१५२ ओहाबौ-ौ वहाबी कट्टर इसलाम धर्मावलम्बी हैं। यह वहहाबी मोलवियोंने मुसलमानोंके साहाय्यार्थ कितनी एक ईश्वर भिन्न किसी दूसरेको नहीं पूजते। इनके हो अशरफियां और. इंडियां भेजो थों। कहीं भी मतमें मुहम्मद ईश्वर प्रेरित मनुष्थ थे। वह धर्म- धर्मयुद्ध उपस्थित होनेपर यह ग्राम-ग्राम और पत्नी- प्रचारक लिये पृथिवीपर आये। अतएव वह साधारण पल्लो घूम गुप्त भावमें इसलाम धर्मावलम्बो लोगोंसे मनुष्य ही ठहरते हैं। उनका मत ग्रहण करना यथेष्ट साहाय्य ले सकते हैं। इनका परिचय वहहाबी. उचित है। किन्तु उन्हें पूज नहीं सकते। फराजी, हिदायती, मेहदी और नये मुसलमान शब्दोंसे ___ वहहाबके प्रधान शिष्य बाबा दासने अपनी तल- मिलता है। . वारके जोरसे समस्त यमन प्रदेशमें यह मत फैलाया मोहार (हिं. पु०) झल, परदा, ढांकने का कपड़ा। था। वहाबके मरने पर उनके पुत्र अब्द ल अज़ीज़ने ओहे (सं० अव्य०) सम्बोधनसूचक शब्द, अरे, ए। फिर पिलमतको प्रायः समस्त अरब देशमें प्रचार समवयस्क वा लघुगुरुभेद न रखनेवाले व्यक्ति को हो किया। १८०३ और १८०४ ई०को वहहाबियोंने इस शब्दसे सम्बोधन कर सकते हैं। मका और मदीना नगर जीत समस्त धनसम्पत्ति लट | पोहेला (हिं.) अवहला देखो। शौथी। ऐसे ही समय नवसंस्कारकोंने उत्तेजित हो ओहो (हिं. अध्य०) हो, अहो, भो भो, रेरे, सकल प्राचीन गोरस्तान ध्वंस कर डाले। १८१३ ई. पाहा। इस शब्दसे विस्मय और आनन्द प्रकट पर्यन्त इनका प्रभाव अक्षुस रहा। फिर मुहम्मद होता है। अली पाथाने वहाहाबियोंके कवलसे मक्के ओर मदीनेको उद्धार किया। किन्तु वह इनपर शासन चला न सके। १८१४-१८१५०को उन्होंने इन्हें औ-स्वरवर्णका चतुर्दश अक्षर। इसके उच्चारणका दवानके लिये आयोजन किया और कायरोसे अपने स्थान पोष्ठ और कण्ठ है। 'श्री' दोघं एवं प्लत भेदसे पुत्र इब्राहीम पाशाको ससैन्य भेज दिया था। इब्रा विविध और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित भेदसे होमके पाक्रमणसे यह होनवीर्य हो गये। इनके त्रिविध होता है। फिर अनुनासिक और अननुनासिक प्रधान नायक अब्द झा इबन शाउद हारे थे। फिर दो भेद और पड़ते हैं। कामधेनु तन्त्रके मतसे औकार कितने हो बहहाबी भारतवर्ष श्रा अपना मत प्रचार रक्तविद्युल्लताकार, कुण्डली, पञ्चप्राण एवं सदाशिव करने लगे। अनेक विज्ञ मुसलमानोंने यह मत मय, ईश्वर संयुक्त और चतुव गफलप्रद है। इस ग्रहण किया था। वर्णमें ब्रह्मादि देव सदा अवस्थान करते हैं। इसके ई०१८श शताब्दके शेष भाग बहुतसे लोग लिखनको प्रणाली-ओकारके मध्यस्थल में दक्षिण- वहाबी सम्प्रदाय-भुक्त हुये। १८ वें शताब्दके मध्य- दिकसे एक रेखा जगत हो किञ्चित् वामदिकको भाग यह पटने में जुटे थे। इन्होंने नाना स्थानोंसे झुक जाती है। इन सकल रेखावों में ब्रह्मा, विष्णु अपने लोगों को संग्रह कर अंगरेजोंके विपक्ष युद्धका और महेश्वर रहते हैं। मध्यगत रेखा शक्ति है। का बजाया। धर्मरक्षाके लिये युद्ध होते सुन कितने (वर्णोद्धारतन्त्र) हो मुसलमानोंने इनका साथ दिया था। कोई अर्थ औकारका तन्त्रोक्त नाम शक्लिक, नाद, तेजस, वाम द्वारा और कोई बाहु द्वारा साहाय्य करने लगा। जबक, मनु, जयग्रहेश, शङ्ककर्ण, सदाशिव, अधोदन्त, सब लोग पटनेसे सिताना गिरिमुखको अग्रसर हुये। कण्ठोष्ठ, सङ्कर्षण, सरस्वती, आज्ञा, अर्ध्वमुखी, शान्त, १८३६ ई०को उसी जगह घोर युद्द चला था। उस | व्यापिनी, प्रकृत, पयः, अनन्ता, ज्वालिनी, व्योमा, सुहमें अनेक सम्भान्त गरेज कर्मचारी और विस्तर | चतुर्दशी, रतिप्रिय, नेत्र, आत्मकर्षणो, ज्वाला, मालि- अंगरेज सैनिक मारे गये। युद्धके समय पटनेके | निका और भुगु है। वीजवर्णाभिधानमें शेषदशन.
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५३
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