. तक शासक अपना सम्बन्ध तोड़ स्वतन्त्र शासक बनने से पहले रहे। १८५३ ई को बरार-प्रान्तके साथ एलिचपुर एलिचपुर स्थानीय सरकारको राजधानी रहा। फिर जिला भी अंगरेजी राज्यमें मिलाया गया। सूबेदारके हाथ पड़नेसे अवनति होने लगी। नगर में एलिफण्टा-बम्बई बन्दरका एक होप। यह अचा.. कितने ही सुन्दर भवन हैं। बीचन नदीके किनारे १८ ५७ उ० और द्राधि० ७३° पू०पर बम्बई नमरसे डल्ला रहमानको दरगाह है। प्रायः ४०० वर्ष हुये ३ कोस दूर अवस्थित है। जिला थाना और तहसील किसी बामनी राजाने उसे बनवाया था। सलाबत पानवेल है। परिधि चार साढ़े चार मोल पड़ता है। खान और इस्माइल खान्का बनवाया बड़ा राजप्रासाद दो पर्वतश्रेणीके मध्य सङ्कलोण उपत्यका पा गई है। धीरे-धोर गिर रहा है। कुछ नवाबोंको कबरें बहुत भूमिका परिमाण ज्वार-भाटेके हिसाबसे चारसे छह उम्दा हैं। सुलतानगढ़ी नामक दुर्ग और ममदेल मील तक लगता है। पोतु गोजोंने पहले जहाजसे शाह नामक कूप भी देखने योग्य है। नगरसे २ मौल उतरते समय पत्थरका एक हाथी देख 'एलिफण्टा नाम बीचन नदीपर परतवाडा छावनी है। रखा था। हाथी १३ फौट २ इञ्च लम्बा और ७ फोट ४ एलिचपुर इतिहासप्रसिद्ध नगर है। सुनने में इच्च ऊंचा रहा। किन्तु १८१४ ई०को शिर और कण्ड आया-किसी जैन राजाने बडगांवके निकटस्थ खान- टूटा था। १८६४ ई०को वह उठाकर बम्बईके विको- जाम नगरसे पा १०५८ ई०को एलिचपुर बसाया था। रिया गार्डनमें रखा गया। दोनों पर्वतके सङ्गमपर दाक्षिणात्यको राजधानी रहते समय यहां मुसल- प्रधान गुहासे दक्षिणपूर्व थोड़ी दूर एक घोड़े को भी मानों की बड़ी धम पड़ी। दिल्लीसे अलग होने पर मूर्ति थी। दूरसे देखने पर कोई कह न सका, कि निज़ामने एवज़खान्को पहल शासक नियुक्त किया । वह सजीव न रहा। उक्त मूर्ति अब देखने में नहौं था। उन्होंने १३२४से १७२८ तक राजत्व चलाया, पाती। नहों मालूम-उसे कौन उठा ले गया। पर्वत फिर शुजायत खान्का समय (१७२९-१७४० ई.) झाडीसे ढंके और प्राम, अम्बिका तथा करके वृच पाया। उन्हनि मराठे राघवजी भासलेसे बैर बढ़ाया लगे हैं। किनारा बाल और कीचड्से भरा है। और भूमांवके समरमें अपना प्राण गंवाया था। राघव सम्भवतः श्यसे १०म शताब्दके मध्य यह होप एक जौने एलिचपुरका खजाना लूट लिया। १७४१से तीर्थस्थान रहा। गुहा देखने योग्य हैं। प्राचीन १७५२ ई. तक शरीफखान्ने शासन चलाया था। नगरके ध्वंसावशेषमें कितनी ही टूटी-फूटी चीजें हाथ किन्तु अपनी बराबरी करते देख निजामने. उनका पद आई हैं। अनेक दर्शक गुहा देखने आया कर होना। पोले निजामके लड़के. अखोजाहः बहादुर हैं। १८के समय यहां ३४०० गुहा थों। प्रधान ___Vol. III. 124