पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५१

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10 इन्द्रलक-इन्द्रधनुस् न्द्रतूलक, इन्द्रतूल देखो। आये, किन्तु उसके चिन्ह भी कहीं न पाये। समयके न्द्रतोया (स. स्त्री०) इन्द्रं ऐश्वर्यान्वित तोयं यस्याः । फेरसे समस्त ध्वस हो गया था। इन्द्रय न अपने वा इन्द्रेण पूरितं तोयं यस्याः, बहुव्री०। गन्धमादन राज्यको पहचान भी न सके। जिसीको देखते, पर्वतके निकट बहनेवाली नदी। उसोसे पूछते थे-इस राज्यका नाम क्या है। अव- न्द्रित्व (सली.) १ इन्द्रका बल और वैभव, इन्द्रको शेषमें एक पेचक और कूमने इनकी पूर्वकथा बतायो ताकत और हैसियत । २ राजत्व, बादशाहो। थो। इन्द्रद्यम फिर राजा इये और कौमाद्य राजाको इन्द्रत्वोत (वै. त्रि.) हे इन्द्र ! तेरे द्वारा रक्षित। कन्या मालावतोके साथ व्याहे गये। उसके बाद इन्होंने इन्द्रदत्तः (सं० पु०) एकजन ग्रन्थकार। इनको प्रस्तरमय जगन्नाथका मन्दिर बनवाया था। किसी उपाधि 'उपाध्याय' थी। इन्द्रदत्तने 'सिद्धान्तकौमुदी दिन एक दूतने आकर कहा, समुद्रके तौरपर एक काष्ठ गूढ़ फक्किका-प्रकाश' नामक ग्रन्थ बनाया था। तैर रहा है। इन्द्रद्यनने उससे पहले ब्रह्माके मुख सुनसे इन्द्रदमन (स'. पु.) १ वाणासुरका पुत्र । ( हरिवंश रक्खा था-भगवान् कृष्ण निम्ब वृक्षपर प्राण छोड़ेंगे ३१०) ३ पवैविशेष। जलप्लावनके समय कुण्ड, | और बहकर समुद्रतीर पहुंचेंगे। इसलिये दूतको बात तड़ाग, वट वा पिप्पलवृक्ष पर्यन्त जल बढ़ कर पहुंचने कानमें पड़ते ही वे महासमारोहके साथ उस काष्ठको से यह पर्व पड़ता है। ७ मेघनाद, इन्द्रजित्। समुद्रसे जाकर उठा लाये। विश्वकर्माने आकर उसो इन्द्रदार (स० पु.) १ देवदारु।२ तेल-देवदारु । काष्ठसे जगन्नाथको मति बनायौ थी। जगन्नाथ देखो। वृक्ष। इन्द्रद्युम्नने जगन्नाथ देवसे अपनी कन्या सत्यवतीका इन्द्रदेवी (स० स्त्री०) काश्मीरराज मेघवाहनको | विवाह कर दिया। २ अन्य एक गङ्गवंशीय नृपति । पत्नी। इन्होंने इन्द्रदेवीभवन नामक विहार बन- | ११८८ ई को इन्होंने जगन्नाथ देवके मन्दिरका पुन: वाया था। (राजतरङ्गिणी) संस्कार कराया था। ३ एक असुरका राजा। वष्णने इन्द्रद्युति (सं० क्लो०) चन्दन, सन्दल । इन्हें मार डाला था। (महाभारत वन० १२ १०) ४ ऋषि- इन्द्रद्य न (सं.क्लो०)१ इद विशेष, एक झोल। (१०) | विशेष । शतपथब्राह्मणमें इन्हें भालवेय कहा है। ५ २ एक राजा। स्कन्दपुराणके उत्कलखण्डमें लिखा है, राजर्षि विशेष। ( महाभारत वन० १९८ १०) ६ मगधके कि मालव देशमें इन्द्रद्यम नामक एक राजा था। पालवंशीय शेष राजा। उन्होंने ही उत्कलस्थ पुरुषोत्तम देवका मन्दिर बनवाया इन्द्रट्ठ (सं० प्र०) इन्द्रस्य द्रुः, ६-तत्। १ अर्जनवृक्ष । था। उसमें विश्वकर्मा स्वयं आ दारमयी मूर्ति निर्माण २ कुटजवृक्ष । ३ देवदारु वृक्ष। कर गये थे। ( कपिलहिता और पुरुषोत्तममाहात्मा )। मुकुन्द इन्द्रद्रुम (सं० पु०) इन्द्रस्य द्रुमः, ६-त रामवत जगनाथमङ्गलमें लिखा है, कि इन्द्रय न एक | वृक्ष । मन्दिर बनवा ब्रह्माके निकट मूर्तिस्थापनके लिये उप- इन्द्रदीप (सं० पु०-क्लो०) पौराणिक मतसे भारतके देश लेने पहुंचा था। ब्रह्मलोक पहुंचने और अनेक नौ विभागों में से एक विभाग। वर्तमान अष्ट्रेलिया । स्तव-स्तुति सुनानेपर इन्द्रद्य नसे ब्रह्माने सन्तुष्ट हो | इन्द्रधनुस् (स० लो०) इन्द्रे तत्वामिक मेघे धनुः एक मुइते ठहरने तथा सन्धयावन्दनके बाद वर देने को इव, ७-तत् । इन्द्रायुध, कौस-कुज़ा। वर्षाकालके उदय कहा। ब्रह्माके एक मुहर्तमें मनुष्य के साठ हजार वर्ष | वा अस्त होने के समय सूर्यको विपरीत दिशामें यह प्रायः वीतते हैं। किन्तु वहां यह कुछ समझ न सके थे। देख पड़ता है। वृष्टिजल-कणोंको आणविक शक्तिके जब ब्रह्मा सन्धया करके प्राये, तब इन्द्रद्य नसे कहने प्रभावसे नाना वर्ण बन उक्त नैसर्गिक काण्ड उतपत्र लग-अपने राज्य एकबार जाकर वापस आओ तब | होता है। इसी प्रकार चन्द्रको आभासे कभी-कभी राम- इम पापको मूर्ति देंगे। ये अपने राज्य वापस | धनुः निकलता है, किन्तु वह बहुत कम देख पड़ता है।