पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५४५

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५४४ ओरना-ओलन्दाज पोरना (हिं. पु०) फाली, बाह। । भाषामें मुजाकन्द कहते हैं। श्रीलका पड़ दोसे चार अोरमना (हिं.क्रि.) अवलम्बन पकड़ना, लटक हाथ तक बढ़ता है। अच्छे खेतमें बोनेसे दश-पन्द्रह पड़ना। सेर तक यह वजनमें निकलता है। जंगली जमों कंट ओरमा (हिं० स्त्री०) स्यूतिभेद, किसौ किम्मको स्वभावतः किनकिना रहता, किन्तु बोया हुमा वैसा सिलाई। इससे कोरोंको जोड़ाई होती है। पहले नहीं ठहरता। भारतवर्ष में सर्वत्र ही यह उपजता दो अरजोंको टांक पौछे गोट लगानेको ओरमा और भोजनके व्यवहारमें लगता है। सिंहल, ब्रह्म, कहते हैं। मालाकास प्रभृति स्थानमें भी अोल होता है। ओरवना (हिं. क्रि०) स्तनमें दुग्ध उतरना, पेट (हिं० स्त्री०) ३ क्रोड़, गोद। ४ व्यवधान, आड़। बढ़ना, व्यानेका वक्त आ पहुँचना। यह शब्द प्रायः । ५ रक्षा, हिफाजत। ६ जमानत । पशके लिये ही व्यवहृत होता है। अोलन्दाज-युरोप देशान्तर्गत हालेण्ड या नेदरलेण्डके ओरहना, उरहना देखो।। अधिवासी। यह हालेण्डस शब्दका अपभ्रंश है। ओराना (हिं. क्रि०) चुकना, निबटना। अंगरेजी में डच कहते हैं। डच शब्द जर्मन शब्दके मोराहना, उरहना देखो। तुल्य अर्थका वाचक है। पोलन्दाज इन्दो-जमन वंशसे प्रोरिया (हिं. स्त्री० ) १ बोलती। खटोके उतपन्न हैं। अंगरेजीसे इनकी भाषा बहुत कुछ मिलती पासको लकड़ी। है। इन्होंने इस वातको सार्थकता सम्पादन की है, ओरी (हिं० स्त्री०) १ पोलतो। २ माता। (अव्य०) । कि अध्यवसायके आगे कुछ असाध्य नहीं। हालेण्ड- . ३ सम्बोधन शब्द। इसे प्रायः माताको बोलानमें | के अनेक स्थान समुद्र-जलमें. निमग्न रहते थे। व्यवहार करते हैं। इन्होंने बांध बना उस उपद्रवसे देशको बचाया और ओरौता (हिं० पु.) पन्त, चुकतो। समुद्रको बहुत दूरतक हटाया है। इसी प्रकार भोरौती (हिं. स्त्री० ) अोलती, छप्परसे बरसातका वालुकापूर्ण वेलाभूमिको भी क्रम-क्रम पोलन्दाजोंने पानी निकलनेकी जगह। शस्यशालिनी बना डाला है। इन्होंने अश्वगवादिके ओर्रा (हिं. पु.) एक प्रकारका बांस। यह बहुत लिये ढणपूर्ण गोष्ठ निर्दिष्टकर गाहस्थ पश जातिको बड़ा होता है। उत्पत्तिका स्थान ब्रह्मदेश तथा जैसी उन्नति साधन को, वैसो कहीं देख न पड़ी। भासाम है। लम्बाई ४• और चौड़ाई पौन गजतक कृषि एवं शिल्पविद्यामें यह विशेष पारदर्शी और वस्त्र. बैठती है। इसे एह तथा शकटके निर्माणकार्यमें वयन तथा नौ-निर्माण प्रभृति कायके लिये सर्वत्र लमाते हैं। प्रसिद्ध हैं। ओल (. त्रि.) पाङ-उन्द-कः पृषोदरादित्वात्। प्रोसन्दाज सत्स्वभावापन्न होते हैं। यह वृक्ष १. आद्र, पाला, गोला। (पु०) २ मूलविशेष, पितामाताका विशेष सम्मान करते और इसीसे सारस जमीकंद। इसका संस्क त-पर्याय शूरण, कन्द, कन्दल पक्षीपर भी बड़ा प्रेम रखते हैं। यह मितव्ययी और अर्शीघ्न है। भोल अन्ना हीपक, रुच, कषाय, | और साहसके लिये अधिक विख्यात न होते भी कण्ड कारी, कटु, विष्टम्भी, विशद, रुचिकारक, अर्थो स्वावलम्बी हैं। विद्याकी चर्चा के लिये यह सुविख्यात नाशक, लघु और लोहगुल्मनाशक होता है। यह हैं। इनके विश्वविद्यालयों में धर्मयाजकोका कोई अीरोगपर विशेष हितकर और समग्र कन्दशाकके उपद्रव नहीं। सब लोग इच्छानुरूप शास्त्रको अनु- मध्व श्रेष्ठ समझा जाता है। (भावप्रकाश) दद्रु, रक्त शोलन कर सकते हैं। धर्मयाजक व स्व निर्दिष्टः पित्त और कुष्ठरोग रहनेसे ओलभक्षण निषिद्ध है। स्थानोंके लोगोंको ही धर्ममतको शिक्षा देते हैं। श्रोल- इसे हिन्दी में जमीनकन्द, तामिलमें करण और वेलगु न्दाज साधारणतः प्रोटेष्टाएट हैं। ईसाई देखो।