पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्द्रध्वज-इन्द्रपर्णी इन्द्रध्वज (सं० पु०) इन्द्रार्थो ध्वजः, शाक-तत् ६-तत् | धारा, कोयो शिवनीलकण्ठ वा नीलकण्ठ परोके गले, वा । भाद्र शुक्लाहादशोके दिन इन्द्रतुष्टि के निमित्त ध्वज कोयी उड़दके फल, कोयी गिरिकर्णिका, कोयो दान। इस दिन प्रजाके मङ्गलके लिये राजा ध्वज बना । निर्मल समुद्र के जल, कोयो मयर तथा कोकिलके कण्ठ हारपर गाड़ते हैं और इष्टदेवको पूजते हैं। इससे और नीले रङ्गके बुलबुल-जैसा होता है। प्रचुर वृष्टि और सुचारुरूप शस्यादिको उत्पत्ति होती ____ दोष और गुण-मृत्तिका, पाषाण, शिला, वन, ककड़, है। वृहत्संहिताके मतमें असुरों द्वारा अधिक पीड़ित अधिका, पटलाख्य छायादि और वर्णदोषसे मणि होनेसे देवगणने ब्रह्मासे कहा था,-असुरोंसे हम लड़ बिगड़ जाता है। व्यवहार्य पद्मरागका गुण इन्द्रनील में नहीं सकते ; आपके शरण आये हैं, कोई प्रतिविधान भी मिलता है। पद्मराग देखो। कर दीजिये। ब्रह्माने उत्तर दिया,-तुम क्षीरोद परीक्षा-पद्मरागके समस्त करण और उपकरण सागर जा नारायण का स्तव करो; वह जो केतु तुम्हें द्वारा इन्द्रनील परीक्षित होता है। पयःस्थ पद्म- देंगे, उसे देखते ही असुर अपनी राह लेंगे। इन्द्र रागको अपेक्षा यह अधिक उत्ताप सह सकता है। और अन्यान्य देवगणने वही किया । विष्णुने स्तवसे | होती रहती भो अग्निसे इसकी परीक्षा करना न तुष्ट हो उक्त केतु (ध्वज) देवताओंको दिया और | चाहिये। क्योंकि अग्निका परिमाण समझ न सकने इन्द्रने उससे दुर्दान्त अरिकुलको मार अपना बदला | पर दाहदोषसे बिगड़ इन्द्रनील धारणकारी, परीक्षक चका लिया। चेदिराजके वेणुमय यष्टि गाड़ यथा- । और अनुमति देनेवाले सकलके अनिष्टका कारण विधि पूजा करनेसे इन्द्र ने अतिशय तुष्ट हो कहा बन जाता है। था, जो राजा इसी प्रकार इन्द्रध्वज पूजेगा, उसके जात्य निर्णय-काच, उपल, करवी, स्फटिक और राज्य में प्रजा एवं शस्यादिका आधिक्य होगा और वैदर्य देखने में बिलकुल इन्द्रनील-जैसा ही होता है। कोई रोग न रहेगा। किन्तु अल्प ताम्रवर्ण धारण करनेवाला इन्द्रनील रखने इन्द्रनक्षत्र (सं० लो०) इन्द्रखामिक नक्षत्रम्, शाक योग्य है। फिर जिसमें रामधनुःका रङ्ग झलकता हो, तत् । १ जाष्ठानक्षत्र । इन्द्रनामक नक्षत्रम् । २ फल्गुनी वह दुर्लभ और महामुल्य निकलता है। अधिक रङ्ग- नक्षत्र। वाले और डाल देनेसे समस्त दुग्धको नीलवर्ण बनाने- इन्द्रनील (सं० पु०) इन्द्रइव नौल: श्यामलः। मर वालेको महानील कहते हैं। कत मणि, नीलम। इन्द्रनील डाल देनेसे दूधका रङ्ग मूल्य-महागुण पद्मराग और इन्द्रनीलका मूल्य काला पड़ जाता है। संस्कृत भाषामें सौरिरत्न, एक एकसा होता है। (गरुड़पुराण) नोलाश्म, नौलोत्पल, णग्राही, महानील प्रभृति | इन्द्रनीलक (सं० पु.) हरिन्मणि, पन्ना। अनेक इसके नाम हैं। इन्द्रनौल शनिग्रहको प्रिय है। इन्द्रनेत्र (सं० पु०) इन्द्रस्य नेत्रम्, ६-तत् । इन्द्रका इससे शनिदोष शान्त हो जाता है। इन्द्रनीलका चक्षुः, हज़ार संख्या। वर्गा निविड़ मेघ-जैसा रहता है। यह मध्यम रत्न है। इन्द्रपति (महामहोपाध्याय)-१ मौमांसापल्वल नामक ( शुक्रनीति ) मानसोल्लासके मतमें अतसी पुष्प-जैसा इन्द्र ग्रन्थके रचयिता । २ रीवां प्रदेशस्थ इस्तोगी जातिको नीलका वर्ण होता है, जो कि छाया और रोहिणाद्रिसे | एक शाखा । उपजता है। सिहल और कलिङ्ग देशमें इसकी खानि इन्द्रपत्नी (सं० स्त्री० ) इन्द्रस्य पत्नी, ६-तत् । १ शची- है। (अगस्ता ) जहां-जहां महादानवको आंख चुयी, देवी। इन्द्रस्य पति: पालयित्री, इन्द्र-पति डी-गुक, वहां-वहां इसको उत्पत्ति हुयी। सिंहलोत्पन्न नकारादेशः । विभाषा सपूर्वस्य । पा ४१॥३४ । २ इन्द्रको पाल- महानील और तद्भिन्न मणि इन्द्रनोल कहाता है। यित्री, जो इन्द्रको परवरिश करती हो। इसमें कोयो नीलपद्म, कोयो नौलाम्बर, कोयो खन- । इन्द्रपर्णी (सं० स्त्री०) इन्द्रवत् नीलं पर्ण यस्याः,