एसिया ४६१ एकत्र कर भूगोल प्रचार किया। उनमें अनेकोंके सौमा-एसियासे उत्तर उत्तर-महासागर, पूर्व पुस्तक लोप हो गये हैं। केवल ट्रेबो, लिनि एवं प्रशान्त महासागर, दक्षिण भारत-महासागर और टलमि प्रभृति लोगोंके ग्रन्थ हमें देखने को मिलते हैं। पश्चिम युरोप, वष्यसागर, पार्किपेलेगो, भूमध्यसागर टलेमिसे पहले पाश्चात्य प्राचीन भौगोलशास्त्रन्न भारत-। एवं लोहितसागर है। उत्तर-पूर्वके प्रान्त-भागपर महासागरके पूर्वाशस्थित होपसमूह एवं पाश्चात्य बैरिङ्ग प्रणाली द्वारा कामस्कटका और उत्तर-अमेरिका महासागरके निकटवर्ती किसी दोपका विषय जानते खतन्त्र हुआ है। इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम सुइज न थे। टलेमिक ग्रन्थमें उनसे कई होप उक्त हैं। नहर द्वारा एसिया और अफरीकाम प्रभेद पड़ा है। उसके परवर्ती कालपर मुसलमान एसियाका भू भारत-महासागरीय द्वीप एकत्र कर लेनेसे समस्त वृत्तान्त संग्रह करनेको यत्नवान् हुये। जब मुहम्मद और एसिया खण्ड प्रायः चतुष्कोण देख पड़ता है। भूमिका उनके शिष्यगणक प्रभावसे एसियावाले अनेक स्थानोंके परिमाण कोई १६८१८००० वर्गमौल और लोकसंख्या लोगोंने इसलाम धर्म पकड़ा, तब नतन धर्मसे दीक्षित ३०२००००००० है। व्यक्ति मानने मक्काके दर्शनको अति पुण्यकर्म समझा यह महादेश अपर सकल महाद्वीपोंसे आयतनमें था। इसीसे कितने ही लोग दूर देशान्तरसे पथ पर्यटन जैसे वृहत, वैसे ही जलवायु, स्वास्थ्य और उर्वरता कर मक्के जाते रहे। गमनकालको अनेक नतन स्थान प्रभृतिमें भी श्रेष्ठ है। एसियाका प्राकृतिक दृश्य अन्यसे उनको दृष्टिमें पड़ते थे। विचक्षण व्यक्ति उन स्थानोंका भित्र लगता है। इसकी आकृति अफरोका, युरोप विवरण संग्रह कर लेते। आजकल उनके अन्य भी और अमेरिकासे नहीं मिलती। लुप्तप्राय हैं। फिर जो हैं भी,' उनका संग्रह करना. मध्यभागको समतन्नभूमि समुद्रतलसे अधिक टुष्कर देखते हैं। इन सकल ग्रन्थोंमें इब हैकल, उच्च है। फिर समतल भूमिको चारो ओर निख एरिसी, इन बतूता प्रभृति कई लोगोंके ग्रन्थ ही हमें । भूमि और वोच-बीच पर्वतमाला विद्यमान है। पढ़नेको मिलते हैं। विशेषतः इब बतूताके भ्रमण पर्वत पति उच्च एवं वृहत् होते भी समतलभूमिके वृत्तान्तमें रूस राज्यके यराल पर्वतसे दक्षिणको सिंहल प्रायतनानुसार छोटे ही समझ पड़ते हैं। एसियाको द्वीप पर्यन्त अनेक स्थानोंका भूवृत्तान्त लिखा है। अन्तर्निविष्ट समतलभूमि कहौं निम्न और कहीं उच्च भिनिस-देशीय प्रसिद्ध भ्रमणकारी मार्कोपोलो ई० । पूर्वभागमें तिब्बतको उर्वरा भूमि और गोबोकी १३श शताब्दको मुगल-सम्राट कुबलाई खानको मरुभूमि ४...से १०००० फीट तक ऊंची पड़ती है। राजसभामें बहुत दिन रहे। वह उक्त सम्राट् हारा पश्चिमांशमें ईरानको उर्वरा भूमि ४००० फीटसे अधिक दूतरूपसे एसियाके नाना स्थानों को भेजे गये थे। उच्च नहीं। उक्त समतलभूमिसे उत्तर-पश्चिम टरस, उन्होंने तातार, मङ्गोलिया, चीन, जापान, तिब्बत, काकसम एवं एलवजे पर्वत और कास्पीय-सागरको पेगू, बङ्गाल, महाचीन, सण्डाहोपपुञ्ज, सिंहल, मलय- ढाल भूमि है। उत्तर साइबेरियाका पलटाई पर्वत वर, अर्मज, अदन प्रभृति नाना स्थानोंका विवरण और उत्तर-पश्चिम दौरिया नामक पार्वत्य प्रदेश है। लिखा है। वर्तमान युरोपीय भौगोलिक उन्होंको पूर्व चौनराज्य-मध्यवर्ती तुषार गिरिमाला तथा समग्र एसिया महाद्वीपका आविष्कारकर्ता बताया दक्षिण हिमालय खड़ा है। पश्चिम बलचिस्थानको करते हैं। उसके पीछे पोतुगीज, दिनेमार, अोलन्दाज, | गिरिमाला और पारस्योपसागरका निकटस्थ जएस फान्सीसी और अंगरेज क्रमान्वयसे एसियामें पाने पर्वत है। जएस पर्वत क्रमशः उत्तर-पश्चिम मुख लगे। उन्होंने नाना स्थान अधिकार किये, नाना जा टरस और आमेनस गिरिशृङ्गसे मिला है। इसी स्थानों में उपनिवेश बसाये और अनेक स्थानोंके भू स्थानसे ताइयोस और युफ्रेतिस नदी निकली है। वृत्तान्त लिखे।.... ............ समतखभूमिसे दक्षिणव हिमालय गिरि पृथिवीके Vol. III 126
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